घोटालों के विरुद्ध अन्ना हजारे का आंदोलन लोगों को आज भी याद है. अरविंद केजरीवाल को यहीं से प्रसिद्धी मिली थी. ऐसा लगा जैसे अन्ना हजारे की विरासत को वह आगे बढ़ाएगे. उस समय मनमोहन सिंह सरकार घोटालों के आरोप से पूरी तरह घिरी हुई थी.
अन्ना ने आंदोलन किया तो जनभावना उनके साथ हो गई. अन्ना राजनीति से ऊपर थे. जबकि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियो ने आंदोलन से राजनीतिक लाभ उठाने की पूरी रणनीति बना ली थी. अन्ना के नाम का उनको सर्वाधिक लाभ मिला. इन्होंने अपने को ईमानदार दिखाने की पूरी पटकथा तैयार कर ली थी. सब कुछ उसी के अनुरूप चल रहा था. पहले कहा गया कि अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम सक्रिय राजनीत से दूर रहेगी. इस तरह अपने को महान दिखाने का पहला दृश्य पूरा हुआ. धीरे धीरे रंग बदलने की शुरुआत हुई. सभी पार्टियों के प्रमुख नेताओं पर भ्रस्टाचार के आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हुआ. इसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि अब नए ढंग की राजनीति जरूरी है. सभी पार्टियों में बेईमान नेता हैं.
इसलिए अन्ना के साथ मंच पर बैठने वाले नेताओं को विवश होकर सक्रियता राजनीति में उतरना पड़ेगा. इसके बाद आम आदमी पार्टी का गठन किया गया. औरों से अलग दिखने के अनेक टोटके किए गए. अरविंद केजरीवाल की बैगन आर कार खूब चर्चित हुई. यह अपने को आम आदमी की तरह दिखाने का प्रयास था. फिर उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद साधारण फ्लैट में रहेंगे. अपने बच्चों की कसम खाई कि कभी कांग्रेस का सहयोग नहीं लेंगे. फ्री बिजली पानी, मोहल्ला क्लिनिक और स्कूलों के वादे किए.
वह जानते थे कि इतने बेहिसाब वादों की पूरा करने की क्षमता दिल्ली सरकार में नहीं है. लेकिन सत्ता ही साध्य बन गई. बिडम्बना देखिए कि पहली बार कांग्रेस के सहयोग से ही केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे.कसमें वादे भूल गए. जिन पर घोटालों के आरोप लगाए थे, उनके साथ मंच साझा करने लगे. नितिन गडकरी पर भी आरोप लगाया था.
उन्होने केजरीवाल को कोर्ट तक घसीट लिया. धीरे धीरे केजरीवाल को सभी आरोपों से कदम पीछे खिंचने पड़े. मतलब अन्ना हजारे का सहारा लेकर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे. लेकिन यहां तक पहुँचने में वह अन्ना हज़ारे के मार्ग से पथभ्रष्ट हो चुके थे. यह कम शर्मनाक नहीं कि अब वह अन्ना हजारे पर भाजपा के दबाब में काम करने का आरोप लगा रहे हैं. क्योंकि अन्ना हजारे ने एक पत्र के माध्यम से उन्हें आईना दिखाया हैं. केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप पहले भी लगते रहे हैं.
आबकारी विभाग की अनियमितता ने सरकार की छवि को पूरी तरह धूमिल कर दिया हैं. आरोपों का जबाब देने की जगह कोई अपने को
महाराणा प्रताप का वंशज बता रहा है कोई कह रहा है कि भाजपा प्रदेश सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है. ऑपरेशन लोटस चल रहा है. लेकिन इस पलट वार से आबकारी नीति का कोई मतलब नहीं हैं. अन्ना हजारे आप सरकार की कार्यप्रणाली से आहत हैं. उन्होने केजरीवाल को दस वर्ष पहले की बात याद दिलाई. कहा कि उनकी कथनी और करनी में अंतर है। तब केजरीवाल ने अलग राजनीतिक रास्ता अपनाने का ऐलान किया था.
अन्ना हजारे ने कहा कि एक राजनीतिक दल बनाना हमारे आंदोलन का उद्देश्य नहीं था। लोगों को टीम अन्ना पर भरोसा था। मैं चाहता था कि टीम अन्ना देश भर में यात्रा करके सार्वजनिक शिक्षा और जन जागरुकता टीम के रूप में काम करें। आप सरकार की शराब नीति लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रही है। अन्ना हजारे ने कहा कि अगर उस दृष्टि पर काम किया गया होता, तो गलत प्रकार की शराब नीति का फैसला नहीं किया जाता। अन्ना हजारे ने समान विचारधारा वाले लोगों के दबाव समूह से सरकार को जनहित के लिए काम करने के लिए मजबूर करने की अपेक्षा की, चाहे वह किसी भी पार्टी की हो.
अन्ना हजारे ने कहा कि ऐतिहासिक आंदोलन को नुकसान पहुंचाकर बनाई गई राजनीतिक पार्टी किसी भी अन्य राजनीतिक दल की तरह है। उस आंदोलन में लाखों लोग आए थे. अरविंद केजरीवाल ने लोकायुक्त के लिए मंच से बड़े भाषण दिए लेकिन दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते ही लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के मुद्दे को भूल गए. अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर कहा कि आपकी आबकारी नीति के कारण आपके शब्दों और कार्यों के बीच अंतर है. जाहिर है कि केजरीवाल की अति महत्वकांक्षा भी उनकी परेशानी की वजह है। अलग ढंग की ईमानदार राजनीति करने के प्रति न उनकी दिलचस्पी है, न उनमें इसकी क्षमता है। वह दिल्ली में अपने निर्धारित कर्तव्यों के निर्वाह में विफल रहे है.
