लखनऊ। महापुरुष स्मृति समिति की ओर से बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध की जयंती वैशाख महीने की पूर्णिमा तिथि गुरुवार को मनाई गयी। राजधानी लखनऊ के इंद्रपुरी कालोनी स्थिति एक आवास पर लॉकडाउन का पालन कर और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुये उपस्थित लोगों ने भगवान बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेश को आपस में साझा किया।
समिति के अध्यक्ष भारत सिंह ने बताया कि भगवान बुद्ध का जन्म इच्क्ष्वाकुवंश में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में हुआ था। यह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। 27 वर्ष की आयु में ही गौतम बुद्ध संन्यासी बन गए थे। भगवान बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म की स्थापना की थी और अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया था। वैशाख पूर्णिमा का दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म दिन और निर्वाण दिवस तथा इसी दिन उन्हें बोधि की प्राप्ति हुई थी। महात्मा बुद्ध का जन्म वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल की तराई में स्थित लुम्बिनी नामक वन में हुआ था।
उन्होंने बताया कि कहते हैं राजा शुद्धोधन ने राजकुमार का नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ विद्वानों को उनका भविष्य जानने के लिए आमंत्रित किया। सभी विद्वानों ने एक सी भविष्यवाणी की ‘यह बालक महायोगी बनेगा। सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से हुआ। 30 वर्ष की आयु में एक रात्रि के समय सभी को सोता हुआ छोड़कर सिद्धार्थ राजभवन को त्यागकर वन में चले गए। सिद्धार्थ ने प्रतिज्ञा की कि जब तक जन्म तथा मृत्यु के रहस्य को नही समझ लूँगा तब तक इस कपिलवस्तु नगर में प्रवेश नही करूंगा। सिद्धार्थ को अब बोधपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ और वह ‘भगवान बुद्ध’ कहलाने लगे। 6 वर्ष की कठोर साधना के बाद गया (बिहार) में एक पीपल के पेड़ के नीचे गहन समाधि के बाद महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ। अपने प्रथम उपदेश के लिए महात्मा बुद्ध ने वाराणसी के निकट सारनाथ नामक स्थान को चुना। सैकड़ों वर्षों से व्याप्त रूढ़ियों, अंधविश्वासों, भेदभावों तथा अनेकानेक जड़ मान्यताओं को महात्मा बुद्ध ने अमान्य कर दिया। स्वर्ग और नर्क की धारणाओं के आधार पर व्याप्त ढोंग-पाखंड का महात्मा बुद्ध ने त्याग कर धर्म-शास्त्रों पर सभी जाति वर्ग के लोगों तथा स्त्रियों का समान अधिकार है।
भगवान बुद्ध के विचारों के साथ-साथ ग्रन्थलेखन,मूर्तिकला, स्तूप निर्माण, मठ स्थापना, गुफाओं में भित्ति प्रतिमाओं आदि का सर्व दूर विकास हुआ। “इस संसार में कुछ भी स्थिर नही सभी कुछ नाशवान है, सभी प्रकार के प्राणी चाहे वे उत्तम,मध्य नीच जो भी हो सभी का विनाश सुनिश्चित है”। भगवान बुद्ध 44 वर्षों तक निरंतर उपदेश करते हुए वे भ्रमण करते रहे। महात्मा बुद्ध विश्व के अनेक स्थानों के जनमानस को सुख-शांति का एक नया रास्ता दिया। यह वह समय था जब हम कह सकते है कि बौद्धमत ने विश्वधर्म का प्रतिष्ठित स्थान पा लिया था। हिन्दू समाज ने महात्मा बुद्ध को अपने दशावतारों में स्थान दिया और व भगवान् बुद्ध कहलाने लगे। महात्मा बुद्ध ने मनुष्य की मर्यादा को यह कहकर ऊपर उठाया कि कोई मनुष्य केवल ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से पूज्य नही होता। उच्चता नीचता, जन्म पर नही, कर्म पर अवलंबित है। “जो सारे संसार के बंधनों को काट डालता है, किसी भी सांस्कारिक दुःख से नहीं डरता, जिसे किसी भी बात की आसक्ति नहीं होती, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ”। महात्मा बुद्ध ने किसी भी प्रकार के जाति एवं वर्ण-भेद को अपने जीवन में स्थान नहीं दिया। महात्मा बुद्ध ने भारतीय तत्वज्ञान की मूलधारा को कभी नहीं छोड़ा। बुद्ध ने अपने धर्म को ‘आर्यधर्म’ तथा अपने सिद्धांतों को ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ कहा है।
बौद्ध धर्म में चार स्थान अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। पहला स्थान कपिलवस्तु, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ। दूसरा बौद्ध गया, जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ। तीसरा सारनाथ, जहाँ बुद्ध ने पहला प्रवचन दिया और चौथा स्थान कुशीनगर, जहाँ उन्होंने शरीर त्याग दिया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में महात्मा बुद्ध ने अपना अंतिम सन्देश दिया और वहीं एक वृक्ष के नीचे अपना शरीर त्याग दिया।
इस अवसर पर इतिहास की छात्रा रहीं प्रीती सिंह ने बताया कि बुद्ध जी ने हमेशा से ही मूर्ति पूजा का विरोध किया है। लेकिन उनके प्रति उनके भक्तों के मन में इतनी श्रद्धा है कि आज भी बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उनकी पूजा करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहे हैं। आसपास के कुछ स्थानीय नागरिकों के बीच इस कार्यक्रम में तुंगनाथ, सहोद्रा, भास्कर सिंह, संतोष, संदीप, अनुरक्त, अनुप्रिय, देवांशी, अद्वैत प्रमुख रूप उपस्थित रहे।