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फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले में होगा ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे

• दो मूल्यांकन इकाइयों के चिन्हित 30-30 शहरी मोहल्लों में होगा सर्वेक्षण

• एक मोहल्ले से 20 वर्ष से ऊपर के 105 लोगों की होगी जांच, 15 टीमों को दिया प्रशिक्षण

• पिछले सर्वेक्षण में एक फीसदी से भी कम मिली माइक्रो फाइलेरिया दर

कानपुर नगर। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जनपद को फाइलेरिया मुक्त बनाने के लिए ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे (टास) यानि संचरण मूल्यांकन सर्वेक्षण शनिवार से शुरू होगा। सर्वेक्षण जनपद के नगर स्तरीय तीन प्लानिंग इकाईयों अनवरगंज, हुमायूंबाग और नवाबगंज पर बनीं दो मूल्यांकन इकाइयों के अंतर्गत चिन्हित 30-30 कलस्टर (शहरी मोहल्लों) में चलाया जायेगा। 15 कार्य दिवसीय सर्वेक्षण अभियान में एक शहरी मोहल्ले से 105 लोगों की जांच किट के माध्यम से की जाएगी। मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय के आरसीएच सभागार में शुक्रवार को कुल 15 टीमों को दो बैच में प्रशिक्षित किया गया।

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मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ आलोक रंजन ने बताया कि राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत संचालित संचरण मूल्यांकन सर्वेक्षण अभियान के लिए समस्त तैयारियाँ कर ली गई हैं। जांच के लिए चयनित नगर स्तरीय तीनो प्लानिंग इकाईयों पर पर्याप्त मात्रा में किट भेजी जा चुकी हैं। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य पिछले तीन वर्षों में आईडीए-एमडीए राउंड में लोगों को फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाई जा चुकी है। इस क्रम में अब पता लगाना है कि लक्षित आबादी के सापेक्ष एक प्रतिशत कम लोग फाइलेरिया से ग्रसित हैं या नहीं।

फाइलेरिया

एसीएमओ व नोडल अधिकारी डॉ आरपी मिश्रा ने बताया कि फाइलेरिया (हाथीपाँव) लाइलाज है लेकिन एमडीए अभियान के दौरान दवा खाने से इस रोग से बचा जा सकता है। इस दवा का सेवन दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर बीमार को छोड़कर सभी को करना है। लगातार पांच वर्षों तक साल में एक बार दवा खाने से इस बीमारी के होने से रोकने या नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

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प्रशिक्षक विश्व स्वास्थ्य संगठन से डॉ नित्यानंद ठाकुर ने बताया कि जनपद के तीनो डीटीसी अनवरगंज, हुमायूंबाग और नवाबगंज पर इस सर्वेक्षण के सफलतापूर्वक संचालन के लिए दो एवेलुएशन यूनिट (मूल्यांकन इकाई) बनाई गई हैं। एक मूल्यांकन इकाई में 30 क्लस्टर (शहरी मोहल्ले) चिन्हित किए गए हैं। एक शहरी मोहल्ले से 20 वर्ष से ऊपर के 105 लोगों की जांच एफटीएस किट से की जायेगी। इस तरह देखा जाए तो एक मूल्यांकन इकाई से करीब 3150 जांच और दो मूल्यांकन इकाई से करीब 6,300 लोगों की जांच की जायेगी। किट से होने वाली जांच में धनात्मक पाये जाने पर उस व्यक्ति का नाइट ब्लड सैंपल एकत्रित किया जाएगा।

फाइलेरिया

जिला मलेरिया अधिकारी (डीएमओ) एके सिंह ने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए हर मूल्यांकन इकाई (ईयू) में पांच-पांच लाख की आबादी को कवर करते हुए गांवों को चयन किया गया है। पूरे सर्वेक्षण के लिए 15 टीम बनाई गई हैं। एक टीम में लैब टेक्नीशियन, 2 फील्ड वर्कर, 1 एएनएम शामिल हैं। सहयोग के लिए हर क्षेत्र की आशा व स्वास्थ्य कार्यकर्ता रहेंगे। उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण से पूर्व प्री ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे (टास) और रात्रि रक्त पट्टिका संग्रह सर्वेक्षण पिछले वर्ष पूरे अक्टूबर तक चला था।

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यह सर्वेक्षण जनपद के तीन ब्लॉक व 10 शहरी पीएचसी पर चलाया गया था। इसमें फाइलेरिया टेस्ट स्ट्रिप (एफ़टीएस) के जरिये व्यक्तियों की जांच की गई थी। इसमें तीन शहरी इकाईयों में माइक्रोफाइलेरिया दर एक फीसदी से कम मिली और शासन की ओर से मिले दिशा-निर्देशानुसार फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत ही शनिवार से ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे (टास) का कार्य शुरू किया जाएगा। अब टास के अंतिम परिणाम में यह देखना है कि इन तीन प्लानिंग इकाईयों में यदि माइक्रो फाइलेरिया दर (एमएफ़ रेट) एक प्रतिशत से भी कम मिलती है तो हम यह मान सकते हैं कि यह इकाईयां फाइलेरिया उन्मूलन की ओर निरंतर बढ़ रहीं है।

फाइलेरिया

इस दौरान सहायक जिला मलेरिया अधिकारी यूपी सिंह, भूपेंद्र सिंह, पाथ संस्था से डॉ अनिकेत, सीताराम चौधरी, सहयोगी संस्था सीफॉर के प्रतिनिधियों सहित अन्यलोग मौजूद रहे।

रिपोर्ट-शिव प्रताप सिंह सेंगर

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