सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उत्तर प्रदेश जुवेनाइल बोर्ड यह तय करे कि हत्या का दोषी पाए गए 55 वर्षीय व्यक्ति को कितनी सजा मिलनी चाहिए. सर्वोच्च अदालत अपने फैसले में कहा कि चूंकि व्यक्ति ने हत्या 1981 में की जब वह नाबालिग था, इसलिए उसकी सजा भी जुवेनाइल बोर्ड ही तय करे.
जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने उत्तर प्रदेश के बहराइच कोर्ट की तरफ से सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया. बहराइच कोर्ट ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और उसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी यह कहते हुए बरकरार रखा था कि 1986 के जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट के तहत 16 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को नाबालिग नहीं माना जाता था.
हालांकि, जब मामले की सुनवाई खत्म हुई थी और जब 2018 में जब हाई कोर्ट ने फैसला दिया था तब जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट, 2000 अस्तित्व में आ गया था. संशोधित कानून में कहा गया है कि अपराध के वक्त अगर किसी आरोपी की उम्र 18 साल से कम है तो उसके खिलाफ मुकदमे की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में की जाएगी.
जब 1981 में हत्या किए जाने का दोषी पाए जाने पर सत्य देव ने सुप्रीम कोर्ट से 200 के कानून के तहत अपराध के वक्त खुद को नाबालिग होने के मद्देनजर राहत देने की गुहार लगाई तो कोर्ट ने बहराइच के जिला जज से मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कह दिया. 6 मार्च को जिला जज ने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट दी जिसमें अपराध के दिन 11 दिसंबर, 1981 को सत्य देव की उम्र 16 वर्ष सात महीने और 26 दिन बताया.
इस पर सुप्रीम कोर्ट के जसिट्स खन्ना ने कहा, ‘अपराध के दिन सत्य देव 18 वर्ष से कम उम्र का था, इसलिए उसे जुवेनाइल मानते हुए 200 के कानून का फायदा दिया जाए. कोई दोषी को उसे जुवेनाइल होने के कारण मिलने वाली राहत पाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.’