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आजादी के 75 साल बाद तीखे स़वालों के घेरे में “शिक्षा, शिक्षक और पाठ्यक्रम”

   दया शंकर चौधरी

इस साल शिक्षक दिवस (टीचर्स डे) से ठीक पांच दिन पहले उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हाईस्कूल से दो शिक्षकों को हिन्दू होने की वजह से निकाल दिया गया। निकाले गए शिक्षकों ने प्रबंधन पर आरोप लगाया है कि हिन्दू होने की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया है। ये मामला अलीगढ़ के शाह जमाल इलाके के ‘एमएआई हाईस्कूल’ का है। निकाले गए शिक्षकों के नाम राहुल भारती और प्रवीण हैं।

मैनेजमेंट का कहना है कि मदरसा बोर्ड के स्कूल में मदरसा में पढ़ाने वाले शिक्षक ही रखे जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस स्कूल में ये दोनों शिक्षक पिछले तीन वर्षों से पढ़ा रहे थे। अचानक 31 अगस्त को स्कूल के प्रबंधन ने इन दोनों शिक्षकों को बुलाया और इन दोनों ही शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया। इस मामले में स्कूल प्रबंधन ने दलील दी है कि उनका स्कूल मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। इसलिए इसमें सिर्फ मदरसा बोर्ड के मानकों के अनुसार शिक्षकों को ही रखा जाएगा। इस मामले में निकाले गए शिक्षकों ने जो वजह बताई वह बेहद चौंकाने वाले हैं।

बिना नोटिस के ही नौकरी से निकालाः प्रवीण कुमार

निकाले गए शिक्षकों में से एक प्रवीण कुमार ने मीडिया को बताया, “मैं अलीगढ़ में शाह जमाल के एमएआई स्कूल में पढ़ाता था। स्कूल के मैनेजमेंट ने 31 अगस्त को बोला कि यहां पर मदरसा बोर्ड के ही टीचर रखे जाएंगे। उन्होंने कोई नोटिस भी नहीं दिया और पहले किए गए एग्रीमेंट के मुताबिक भी एक महीने का नोटिस भी नहीं दिया। 31 अगस्त को सीधे बोला कि आपको कल से स्कूल नहीं आना है।”

हिन्दू होने की वजह से निकाले गएः राहुल भारती

बावजूद इसके दूसरे शिक्षक राहुल भारती का कहना है कि “उन्हें अचानक से स्कूल प्रबंधन की ओर से जफरुद्दीन खान ने केबिन में बुलाकर कहा कि हमें आपकी सेवाएं अब नहीं ले सकते हैं और आप अपना अब हिसाब कर लीजिए। इसके बाद जब हमने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हम अब यहां पर सारे मुस्लिम समुदाय के शिक्षकों को ही रखेंगे। हम दोनों शिक्षक हिन्दू समुदाय के दलित कैटेगिरी से बिलांग करते हैं।”

जबकि स्कूल के प्रबंधक जफरुद्दीन खान का कहना है कि ‘डीएमओ साहब आए तो उन्होंने आदेश किया कि मदरसे को मदरसा बोर्ड के नियमों के मुताबिक फॉलो किया जाए आपके मदरसे में कुछ कमियां है, उन कमिँयों को दूर करने की जरूरत है। इसी आधार पर इन दोनों शिक्षकों को बाहर किया गया है, वे दोनों मदरसा बोर्ड के मानकों को पूरा नहीं करते।

शिक्षक पात्र है तो धर्म से कोई मतलब नहींः जिला प्रोबेशन अधिकारी

वहीं जिला प्रोबेशन अधिकारी स्मिता सिंह ने इस पर कहा, ‘शिक्षा देने के लिए कोई वर्ग विशेष की जरूरत नहीं होती अगर कोई क्वालिफाइड है और वो बच्चों को सही शिक्षा दे सकता है तो इसमें हिन्दू-मुस्लिम वर्ग विशेष समुदाय से होने की कोई बात नहीं है। अगर वो मदरसे की शिक्षक की पात्रता रखते हैं तो वो जरूर मदरसे में पढ़ा सकते हैं इसमें धर्म विशेष से होने की कोई बात नहीं है।’

