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बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

शरद ने कुमाऊंनी महिलाओं के 200 से अधिक चित्र बनाए थे, जो मंत्रमुग्ध करते हैं : भूपेन्द्र अस्थाना

लखनऊ। प्रदेश के प्रसिद्ध चित्रकार शरद पाण्डेय को इस संसार से शारीरिक रूप से विदा हुए आज सात वर्ष बीत गए हैं। लेकिन उनकी उपस्थिति उनके कला के माध्यम से आज भी है और सदियों तक रहेगी। सप्रेम संस्थान ने बुधवार को उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर उन्हे याद किया। उनसे और उनकी कलाकृतियों से जुड़ी बातों को साझा करते हुए चित्रकार, क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की एक बार उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी क्यूरेट करने का मौका मिला था जिसके चलते उनके और उनके चित्रों के और करीब आने का मौका मिला था। वे मुझे बहुत मानते थे।

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बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

प्रसिद्ध चित्रकार शरद पाण्डेय कुमाऊंनी महिलाओं के 200 से अधिक चित्र बनाए थे जो मंत्रमुग्ध कर देने वाले थे। यह उनकी अपनी मौलिक शैली रही और यही उनके प्रसिद्धि का कारण भी बना हालांकि उनके आरंभिक चित्रो में जहाँ आधुनिक कला और एम एफ हुसैन का प्रभाव दिखता है वहीं बाद के उनके चित्रों में भारतीय सिनेमा के साथ भारतीय स्त्रियों पर आधारित उनके चित्रों की दो दशक लम्बी यात्रा का उत्सव भर नही है,बल्कि एक कलाकार द्वारा कैनवास पर अपने खास अंदाज में लिखी गई नारी की जिजीविषा, उसकी पीड़ा, उसके संघर्ष या कहे उसके सुख दुःख की गाथा भी दिखती है।

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यह रचना यात्रा बताती है की कलाकार के तौर पर किस प्रकार शरद पाण्डेय अपनी विशिष्टताओं पर लम्बे समय तक ठहर कर सुस्ताने या उनकी प्रंसंशा का जश्न मनाने के हामी नही थे बल्कि मंजिल को रास्ता बनाते हुए ब्रश या क्रेयॉन उठाकर फिर नई नई पहचान विकसित करने में लग जाते थे,तभी तो यह सफर अगर कुंमायु और गढ़वाल की इन्तजार करती महिलाओं के साथ शुरू होता है।जहां पहाड़ की पृष्ठभूमि में स्त्रियों की समस्याओं के पहाड़ होते जाने की कथा है, जो उनकी सूनी आँखों में नज़र आती है। इन विशिष्टताओं को नया रूप “एक्सप्रेशन्स” प्रदर्शनी में भी देखने को मिला था। जहां स्त्री चेहरे विभिन्न भाव भंगिमाओं के साथ हमसे संवाद करते है।

बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

शरद पाण्डेय के चित्रो में आम स्त्रियों के चेहरे है. ये चेहरे आईने की तरह उनके जीवन को प्रतिबिंम्बित करते चलते है उनके चित्र भाव प्रधान हैं। शरद की हर एक चित्र एक एक कहानी बयां करती है। साथ ही उनके चित्रों में अभिव्यक्ति के कई रंग देखने को भी मिलता है।

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हकीकत से परे दिखती कृतियों में कल्पनाशीलता के रंग उभर कर सामने आते है। एक्रेलिक एवं पेंसिल, चारकोल माध्यम में बनी कृतियों में हल्के रंगो का प्रयोग बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया है जो एक अलग प्रकार से प्रभावित करता है। शरद पाण्डेय के चित्रों में भारतीय स्त्री का सौंदर्य बोध नजर आता है। उनके सारी कृतियों में यूँ तो केवल युवतियों के चेहरे को ही उकेरा गया है पर एक कृति में उन्होंने पूरी युवती की परिकल्पना को भी दर्शाया है। इसमें द्वार पर कड़ी युवती को चित्रित किया गया है। पूरी तरह से कहे तो शरद के चित्रों में व्यक्तिचित्रो को एक नया आयाम दिया गया है।

बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

वे अपने चित्रों में नारी को केंद्रीय पात्र बनाकर मार्मिक दृश्य सूत्र प्रस्तुत करने की कोशिश करते थे। चित्रों में आशा भरी नज़रे, इंतज़ार करती महिलाओं के भावों को मुख्य रूप से अपने चित्रों में स्थान देते थे। इनकी भूरे रंग की प्रधानता लिए चित्र मुख्य रूप से एक अलग प्रभाव छोड़ती है। इसके साथ ही लाल तथा हरे रंग का प्रयोग भी कहीं पीछे नहीं है। उनका भी अपना एक अलग प्रभाव के साथ मुद्राओं में चार चांद लगाती नज़र आती हैं। सौम्यता उनके चित्रों की मुख्य विशेषता है।कुछ चित्रों में सामान्य सी बातें नज़र आती हैं जैसे लालटेन। काव्यगत सौंदर्य को प्रस्तुत करने में चित्र मुख्य रूप से सफल हैं।

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लालटेन की रोशनी में इंतज़ार करती महिलाओं के भावों से एक अलग संदेश भी दृष्टिगोचर होता है। लेकिन शरद पांडेय ने कभी अपने चित्रों के मुख्य पात्र कौन है ? कभी बताया नही। शायद यह उनकी मात्र एक कल्पना थी।जो विभिन्न रूपों में सामने आती रही। रंगों में काफी हद तक समानता होने के बाबजूद हर चित्रों में अलग अलग भावों को प्रस्तुत करने में शरद सफल रहे। महिला के माध्यम से जीवंत संस्कृति को दर्शाने का भी बखूबी प्रयास किया गया है। चित्र में महिला पारंपरिक गहनों के साथ ही वेशभूषा से भी ध्यानाकर्षित करती है।

बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश लखनऊ के प्रख्यात चित्रकार शरद पांडे का एक लंबी बीमारी के कारण 5 जुलाई 2016, मंगलवार सुबह देहांत हो गया था। उनकी मृत्यु की खबर से कला के क्षेत्र में शो की लहर दौड़ पड़ी थी। शरद पांडेय का जन्म 20 अक्टूबर 1958 में लखनऊ में हुआ था। उन्होने कला की शिक्षा लखनऊ कला महाविद्यालय से ली थी। इनके चित्रों की प्रदर्शनी लखनऊ, दिल्ली, भोपाल, नैनीताल, कोलकाता, अल्मोड़ा ,राजस्थान में मुख्य रूप से लगाई जा चुकी हैं। इन्हें राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।

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शरद राजधानी लखनऊ की न्यू हैदराबाद कॉलोनी में रहते थे। वह अपनी चित्रकारी के लिए पूरे देश प्रदेश भर में मशहूर थे। उन्होंने मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन के संपर्क में भी काम किया था। शरद पांडे ने सिनेमा के सौ साल पूरे होने पर एक एग्जीबिशन भी लगाई थी। उन्होंने हिंदी फिल्मों के मशहूर डायलॉग्स और लाउडस्पीकर से फिल्मों का प्रचार को भी अपनी पेंटिंग्स में उकेरा था। चाहे वह ‘पाकीजा’ में राजकुमार द्वारा मीना कुमारी को देखकर बोला गया डायलॉग, ‘आपके पैर बहुत हसीन है, इन्हें जमीन पर न रखे, मैले हो जाएंगे’ हो या फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ का ‘मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठता’ डायलॉग सभी को बहुत ही खूबसूरती के साथ पेंटिंग्स में दिखाया गया था।

बुधवार को सातवीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लखनऊ के प्रसिद्ध रहे चित्रकार शरद पाण्डेय

लखनऊ के लाल बारादरी में चलने वाले ‘100 का सिनेमा पार्ट-2’ चित्रकला प्रदर्शनी लगाई गई थी। इसमें चित्रकार शरद पांडे ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से हिंदी सिनेमा से सुनहरे दिनों की कहानी बताने की कोशिश की थी। इसके अलावा उन्होंने अमिताभ बच्चन पर चित्रकला की सीरीज भी लगाई थी। कुल मिलाकर शरद पाण्डेय एक सजग और जागरूक कलाकार थे। उन्होने अंतिम समय तक अपने जीवन को कला के लिए समर्पित किया।

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