पोर्ट ब्लेयर। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 20 साल पहले आई भयानक सुनामी की यादें आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं। इस घटना में 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी, जबकि 3000 से अधिक लोग लापता हो गए थे। अंडमान-निकोबार के कैंपबेल बे और कार निकोबार में तबाही का मंजर इतना भयानक था कि लोग आज तक स्कूल, चर्च और सरकारी संस्थानों की तबाही की वजह से इकट्ठा हुए मलबे को देखकर भयभीत हो जाते हैं।
2004 की सुनामी में पोर्ट ब्लेयर से करीब 535 किलोमीटर दूर निकोबार जिले में सुनामी की वजह से सबसे ज्यादा तबाही हुई थी। कार निकोबार के तमालू गांव में 20 साल पहले हुई तबाही का मंजर आज भी नजर आता है। हर साल निकोबारी आदिवासी समूह यहां ‘मौत घर’ में जुटते हैं और सुनामी में खोए अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों को याद करते हैं।
लोगों ने बयां किय 20 साल पुराना खौफ का मंजर
तमालू गांव के मुखिया पॉल बेंजामिन ने याद करते हुए बताया क्रिसमस के जश्न के बाद हम स्थानीय चर्च में प्रार्थनाओं के लिए जुट रहे थे। हम सभी त्योहार के मूड में थे। 26 दिसंबर को सुबह करीब 6 बजे हमने देखा कि समुद्री तटों से लहरें तीन किलोमीटर तक अंदर चली गईं।
इसके बाद आए जबरदस्त भूकंपों से पूरा द्वीप कांप गया। हमने कभी प्रकृति का गुस्सा नहीं देखा था। इसकी कोई चेतावनी प्रणाली भी नहीं थी और कुछ मिनटों बाद ही हमने समुद्र की दैत्याकार लहरों को अपनी तरफ आते देखा। हमने इसके बाद पहाड़ी क्षेत्रों में भागकर अपनी जान बचाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि सुनामी के बाद हर तरफ अराजकता का माहौल था। लोग सुरक्षित जगहें ढूंढ रहे थे। इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह रही थीं। कुछ लोग भूकंप के भीषण झटकों के चलते बेहोश हो गए थे। मैंने अपनी पत्नी, जो कि किचन में थीं, को बाहर निकाला और हम सब पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों की शरण में चले गए।
लोग यहां राशन मांग रहे थे, ताकि अपने बच्चों को खाना खिला सकें। हमारे पास कुछ भी खाने के लिए नहीं था। जो भी राशन था, वह हमने बच्चों और मरीजों के लिए छोड़ दिया। बाकी सभी लोग नारियल पानी पर जीने को मजबूर थे।