समुद्र मंथन का उल्लेख शिव पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण और भविष्य पुराण जैसे ग्रंथो में देखने को मिलता है। करोड़ों श्रद्धालुओं के आस्था का प्रतीक महाकुंभ के बारे में प्राचीन ग्रंथों में जिक्र मिलता है कि सतयुग से ही महाकुंभ का आयोजन होता रहा है।
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महाकुंभ का इतिहास 850 साल से भी ज्यादा पुराना है। धार्मिक मान्यताओं के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसकी शुरूआत शंकराचार्य ने की थी। वहीं, कुछ कथाओं में इस बात का उल्लेख किया गया है कि महाकुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के समय से हो रहा है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले हुये अमृत कलश को लेकर देवता और राक्षसों के बीच लड़ाई हो गई, जिसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और इस युद्ध को शांत कराया था। इस दरम्यान अमृत की कुछ बूंदे प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में गिरी, यही वजह है कि इन जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है।
इसलिये प्रयागराज में लगता है महाकुंभ मेला (Mahakumbh 2025)
प्रयागराज को महाकुंभ के लिए एक विशेष स्थान माना गया है। क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। ऐसी मान्यता है कि यहां शाही स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।