• जन्मजात टेढ़े-मेढ़े पंजो (क्लबफूट) का हुआ निःशुल्क उपचार
• एसएसपीजी, डीडीयू चिकित्सालय व बीएचयू के क्लबफूट क्लीनिक में होता है उपचार
• शुरुआत में नहीं कराया इलाज तो हो सकती है अपंगता
वाराणसी। शिशु के जन्म के दौरान मुड़े हुये पंजे किसी भी माता-पिता के चेहरे की मुस्कान को कम कर सकती है। कुछ यही हाल था आठ माह की बच्ची वैष्णवी के पिता राकेश मौर्य का। ककरमत्ता निवासी राकेश बताते हैं कि जब वह पैदा हुई थी तो उसके मुड़े हुये पंजे देखकर हम बहुत चिंतित हो गए थे। उन्हें लग रहा था कि इसका इलाज कैसे होगा। इसमें बहुत खर्च भी आएगा। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह अपनी बच्ची का इलाज नहीं करा पा रहे थे। एक दिन आरबीएसके काशी विद्यापीठ की टीम ने बच्चे को देखा तो उन्होने तुरंत उसे एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय स्थित क्लबफूट क्लीनिक जाने के लिए कहा। इसके बाद राकेश उसे क्लीनिक ले गए। यहाँ शुरुआती जांच से लेकर पूरा उपचार निःशुल्क हुआ। अभी वैष्णवी विशेष प्रकार के जूते (ब्रेसेस) पहनती हैं और सहारे के साथ खड़ी भी हो जाती है। राकेश का कहना है कि उसके पंजे सीधे देखकर बहुत बहुत खुश हैं मानो जैसे नई ज़िंदगी मिल चुकी है।
मँड़ुआडीह निवासी गोविंदा का कहना है कि प्रिंस जब पैदा हुआ था तो बहुत परेशान हुये थे। जब आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के लिए पहुंची तो उसे देखकर बताया कि मंडलीय चिकित्सालय में इसका निःशुल्क उपचार होता है। इसके बाद गोविंदा ने अपने बच्चे का पूरा उपचार निःशुल्क करवाया। अभी प्रिंस सात माह का है और उसके पंजे काफी हद तक सीधे हो चुके है। डॉक्टर ने अभी तीन से चार साल तक ब्रेसेस पहनने के लिए कहा है । इसी तरह पिंडरा निवासी दिल नवाज़ आलम के बेटे अयान आलम, जयापुर निवासी सर्वेश पटेल के बेटे चीकू और कई बच्चों को राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (#आरबीएसके) के अंतर्गत उनके जन्मजात टेढ़े-मेढ़े पंजो का निःशुल्क उपचार हो रहा है। इन सभी परिजनों ने सरकारी योजना, चिकित्सकों और अनुष्का फ़ाउंडेशन की प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव नेहल कपूर का हृदय से धन्यवाद दिया।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने कहा कि टेढ़े-मेढ़े पंजो सहित जन्मजात 39 प्रकार की बीमारियों का निःशुल्क उपचार आरबीएसके के माध्यम से लगातार किया जा रहा है । गरीब परिवारों के लिए यह योजना वरदान साबित हो रही है। इन बीमारियों के लिए अलग-अलग चिकित्सालयों को चिन्हित किया गया है, जहां इनका निःशुल्क इलाज सुनिश्चित कराया जा रहा है। आरबीएसके के तहत सभी आठों ब्लॉकों में दो-दो टीमें बनाई गई हैं जो लगातार बच्चों की स्क्रीनिंग का कार्य रही हैं और जन्मजात बीमारियों से ग्रसित बच्चों को इलाज के लिए रेफर कर रही हैं।
नोडल अधिकारी व एसीएमओ डॉ एके मौर्य ने बताया कि वर्तमान में जन्म से एक साल तक के बच्चों के टेढ़े पंजों (क्लबफुट) के निःशुल्क इलाज की व्यवस्था एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय, डीडीयू चिकित्सालय पाण्डेयपुर और बीएचयू के क्लबफूट क्लीनिक में सुनिश्चित की गयी है। उन्होने बताया कि जनपद में एक वर्ष से छोटे बच्चे जो कि क्लबफुट से पीड़ित हैं वह अपने नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर आरबीएसके टीम के सहयोग से संपर्क कर नि:शुल्क सुविधा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। डॉ मौर्य ने बताया कि बच्चे का इलाज जितना जल्दी संभव हो सकेगा उतना जल्दी बच्चे का पैर सामान्य हो जाएगा। इस प्रक्रिया में बच्चे के पैर को #पोंसेटी_तकनीक से ठीक किए जाते हैं । कास्टिंग और टेनोटोमी प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें अगले तीन से चार साल तक ब्रेसेस पहनाए जाते हैं । उन्होने कहा कि अगर ऐसे बच्चों का इलाज सही समय पर नहीं कराया गया तो वह आगे चलकर दिव्यांगता की श्रेणी में आ सकते हैं।
प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव नेहल ने बताया कि वर्ष 2019 से अभी तक वाराणसी में 217 बच्चों का पंजीकरण किया जा चुका है। इनमें से 70 फीसदी बच्चों का सफलतापूर्वक इलाज कर नई ज़िंदगी दी जा चुकी है जबकि शेष बच्चे इलाज पर हैं। एसएसपीजी अस्पताल के क्लबफूट क्लीनिक में ओर्थो विशेषज्ञ डॉ एके राय के नेतृत्व में बच्चों का इलाज किया जा रहा है। अनुष्का फ़ाउंडेशन बच्चों को मुफ्त में ब्रेसेस व अन्य चिकित्सीय सामग्री प्रदान करने में कर रही है। उन्होने कहा कि जिन बच्चों को ऐसी समस्या है और वह इलाज करवाना चाहते हैं तो एसएसपीजी में बुधवार, डीडीयू चिकित्सालय में शनिवार और बीएचयू में गुरुवार को इस नंबर (9136945515) पर संपर्क कर सकते हैं।
क्या हैं पोंसेटी तकनीक – क्लबफूट का इलाज पोंसेटी विधि के जरिये तीन चरणों मे किया जाता है। पहले चरण मे एक-एक सप्ताह के अंतराल मे 4 से 8 प्लास्टर लगाने से पैर सामान्य स्थिति मे आ जाता है। दूसरे चरण मे पंजे के पिछले भाग मे एक छोटा सा चीरा लगा कर तीन सप्ताह का प्लाटर फिर से लगाया जाता है। अंतिम चरण ब्रेसिंग का रहता है जिसमे बच्चे को पाँच साल तक ब्रेस पहनने पड़ते है। पहले छह महीने मे ब्रेस को 22 घंटे पहनाते हैं और उसके बाद पाँच साल तक दिन या रात मे सोते समय ब्रेस पहनना पड़ता है।
रिपोर्ट-संजय गुप्ता