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निराशा के अंधकार में MSME सेक्टर, कोरोना से दांव पर लगी 11 करोड़ नौकरियां

कोरोना संकट की वजह से देशभर में माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से जुड़ी ऐसी तमाम कंपनियां हैं जो कोरोना वायरस की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन में निराशा के अंधकार के बीच डूब रही हैं। जानकारी के अनुसार दिल्ली में स्थित एक मशीन-पार्ट बनाने वाली कंपनी, जो अपने 24 कामगारों को सैलरी नहीं दे सकती है, से लेकर पुणे के एक पेंट-निर्माता कंपनी तक नकदी संकट झेल रही है और दिवालिया होने की कगार पर खड़ी है।

एक स्टार्टअप कंपनी को 90 लाख मास्क बनाने का ऑर्डर मिला है लेकिन उसे अभी भी बैंक से पैसे मिलने का इंतजार है, क्योंकि उसके पास फंड की कमी है। लुधियाना में भी एक एक्सपोर्ट कंपनी का बिल क्लियर नहीं हो पा रहा है।

सरकारी सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सरकार अपने दूसरे राहत पैकेज में बड़े उद्योगों की जगह इस सेक्टर पर फोकस कर सकती है। सरकार के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि अबतक एमएसएमई सेक्टर पहले घोषित किए गए राहत उपायों की श्रृंखला से काफी लाभान्वित नहीं हुए हैं।

पिछले एक पखवाड़े से सरकार एमएसएमई को दिए जाने वाले राहत पैकेज को अंतिम रूप देने के लिए लगातार पिछले दो सप्ताह से चर्चा कर रही है। शनिवार को फिक्की के एक वेबीनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि हमने वित्त मंत्री और प्रधान मंत्री को राहत पैकेज के लिए सिफारिशें भेजी हैं और मुझे उम्मीद है कि जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी। हम हरसंभव राहत देने की कोशिश करेंगे। जानकारी के अनुसार एक हफ्ते पहले ही गडकरी ने MSME सेक्टर के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के रिवॉल्विंग फंड के आबंटन की वकालत की थी।

बता दें कि ऐसी कंपनियां देश में बड़े औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करती हैं और बड़े उद्योगों के लिए सहायक इकाइयों के रूप में बड़े पैमाने पर काम करती हैं। ऐसी 5 करोड़ इकाइयों में करीब 11 करोड़ लोग काम करते हैं। कोरोना संकट और देशव्यापी लॉकडाउन में सिर्फ ये 11 करोड़ नौकरियों ही दांव पर नहीं हैं बल्कि भविष्य में होने वाले देश के कुल विनिर्माण उत्पादन का 45 प्रतिशत, 40 प्रतिशत निर्यात और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30 प्रतिशत भी दांव पर आ चुका है।

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