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शिक्षा का दर्शन और राष्ट्र का दर्शन एक होना चाहिए – डॉ. कृष्ण गोपाल

लखनऊ। आज डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ में विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान और संलग्न संस्थानों की अखिल भारतीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसके उदघाटन सत्र में अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए सर संघ कार्यवाह डा कृष्ण गोपाल ने कहा कि भारत में नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के मौलिक केंद्र थे, यहां जावा सुमात्रा, जापान आदि देशों से विद्यार्थी पढ़ने आते थे।

शिक्षा का दर्शन और राष्ट्र का दर्शन दो नही होता है, एक ही होता है। हमने शिक्षा को यज्ञ माना था, यज्ञ अपने लिए नही होता है, दूसरे के लिए होता है। ज्ञान यज्ञ का मतलब है दूसरों को ज्ञान देना। प्राध्यापकों की जिम्मेदारी है अपने विषय में प्राचीनतम ज्ञान का अध्ययन करें।

शिक्षा में भारतीयता का तत्व आना चाहिए। प्रो कैलाश चंद्र शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विद्या भारती ने जिन उद्देश्यों के लिए काम किया था। वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति में परिलक्षित होता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डीपी सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त कर अच्छे व्यक्तित्व के धनी वैश्विक नागरिक का निर्माण करना ही हमारा उद्देश्य है।

उच्च शिक्षा का लक्ष्य केवल ज्ञान अर्जित करना नही है बल्कि आत्म ज्ञान अर्जित करना है। विश्व बाजार नही है बल्कि विश्व परिवार है। हमारे चिंतन के आधार पर कैसे विश्व निर्माण करना है। इसी दृष्टि से हमे भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाना है।

विश्वविद्यालय परिवार को और से कुलपति प्रो. राणा कृष्ण पाल सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश विद्यार्थियों मे राष्ट्रीय गौरव का निर्माण करना है। डा शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ समावेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के इसी अपने को साकार कर रहा है। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो आर आर सिंह ने किया।

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