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मंजिलें और भी हैं : ड्यूटी पर जाने से पहले लेते हैं एक घंटे की फ्री क्लास

कोरोना महामारी ने लगभग सभी के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। हालांकि कमियां तो पहले भी थीं। लेकिन चीज़ें कम से कम व्यवस्थित थी। कोरोना के चलते अब तो कई तरह के बदलाव आ चुके हैं। पहले बच्चे, स्कूल जाते थे तो वहां पढ़ाई कर लेते थे। कोरोनावायरस के कारण बच्चों की पढ़ाई अब इंटरनेट पर हो रही है। परंतु कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जिनके पास न तो मोबाइल है और न ही इंटरनेट। इतना ही नहीं कई जगह पर नेटवर्क भी खराब आता है। उन जगहों पर बच्चे अपनी पढ़ाई कैसे कर पाएंगे यह एक बेहद ही गंभीर विषय बना हुआ है।

सोशल मीडिया पर कई तरह की तस्वीरें सामने आती रहती है। जिसमें देखने को मिलता है कि कैसे लोग बच्चों को पढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं। बच्चे पढ़ने के लिए पहाड़, टंकी छत, पेड़ों पर जा-जा कर बैठते हैं। जिससे उनको नेटवर्क मिल जाए। बच्चों को पढ़ाने में देश के कई सारे लोग हैं। जो मेहनत कर रहे हैं। अब इसी बीच शांथप्‍पा जादेम्मानवर नाम का एक पुलिसकर्मी है जो बच्चों को ऐसे ही पढ़ाई करते नजर आ रहा है।

आपको बता दें कि बेंगलुरु का यह मामला बताया जा रहा है। शांथप्‍पा सब-इंस्पेक्टर हैं और अन्नपूर्णेश्वरी नगर थाने में तैनात हैं। वह प्रवासी मजदूरों के बच्चों को पढ़ाते हैं। खबरों के मुताबिक 8.30 पर शांथप्पा की ड्यूटी शुरु हो जाती है। वह सुबह 7 से 8 बजे तक हर रोज बच्चों को क्लास देते हैं। इस क्लास में वैदिक गणित, सामान्य ज्ञान और कुछ जिंदगी की बारीकियों को पढ़ाते हैं। जिसमें उनके साथ 30 बच्चे शामिल होते हैं। हालांकि जो बच्चा होमवर्क अच्छा करता है वह इनाम के तौर पर उसको चॉकलेट, जमेट्री बॉक्स आदि चीजों का उपहार देते रहते हैं।

हालांकि इस मामले में बात करते हुए पुलिसकर्मी का कहना है कि इन बच्चों के पेरेंट्स के पास न तो स्मार्टफोन है न ही कंप्यूटर है। मतलब इनके पास ऑनलाइन या डिस्टेंस लर्निंग का कोई भी साधन मौजूद नहीं है। राज्य सरकार की परियोजना शिक्षकों को छात्रों के घर पर भेजने के लिए थी। वह भी यहां पर विफल हो चुकी है। इसलिए मैंने यहीं खुले में पढ़ाना शुरू कर दिया है।

इतना ही नहीं, इसी के साथ उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा है कि जहां बच्चे रहते हैं वहां पर बिजली और पानी की व्यवस्था भी नहीं है। उन्हें प्रवासी मजदूरों को समझाना पड़ा था कि इस क्लास को शुरू करने के पहले वह भी प्रवासी मजदूर ही थे। पढ़ाई लिखाई करने के बाद में पुलिस में भर्ती हो गए। जिसके बाद इस क्लास की शुरुआत करने की उन्होंने इजाजत प्राप्त की है। हालांकि इस पुलिसकर्मी को प्रवासी मजदूरों के बच्चों के पढ़ाते हुए बेंगलुरु के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार ने देखा और उनकी तारीफ की। उन्होंने जल्द मदद करने का आश्वासन भी दिया हैं।

दया शंकर चौधरी

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