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यमुना की सफाई पर सात सालों में 7000 करोड़ खर्च, लेकिन पीना तो दूर, छूने लायक भी नहीं पानी

दिल्ली में यमुना की कुल लंबाई केवल 22 किलोमीटर है। यह उसकी कुल लंबाई 1370 किलोमीटर का लगभग दो प्रतिशत है। लेकिन यही दो फीसदी हिस्सा यमुना की कुल गन्दगी का 80 फीसदी हिस्सा पैदा करता है। इस दो प्रतिशत हिस्से की सफाई के लिए केंद्र-दिल्ली सरकार ने पिछले सात सालों में 7000 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि खर्च किया है, लेकिन यमुना के किसी भी हिस्से का पानी पीने और नहाने लायक तो छोड़िए, छूने लायक भी नहीं है।

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स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यमुना के गंदे पानी में हाथ डालना भी बीमारियों को न्योता देने जैसा है। दिल्ली के साथ साथ इसका सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जिनकी जिंदगी यमुना पर ही आश्रित है।

क्या कहते हैं आंकड़े

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) के एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच पांच वर्षों में यमुना की सफाई में जुटे विभिन्न विभागों को 6856.9 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई थी। यह धनराशि यमुना में गिरने वाले गंदे पानी के शोधन के लिए दिया गया था।

2015 से 2023 की पहली छमाही तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को लगभग 1200 करोड़ रुपये दिए थे। इसमें नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के अंतर्गत 1000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-3 के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे।

केजरीवाल सरकार ने किया खर्च

आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया है। जल शक्ति मंत्रालय ने एक बयान जारी कर दावा किया था कि उसने 11 प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार को 2361.08 करोड़ रुपये दिया था। इसका उपयोग यमुना में गिरने वाले गंदे जल को शोधित करने के लिए एसटीपी का निर्माण करना था। इस धन का कितना उपयोग हुआ, यमुना का गंदा पानी बता रहा है।

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नमामि गंगे योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 4290 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत किया था। इस धनराशि से यमुना में गिरने वाले गंदे जल को ट्रीट कर शुद्ध करने के लिए 23 प्रोजेक्ट पर काम किया जाना था। इसकी कुल क्षमता 1840 एमएलडी थी। इसमें 12 प्रोजेक्ट राजधानी दिल्ली में थे, जबकि हिमाचल प्रदेश में एक, हरियाणा में दो और उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर आठ एसटीपी बनाए जाने थे।

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