अयोध्या मुद्दे (Ayodhya Case) को लेकर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ में 33वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की ओर से एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने पुरातत्व विभाग (ASI) की रिपोर्ट के निष्कर्ष पर सवाल उठाते हुए बोला कि रिपोर्ट की समरी में नंबरिंग के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है जबकि फीमेल डेटी के बारे में कुछ पेश नहीं किया गया। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में विरोधाभास को पेश करते हुए मीनाक्षी ने बोला कि यह स्पष्ट करता है कि यह सटीक नहीं है। मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि 15 पिलर के आधार पर ASI ने निष्कर्ष निकाला था कि वहां पर मंदिर था, जिसमें विरोधाभास दिखता है।
जस्टिस बोबड़े ने मीनाक्षी अरोड़ा से बोला कि आप साक्ष्य अधिनियम के सेक्शन-45 पर अपनी दलीलें पेश करें। मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट महज राय होती है, क्योंकि विशेषज्ञों को ही इसके तहत रखा जाता है? आमतौर पर राय को साक्ष्य अधिनियम के तहत नहीं रखा जाता जब तक सटीक तथ्य नहीं हो। ऐसे में हमारी तरफ से पेश हुए विशेषज्ञों को उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया। चूंकि विषय पर विशेषज्ञों की समझ न्यायिक ