लखनऊ. जैविक खाद से अच्छी खेती की जा सकती है। इस लिहाज से केचुआ भी कृषि का मित्र माना जाता है। भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान ने जयगोपाल स्वदेश केचुआ की प्रजाति विकसित की है,जो ज्यादा तापमान में भी जीवित रहता है। दूसरी प्रजातियों के केचुए मूलतः 30 से 40 डिग्री के तापमान को ही सहन कर पाते है। लेकिन यह केचुआ 46 डिग्री के तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखता है।
आईवीआरआई संस्थान के पशु अनुवांशिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रणवीर सिंह गोबर और जैविक कचरे से केंचुआ की खाद बनाने के लिए स्वेदशी केंचुआ की प्रजाति विकसित करने में लगे हुए थे। उन्होंने इसके लिए कई चयन और प्रजनन नीतियों को अपनाकर 25 पीढ़ियों में ऐसी स्वदेशी केंचुआ की प्रजाति विकसित की है।
डॉ. रणवीर ने बताया कि इस केंचुआ की विशेषता है कि यह केंचुआ 2 से 46 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर जीवित रहकर कचरा खाता है। एक सप्ताह में प्रत्येक केंचुए से 25 से 30 बच्चे पैदा होते है। इनके काकून जीरे के आकार का होता है। इससे बनी हुई वर्मीकम्पोस्ट विदेशी केंचुओं से ज्यादा अच्छी होती है।
उत्तर प्रदेश में विदेशी केचुओं की दो प्रजाति आईसीनीया फीटिडा और यूड्रीलस यूजीनी से केंचुआ की खाद बनाई जाती है। लेकिन यूड्रीलस यूजीनी 35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम से ऊपर और आईसीनीया फीटिडा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान होने पर मर जाते है। इस वजह से किसानों के सामने जैविक खाद बनाने की समस्या थी। लेकिन जयगोपाल से किसानों को जैविक खाद बनाने में लाभ मिलेगा। इस प्रजाति से बनी हुई केंचुए की खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में संजीवनी का काम करती है।