प्राइमरी स्कूल की तर्ज पर चलाए जाएंगे सभी मदरसे

उधर योगी सरकार ने यूपी के मदरसों को लेकर बड़ा फैसला लिया है। योगी सरकार अब न्यूनतम 6 वर्ष के नीचे बच्चों को ही मदरसों में भेजने की व्यवस्था कर रही है। मदरसे के बच्चों को दीनी तालीम (धार्मिक शिक्षा) के साथ अन्य विषयों को भी अनिवार्य रूप से पढ़ना होगा। परीक्षा के दौरान दीनी तालीम के अलावा अन्य विषयों को बिना उत्तीर्ण किए अगली क्लास में नहीं जाया जा सकेगा। अन्य विषय जैसे गणित, विज्ञान, सामाजिक शास्त्र और हिंदी अंग्रेजी जैसे विषय रहेंगे। इन विषयों का पाठ्यक्रम बेसिक प्राइमरी स्कूलों वाला होगा। वैकल्पिक विषय चुनने का विकल्पत्र अब खत्म कर दिया गया है। जबकि सभी विषय को अनिवार्य बनाया गया है और उनको उत्तीर्ण भी करना होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्तमान में यूपी में 560 सरकारी मदरसा है। वहीं सरकार से मान्यता प्राप्त 16 हज़ार के करीब है। एक अनुमान के मुताबिक सभी सरकारी, गैर सरकारी और निजी मदरसों की संख्या लगभग 50 हज़ार के करीब होगी। यूपी सरकार की मंशा इस शिक्षा के माध्यम से “एक हाथ में कुरान और एक हाथ मे लैपटॉप देना है” और धार्मिक पढ़ाई के साथ आधुनिक पढ़ाई को भी जोड़ना है। जिससे मदरसा से पासआउट विद्धार्थी आगे चल कर हायर एजुकेशन में जा सकें।

मदरसों पर बुलडोजर चलाने के लिए किया जा रहा है सर्वे: मौलाना अरशद मदनी

बावजूद इसके दिल्ली के जमीयत-ए-उलेमा हिंद के दफ़्तर में 06, सितम्बर 2022 को यूपी के 150 से ज़्यादा मदरसा संचालकों ने बैठक करके एक स्वर से मदरसों में सर्वे के निर्णय को गैर जरूरी बताया। बैठक में मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “ये सर्वे मदरसों पर बुलडोजर चलाने के लिए किया जा रहा है। इस मामले में यूपी सरकार की मंशा ख़राब है।”

बताते चलें कि यूपी की योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने राज्‍य में सभी ग़ैर सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने का फ़ैसला लिया है। इस फ़ैसले के मद्देनजर दिल्ली में मदरसों से जुड़े लोगों की अहम मीटिंग हुई जिसमें मौलाना महमूद मदनी समेत कई बड़े मुस्लिम जिम्मेदार मौजूद रहे। दिल्ली के जमीयत-ए-उलेमा हिंद के दफ़्तर में यूपी के 150 से ज़्यादा मदरसा संचालकों ने बैठक में हिस्‍सा लिया। बैठक में मौलाना अरशद मदनी ने कहा, “ये सर्वे मदरसों पर बुलडोजर चलाने के लिए किया जा रहा है। सरकार की मंशा ख़राब है और यह जान-बूझकर मुसलमानों को बुरा नाम देना चाहती है।”

इस बैठक में खास कर तीन बातों पर सहमति बनी
*सर्वे से पहले सरकार के साथ बैठक की जाएगी।
*एक समिति बनाई जाएगी जिसमें अरशद और महमूद मदनी शामिल होंगे।
*आम जनता को समझाया जाएगा कि मदरसे देश की संपत्ति हैं न कि कोई बोझ। मदरसों का किरदार देश की आज़ादी से लेकर आज तक अहम है।

जमीयत ए उलेमा हिंद के अध्‍यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा, “हम ऐसे बच्चों को शिक्षित करते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, और कभी शिक्षित न हो पाते। देश में मदरसों ने पिछले सौ साल में जो काम किया है, वह बेमिसाल है। आज मदरसों को ग़लत निगाह से देखा जा रहा है। मीडिया जिस तरह से मदरसों को पेश कर रही है वो दोनों क़ौमों में दूरी पैदा कर रही है। बता दें कि यूपी सरकार ने पिछले दिनों यूपी के ग़ैर सरकारी लगभग 16000 से ज़्यादा मदरसों का सर्वे कराने का फ़ैसला किया था। हर ज़िले की सर्वे की टीम में एसडीए, बीएसए और अल्पसंख्यक अधिकारी शामिल होंगे।

