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समय के अनुरूप संसद भवन

समय का चक्र निरन्तर चलता है। इसके अनुरूप परिवर्तन होते है। नए निर्णय करने होते है। वर्तमान संसद भवन के साथ भी यह बात लागू होती है। पिछले अनेक वर्षों से नए भवन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। संसद के इस भवन में विस्तार सँभवन नहीं था। प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि वर्षो से इस पर चर्चा चल रही थी। नए संसद भवन की जरूरत महसूस की गई है। ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि इक्कीसवीं सदी के भारत को एक नया संसद भवन मिले। इसी कड़ी में ये शुभारंभ हो रहा है। संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यर्थाथ को स्वीकारना उतना ही आवश्यक है। यह इमारत अब करीब सौ साल की हो रही है। बीते वर्षों में इसे जरूरत के हिसाब से अपग्रेड किया गया। कई नए सुधारों के बाद संसद का ये भवन अब विश्राम मांग रहा है।

आजादी के 75 वर्ष का प्रतीक

PM नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज इंडिया गेट से आगे नेशनल वॉर मेमोरियल ने नई पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा। आने वाली पीढ़ियां नए संसद भवन को देखकर गर्व करेंगी कि ये स्वतंत्र भारत में बना है। आजादी के पचहत्तर वर्ष का स्मरण करके इसका निर्माण हुआ है।

नए भवन की आवश्यकता

पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण ने उचित कहा कि मौजूदा बिल्डिंग की अपनी सीमाएं हैं। जिसकी वजह से इसमे बदलाव नहीं किया जा सकता है। इसमे आधुनिक बदलाव वगैरह नहीं किए जा सकते हैं। मौजूदा बिल्डिंग में सुरक्षा,आधुनिक तकनीक,भूकंपरोधी जैसे अहम सुरक्षा के मानकों की कमी है। जिसकी वजह से नई बिल्डिंग के निर्माण की जरूरत महसूस की गई। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने भी कहा था कि मौजूदा संसद भवन देश की पुरात्तव संपत्ति है,जिसे संरक्षित रखने की जरूरत है।

पहले आम चुनाव के बाद इसे संसद का रूप दिया गया और यहां चार सौ इकसठ सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई। फिर इसे साढ़े पांच सौ तक बढ़ाया गया। करीब छह वर्ष बाद पुनः सदस्य संख्या बढ़ सकती है। तब लोकसभा सीटों की संख्या नौ सौ तक पहुंच सकती है। संयुक्त अधिवेशन आदि के लिए केंद्रीय कक्ष,चौबीस संसदीय समितियों के पृथक जगह भी पर्याप्त नहीं थी। लोकसभा सचिवालय में दो हजार से अधिक और राज्यसभा सचिवालय में बारह सौ से अधिक कर्मचारी अधिकारी हैं।

रखरखाव खर्च: वर्तमान संसद भवन पुराना होता जा रहा है। इसकी इमारत की मरम्मत और रखरखाव पर प्रतिवर्ष पच्चीस करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते है।

आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक

नरेंद्र मोदी ने कहा कि नया संसद भवन आत्मनिर्भर भारत का गवाह बनेगा। पुराने संसद भवन का महत्व भी कायम रहेगा। इस भवन ने स्वतंत्रता के बाद के भारत को दिशा दी। पुराने संसद भवन में देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम हुआ। तो नए भवन में इक्कीसवीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी की जाएंगी। नए संसद भवन में ऐसी अनेक नई चीजें की जा रही हैं जिससे सांसदों की एफिशियंसी बढ़ेगी, उनके वर्क कल्चर में आधुनिक तौर तरीके आएंगे।

भारत के संस्कार में लोकतंत्र

प्राचीन भारत में राजा भी प्रजा हित की शपथ लेता है। आमजन के विचारों को शासन के स्तर पर महत्व दिया जाता था। प्राचीन भारत में लोकतंत्र व गणतंत्र के अनेक उदाहरण है। वैदिक काल में सभा समिति जैसी विधाई संस्थाएं थी। राजा इसके प्रति उत्तरदायी होते थे। नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में लोकतंत्र एक संस्कार है। भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य है,जीवन पद्धति है, राष्ट्र जीवन की आत्मा है। भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है। भारत के लिए लोकतंत्र में,जीवन मंत्र भी है,जीवन तत्व भी है और साथ ही व्यवस्था का तंत्र भी है।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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