केजरीवाल अराजक तरीकों से अपनी नाकामी छिपाने का प्रयास करते है। लेकिन उनकी यह असलियत अब सामने आ चुकी है। केजरीवाल अपने को नरेंद्र मोदी का प्रमुख प्रतिद्वंदी मानने की गलतफहमी का शिकार है। केजरीवाल दिल्ली की संवैधानिक स्थिति नहीं समझेंगे तो उनकी सहायता कोई नहीं कर सकता। केजरीवाल की आबकारी नीति सवालों के घेरे में हैं.
दो वर्ष पहले चार हजार करोड़ राजस्व मिला. इसके अगले वार्ष तैतीस सौ करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ. इस वर्ष करीब डेढ़ सौ करोड़ का ही राजस्व मिला. पिछले साल से लगभग तीन हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ. भाजपा ने कहा कि दिल्ली सरकार शराब ज्यादा बिकने का प्रचार नहीं कर सकती। लेकिन एक पेटी के साथ एक फ्री बिक रही थी, इसका प्रचार किया जा रहा था और बाहर से आकर भी लोग खरीद रहे थे.
उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली सरकार की एक्साइज पॉलिसी लागू करने के मामले में हुई कथित गड़बड़ियों की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी. उपराज्यपाल ने इसके लिए चीफ सेक्रेटरी की उस रिपोर्ट को आधार बनाया था. दिल्ली सरकार ने पिछले साल ही अपनी नई एक्साइज पॉलिसी लागू की थी. उपराज्यपाल ने जिस रिपोर्ट को आधार बनाया है, उसमें कहा गया है कि दिल्ली एक्साइज एक्ट और दिल्ली एक्साइज रूल्स का उल्लंघन किया गया. इसके अलावा शराब विक्रेताओं की लाइसेंस फीस भी माफ की गई, जिससे सरकार को भारी नुकसान हुआ. रिपोर्ट में आबकारी मंत्री उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने वैधानिक प्रावधानों और आबकारी नीति का उल्लंघन किया. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि एक्साइज पालिसी लागू करते हुए कई प्रक्रियाओं का भी पूरी तरह से पालन नहीं किया गया.
चीफ सेक्रेटरी द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पहली नजर में यह जाहिर हुआ था कि नई एक्साइज पॉलिसी को लागू करने में जीएनसीटी एक्ट-1991, ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993, दिल्ली एक्साइज एक्ट 2009 और दिल्ली एक्साइज रूल्स 2010 का उल्लंघन किया गया है।.टेंडर जारी होने के बाद 2021-22 में लाइसेंस हासिल करने वालों को कई तरह के गैरवाजिब लाभ पहुंचाने के लिए भी जानबूझकर बड़े पैमाने पर तय प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है.
एलजी ऑफिस की तरफ से यह भी स्पष्ट किया गया है कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993 के रूल नंबर 57 के तहत चीफ सेक्रेटरी ने यह रिपोर्ट एलजी को भेजी थी. यह रूल कहता है कि पूर्व निर्धारित प्रक्रियाओं के पालन में कोई भी कमी पाए जाने पर चीफ सेक्रेटरी तुरंत उस पर संज्ञान लेकर उसकी जानकारी एलजी और सीएम को दे सकते हैं. यह रिपोर्ट भी इन दोनों को भेजी गई थी. रीटेल लाइसेंसियों के लिए विदेशी शराब और बियर की कीमत को सस्ता कर दिया, जिससे सरकार को रेवेन्यू का भारी नुकसान झेलना पड़ा. आवश्यकताओं का आकलन किए बिना हर वॉर्ड में शराब की कम से कम दो दुकानें खोलने की शर्त टेंडर में रखी, ताकि टेंडर जारी होने के बाद भी लाइसेंसधारकों को लाभ पहुंचाया जा सके.
बाद में एक्साइज विभाग ने सक्षम अथॉरिटीज से मंजूरी लिए बिना और नियमों के खिलाफ जाकर लाइसेंसधारकों को नॉन कन्फर्मिंग वॉर्डों की जगह कन्फर्मिंग एरिया में दो से ज्यादा दुकानें खोलने की इजाजत भी दे दी.
शराब की बिक्री और सेवन को प्रमोट न करने के नियम का उल्लंघन करते हुए दिल्ली सरकार ने अपने चेहेते लाइसेंसधारकों के खिलाफ दिल्ली एक्साइज एक्ट के तहत भी कोई कार्रवाई नहीं की. बैनर्स और होर्डिंगों के जरिए खुलकर शराब की बिक्री का प्रचार प्रसार कर रहे थे. यह सब एक्साइज विभाग की भी जानकारी में था, लेकिन उसने भी कोई कार्रवाई नहीं की. जाहिर है कि आप सरकार की आबकारी नीति से अनेक प्रश्न उठे हैं. इनका जबाब सरकार को देना होगा.लेकिन अपनी चिर परिचित शैली के अनुरूप आम आदमी पार्टी इसे राजनीतिक रंग देने में लगी है. इसके लिए उनसे अन्ना हजारे पर भी हमला बोलने में संकोच नहीं किया.