पहली नजर में यह खबर निश्चित रूप से राहत देने वाली है कि देश में छह साल से ऊपर की दो तिहाई से ज्यादा आबादी में कोरोना वायरस की एंटी बॉडीज डिवेलप हो गई है। चौथे सीरो सर्वे की रिपोर्ट से सामने आई यह बात तसल्ली इसलिए भी देती है कि पहली बार इस सर्वे में 18 साल से कम उम्र के लोगों को भी शामिल किया गया। छह से 17 साल के बच्चों में भी 50 फीसदी से ज्यादा मामलों में एंटी बॉडीज पाई गई हैं। संभावित तीसरी लहर में बच्चों के ज्यादा प्रभावित होने की आशंका के मद्देजर यह तथ्य खास अहमियत रखता है। इससे पहले दिसंबर-जनवरी में करवाए गए तीसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट में महज 21 फीसदी आबादी में एंटी बॉडीज पाई गई थी।
जाहिर है, दूसरी लहर चाहे जितनी भी विनाशकारी साबित हुई, इस दौरान हुए एंटी बॉडीज के फैलाव ने भविष्य के लिए हमें थोड़ा आश्वस्त जरूर किया है। इसके साथ जुड़ा हुआ खतरा यह है कि हम इससे कुछ ज्यादा ही आश्वस्त न हो जाएं। 67 फीसदी आबादी में एंटी बॉडीज होने का ही एक मतलब यह भी है कि 33 फीसदी आबादी अब भी पूरी तरह अरक्षित है। यह संख्या इतनी बड़ी है कि किसी तरह का रिस्क नहीं लिया जा सकता। लेकिन आम लोगों में कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर जिस तरह की लापरवाही दिख रही है, उसमें तीसरी लहर की भयावहता का खतरा बढ़ जाता है।
इकलौता रास्ता यही है कि टीकाकरण अभियान में अधिकतम संभव तेजी लाकर जल्दी से जल्दी आबादी के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को सुरक्षित कर लिया जाए। दुर्भाग्यवश इस मोर्चे पर भी कई तरह की ढिलाई दिखती है। आज भी कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों में टीके को लेकर आम लोगों में बेरुखी दिखाई देती है। बिहार जैसे राज्यों से ऐसी खबरें मिल ही रही हैं कि स्वास्थ्यकर्मियों की टीम के गांव में पहुंचने और मंदिर-मस्जिद से लगातार अपील किए जाने के बाद भी लोग टीकाकेंद्रों पर नहीं जा रहे। टीकाकरण अभियान एक दिन का रेकॉर्ड बनाने वाला जोश दिखाने के बाद शिथिल पडऩे लगा।
21 जून को 85 लाख से ज्यादा टीके लगाए गए, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे हालत यह हो गई कि इस सोमवार को पिछले पूरे सप्ताह का औसत 38.62 लाख पाया गया। खास बात यह कि इसका पूरा दोष लोगों की बेरुखी पर नहीं डाला जा सकता। टीके की सप्लाई में कमी भी बहुत बड़ी वजह है। मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के कई इलाकों में लोग टीका केंद्रों पर पहुंच कर घंटों इंतजार करते हैं और जब सीमित मात्रा में टीके पहुंचते हैं तो टोकन लेने के लिए ऐसी होड़ मचती है कि कोरोना प्रोटोकॉल की धज्ज्यिां उड़ती दिखाई देने लगती हैं। ऐसी अव्यवस्था और सप्लाई की अनियमितता दूर करके ही हम तीसरी लहर के खतरे को कम करने की सोच सकते हैं।