ये सर्वे 5 अक्टूबर तक ख़त्म कर 25 अक्टूबर तक रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। यूपी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री दानिश अंसारी का कहना है कि राज्य में 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसों के अलावा अलग-अलग जिलों में कई अन्य मदरसा चल रहे हैं, जिन्हें बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं है। ऐसे में उनका डेटा सरकार के पास होना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि वहां जो बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उन्हें सही तालीम मिल भी रही है या नहीं। बाकी वहां सुविधाएं कैसी हैं, ये भी देखा जाना है। यूपी सरकार के इस फ़ैसले को *एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ‘मिनी CAA’ बताया है।* मुस्लिम संगठनों का कहना है कि अगर ये सर्वे मदरसों का कराया जा रहा है तो ये सर्वे दूसरे धर्मों की तालीम देने वाले शिक्षण संस्थानों का भी कराया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संरक्षण में चलने वाले विद्या भारती के शिशुमंदिरों में तेजी से बढ़ रही है मुस्लिम छात्रों की संख्या

सरस्वती शिशु मंदिरों का सर्वे कराने की वकालत करने वाले एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और राजनीति से जुड़े लोग अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सोच मुस्लिम विरोधी करार देते रहते हैं। वहीं इसके उलट एक तथ्य यह भी है कि संघ से जुड़े विद्या भारती द्वारा संचालित स्कूलों में मुस्लिम छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बीते तीन सालों में इन स्कूलों में करीब 30 फीसदी मुस्लिम छात्रों की बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के इन स्कूलों में लगभग 12,000 मुस्लिम और ईसाई छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसके अलावा विद्या भारती में शिक्षकों के रूप में भी मुसलमानों की भर्ती हो रही है।

तथ्य ये है कि विद्या भारती के इन स्कूलों में मुस्लिम छात्र भी श्लोकों और मंत्रों का पाठ करते हैं। इतना ही नहीं, ये छात्र पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अपना भविष्य बना रहे हैं। हाल ही में प्रयागराज स्थित ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्र मोहम्मद अफसर और मोहम्मद सुहबान ने गुवाहाटी में “खेलो इंडिया यूथ गेम्स” में हैमर थ्रो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है। विद्या भारती के अतिरिक्त सचिव (पूर्वी उत्तर प्रदेश) चिंतामणि सिंह का कहना है कि हम जाति और धर्म से ऊपर उठ कर अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं। यह मुस्लिम छात्रों की संख्या में वृद्धि का प्रमुख कारण रहा है। चिंतामणि सिंह के अनुसार साल 2016 में 49 जिलों वाले पूर्वी यूपी में विद्या भारती के स्कूलों में मुस्लिम छात्रों की संख्या 6,890 थी। वहीं साल 2019 में यह संख्या बढ़कर 9,037 हो गई है।

चिंतामणि सिंह के बयान को यदि सच मानें तो प्रदेश में विद्या भारती स्कूलों में लगभग छह लाख छात्र पढ़ते हैं।जिनमें अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि सरस्वती शिशु मंदिर और सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ने वाले कई मुस्लिम लड़के और लड़कियां खेल, सांस्कृतिक गतिविधियों और ऐकेडमिक्स में अपने स्कूल का नाम रोशन कर चुके हैं। वहीं मुस्लिम छात्रों के परिजन मानते हैं कि सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षा की गुणवत्ता देखने के बाद वहां अपने बच्चों को भेजने का फैसला किया। बता दें कि इससे पहले मिथक था कि ये स्कूल केवल हिंदुओं के लिए हैं और यहाँ अल्पसंख्यकों का ऐडमिशन नहीं करते हैं।

उत्तर प्रदेश के शिक्षा जगत में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए किये जा रहे नये प्रयास

शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के ‘पंहुच’, ‘प्रज्ञान’, ‘पंख’, ‘परख’ एवं ‘पहचान’ पोर्टल का शुभारम्भ तथा 39 नवीन हाई स्कूल एवं 14 नवीन इण्टर कॉलेज भवनों का शिलान्यास किया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बार 05 सितम्बर को भारत के द्वितीय राष्ट्रपति, महान शिक्षाविद व दार्शनिक डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयन्ती को शिक्षक दिवस के अवसर पर कहा कि डॉ0 राधाकृष्णन ने भारत के दार्शनिक पहलुओं को बड़ी सहजता के साथ प्रस्तुत किया था। उनकी सेवाओं के लिए आजाद भारत में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह अत्यन्त प्रसन्नता का क्षण है कि आज प्रदेश के शिक्षा जगत में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए कार्य कर रहे प्रधानाचार्यों और शिक्षकों को सम्मानित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री लखनऊ स्थित लोक भवन में शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजित बेसिक शिक्षा विभाग के अन्तर्गत राज्य अध्यापक पुरस्कार एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग के सर्वाेत्कृष्ट मेधावी छात्रों के विद्यालयों के प्रधानाचार्यों के सम्मान समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने बेसिक शिक्षा के तहत 10 शिक्षकों को “राज्य अध्यापक पुरस्कार” प्रदान किया तथा माध्यमिक शिक्षा के तहत उत्कृष्ट मेधावी छात्रों के विद्यालयों के 08 प्रधानाध्यापकों को सम्मानित किया।

उन्होंने कहा कि आज जिन शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को सम्मान प्रदान किये गये हैं, यह केवल सम्मान नहीं, बल्कि उनके लिए नई जिम्मेदारी है। शिक्षकों की प्रतिस्पर्धा स्वयं अपने आप से होती है। शिक्षकों ने जितना कार्य किया है, उससे आगे बढ़ना होगा। दूसरों के सामने एक नया उदाहरण प्रस्तुत करना है। शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पुरस्कार चयन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा विशेष कार्य किये गये हैं।

योग्य शिक्षक को ही सम्मानित किया जा रहा है। आज यहां जिन शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों को सम्मान मिला है, उन्हें अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन के साथ अपने विद्यालय को एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का केन्द्र बिन्दु बनाना है। यह सम्मान उसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इस सम्मान में शिक्षकों को मिलने वाले 25 हजार रुपये, दो साल का सेवा विस्तार, परिवहन निगम की बसों में निःशुल्क बस यात्रा प्रमुख नहीं हैं, बल्कि उन पर एक नई जिम्मेदारी भी आ रही है। उन्हें आगे बढ़कर समाज में नये आयाम स्थापित करने होंगे। यह उनके जीवन में आत्म संतुष्टि का माध्यम बनेगा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से पस्त थी, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मंथन कर रहा था। वर्ष 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरे देश में लागू की गयी। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति सैद्धान्तिक, व्यावहारिक व तकनीकी ज्ञान से हमारे शिक्षण संस्थानों को ओत-प्रोत करने और छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए देश व प्रदेश में जो अभियान प्रारम्भ हुए हैं, वह भारत को उसकी पुरातन पहचान दिलाकर जगद्गुरु के रूप में स्थापित करने में सफल होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा जगत में बहुत सम्भावनाएं हैं। थोड़े से प्रयास से परिवर्तन हो सकता है। बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में विगत 05 वर्षों में किये गये प्रयासों के परिणाम सबके सामने हैंं। वर्ष 2017 में हमारी सरकार के गठन के साथ ही यह लक्ष्य तय कर दिया गया था कि वर्ष 2018 में होने वाली टेक्निकल, वोकेशनल, हायर सेकेण्ड्री तथा बेसिक एजुकेशन में नकल विहीन परीक्षा सम्पन्न की जाएगी। इसके लिए सम्बन्धित विद्यालय के प्रधानाचार्य व शिक्षक की जवाबदेही तय की गयी। विद्यालयों मे पठन-पाठन का माहौल बनाया गया। शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया। रिटायर्ड शिक्षकों की सेवाएं ली गईं। विद्यालयों को अनुमति दी गई कि वे विज्ञान, गणित और अंग्रेजी के शिक्षकों को मानदेय पर रख सकें। वर्ष 2017 के बाद राज्य सरकार ने शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ की। वर्ष 2018 में माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाओं में लगभग 56 लाख छात्र सम्मिलित हुए थे। यह परीक्षाएं नकल विहीन तथा शान्तिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हुईं। पहले से दो गुना परिणाम प्रदेश में आया था।

मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि एक समय उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर भारत तथा मध्य भारत में शिक्षकों की आपूर्ति का केन्द्र हुआ करता था। उत्तर प्रदेश से पढ़ा-लिखा व्यक्ति शिक्षक बनकर मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा तथा उड़ीसा में जाकर वहां की शिक्षा व्यवस्था की कमान को सम्भाले था। सरकार के स्तर पर ध्यान न देने के कारण तथा स्वयं को समय के अनुरूप न ढालने के कारण शिक्षा की यह आधारभूमि अपने आप में कुन्द हो गई। जब जवाबदेही के साथ कार्यवाही प्रारम्भ हुई, तो उसके परिणाम भी सामने आते गये। बेसिक शिक्षा परिषद में 01 लाख 26 हजार से अधिक शिक्षकों तथा माध्यमिक शिक्षा में 40 हजार से अधिक शिक्षकों के पदों को पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से भरा गया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जुलाई, 2017 में प्रदेश में “स्कूल चलो अभियान” प्रारम्भ किया गया था। बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में वर्ष 2016 में 01 करोड़ 34 लाख छात्र-छात्राएं अध्ययनरत थे। विगत 05 वर्षों में पिछले ढाई वर्ष कोरोना महामारी से जूझते हुए व्यतीत हुए। जो क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुए उनमें शिक्षा क्षेत्र भी था। कोरोना कालखण्ड में तकनीक का उपयोग करने का प्रयास हुआ। अनेक प्रकार के पोर्टल विकसित किये गये, ऑन लाइन एजुकेशन की व्यवस्था की गई। दूरदर्शन के अनेक चैनल प्रारम्भ किये गये। जुलाई, 2017 में शुरू हुआ ‘स्कूल चलो अभियान’ अपनी सार्थकता को प्राप्त कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आज बेसिक शिक्षा परिषद में छात्रों की संख्या बढ़कर 01 करोड़ 92 लाख हो चुकी है। बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी का होना प्रमाणित करता है कि वहां पर शिक्षा का स्तर बढ़ा है। इस दौरान आपॅरेशनल कायाकल्प भी चलाया गया।

मुख्यमंत्री की मंशा है कि विद्यालयों को अपने पुरातन छात्रों को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। इसके माध्यम से शासन की सहायता के बिना भी विद्यालयों का कायाकल्प करते हुए उन्हें बुनियादी सुविधाओं से सम्पन्न किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पहल की आवश्यकता है। राज्य सरकार ने विद्यालयों में पुरातन छात्र परिषद के गठन की पहल की है।

उल्लेखनीय है कि एक शिक्षक केवल शिक्षक एवं सरकारी कर्मचारी नहीं होता, वह समाज व राष्ट्र का संयोजक भी होता है। राष्ट्र का निर्माता होता है। उसको समाज की नींव मजबूत करनी होती है। विद्यालयों में नयेपन तथा शिक्षा के सर्वांगीण विकास के लिए किया जाने वाला प्रयास आपॅरेशनल कायाकल्प का हिस्सा हैं। सरकार की मंशा के अनुरूप प्रदेश के 01 लाख 35 हजार बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों को जनसहभागिता के माध्यम से बुनियादी सुविधाओं से आच्छादित किया गया है। इन विद्यालयों में भवन, फर्श, फर्नीचर, टॉयलेट, पेयजल, सोलर लाइट, स्मार्ट क्लास एवं लाइब्रेरी की सुविधा प्रदान की गई है।

सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग की विज्ञप्ति के अनुसार बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में सभी सुविधाएं देने के लिए प्रधानाचार्यों, शिक्षकों और विद्यालय की पुरातन छात्र परिषद तथा प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों ने संयुक्त प्रयास किया है। उसका परिणाम इन विद्यालयों में देखने को मिल रहा है। निपुण भारत अभियान इसी का हिस्सा है। प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप विद्यालय, ग्राम पंचायत, विकासखण्ड और अन्ततः प्रदेश को निपुण बनाना है। प्रदेश के सभी शिक्षक बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना प्रारम्भ कर, गांवों में भ्रमण करते हुए बच्चों के परिवारों से मिलें तो सामाजिक परिवर्तन का एक बहुत बड़ा माध्यम उनके सामने होगा।

