महाराजा रंजीत सिंह के तीर रखने के लिए बनाया गया बेशकीमती तरकश महीने के आखिर में लंदन में नीलाम होगा। भारतीय सौर्य गाथा की इस बहुमूल्य धरोहर जो मखमली कपड़े में लिपटी और चमड़े की पट्टी से कसी हुयी है इसपर सोने के से बेहद खूबसूरत कारीगरी की गई है।
महाराजा रंजीत सिंह की पत्नी जिंदन नजरबंद
23 अक्टूबर को होने वाली बोहम्स की नीलामी में महाराजा सिंह का बहुमूल्य पन्ने और मोती जड़ित हार भी नीलाम किया जायेगा। 23 अक्टूबर को बोहम्स और इंडियन आर्ट सेल में होने वाली नीलामी में तरकश की अनुमानित कीमत 80 हजार पौंड (करीब 78 लाख रुपये) और एक लाख बीस हजार पौंड (करीब एक करोड़ 17 लाख रुपये) के बीच संभावित है।महाराजा रंजीत सिंह की पत्नी महारानी जिंदन कौर ने पांच साल के बेटे दलीप को सत्ता दिलाने के लिए 1843 में दोबारा सेना खड़ी करके ब्रिटिश आक्रमणकारियों से लोहा लिया लेकिन उन्हें बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। नेपाल के राजा के महल में नजरबंद जिंदन भागने में सफल रहीं और इंग्लैंड जाकर अपने बेटे और जेवरात हासिल करने में सफल रहीं। जिंदन के कान के दो बुंदे इसी साल अप्रैल में बोहम्स इस्लामिक और इंडियन आर्ट सेल में पहले ही 1,75,000 पौंड में नीलम हो चुके हैं।
शेर-ए-पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के लिए विशेषतौर
भारतीय और इस्लामिक कला के प्रमुख ओलिवर व्हाइट ने बताया कि बेहद आकर्षक कलाकृति लाहौर के खजाने से यहाँ नीलाम होने के लिए है। यह वर्ष 1838 में शेर-ए-पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह के लिए विशेषतौर पर बनाया गया था जिसका प्रयोग महाराज रंजीत सिंह विशेष अवसरों पर किया करते थे। तरकश को उपयोग बड़े सुरक्षित तरीके से किया गया लग रहा है जिसके चलते आज भी वह बेहद अच्छी हालत में है। जो प्रमाण मिले है उसके मुताबिक महाराजा रंजीत सिंह ने वर्ष 1838 में इसे अपने बड़े बेटे खड़क सिंह की शादी पर इसे खसतौर पर अपने लिए बनवाया था।
इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भेंट
वर्ष 1839 में महाराज रंजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब की अस्थिरता का फायदा उठाकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1846 में युद्ध जीतने के बाद लाहौर के शाही खजाने में बेशकीमती कोहिनूर हीरे और तिमूर माणिक (रूबी) के साथ ही इसे भी रखवा दिया था। बाद में यह सारा खजाना ब्रिटिश अफसरों ने इंग्लैंड की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया के लिए बतौर भेंट लंदन भेज दिया। (एजेंसी)