गांव के इतिहास, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थिति की जानकारी शिक्षकों के पास होनी चाहिए। यह बच्चों के बारे में परिवार को जानकारी देने व लेने का एक माध्यम होगा। इसके माध्यम से डाटा कलेक्ट करके विद्यालय शिक्षा जगत की बड़ी सेवा कर सकते हैं। प्रदेश के ऑपरेशनल कायाकल्प तथा प्रेरणा ऐप को सक्सेज़फुल स्टोरी के रूप में नीति आयोग द्वारा स्वीकार किया गया है। प्रदेश के सभी शिक्षकों द्वारा इस दिशा में किया जाने वाला प्रयास बच्चों के सर्वांगीण विकास का माध्यम बन सकता है।

विज्ञप्ति के अनुसार प्रदेश में विगत 05 वर्षों में बहुत कार्य किया गया है। अभी बहुत कार्य होना बाकी है। शिक्षकों के ट्रांसफर की प्रक्रिया मेरिट के आधार पर पूर्ण की जा रही है। नीति आयोग ने देश में 112 आकांक्षात्मक जनपद चिन्हित किये थे, जिनमें उत्तर प्रदेश के 08 जनपद शामिल हैं। प्रदेश के आकांक्षात्मक जनपदों ने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्किल डेवलपमेन्ट जैसे पैरामीटरों में सुधार किया है। देश के टॉप-10 आकांक्षात्मक जनपदों की रैंकिंग में प्रदेश के 05 जनपद तथा टॉप 20 में सभी 08 जनपद सम्मिलित हैं। प्रदेश में 100 आकांक्षात्मक विकासखण्डों का चयन किया गया है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संसाधन, कृषि, स्किल डेवलपमेन्ट, वित्तीय समावेशन आदि क्षेत्रों में पीछे हैं। उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़कर सामान्य विकासखण्डों की तर्ज पर विकसित करने के लिए कार्य करने की दिशा में प्रयास प्रारम्भ किया गया है। इस हेतु शिक्षा विभाग सहित अन्य सभी विभागों में मानव संसाधन की व्यवस्था बनाए रखने के साथ तकनीकि के उपयोग की कार्यवाही की जा रही है। इन विकासखण्डों को तय समय-सीमा में सामान्य विकासखण्ड की तर्ज पर आगे बढ़ाया जायेगा।

इसी तरह बच्चों को सैद्धान्तिक ज्ञान के अलावा व्यावसायिक ज्ञान भी प्रदान करना आवश्यक है। बच्चों को शिक्षा के अलावा स्वच्छता सम्बन्धी कार्यों के लिए भी प्रेरित करना चाहिए। अपना कार्य स्वयं करना स्वावलम्बन का लक्षण है। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में जब व्यक्ति कार्य करेगा, तभी उसे सफलता प्राप्त होगी। शिक्षकों को स्वयं स्वच्छता सम्बन्धी कार्य करते हुए बच्चों को प्रेरित करना चाहिए। कोई कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता है। विद्यालयों के प्रति शिक्षकों को आत्मीयता का भाव पैदा करना होगा। शिक्षकों को विद्यालयों के प्रति धर्मस्थल जैसी पवित्र सोच विकसित करने की आवश्यकता है।

शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री ने माध्यमिक शिक्षा विभाग के कार्यक्रमों से सम्बन्धित ‘पहुंच’, ‘प्रज्ञान’, ‘पंख’, ‘परख’ एवं ‘पहचान’ पोर्टल का शुभारम्भ किया। उन्होंने 39 नवीन हाई स्कूल एवं 14 नवीन इण्टर कॉलेज भवनों का शिलान्यास भी किया। उन्होंने बेसिक शिक्षा विभाग के अन्तर्गत संचालित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में अध्ययनरत छात्राओं तथा दिव्यांग बच्चों को स्टाईपेंड एवं एस्कार्ट एलाउन्स का डी0बी0टी0 के माध्यम से प्रेषण किया। कार्यक्रम में 03 बच्चों द्वारा निपुण लक्ष्य प्राप्ति का प्रदर्शन किया गया।

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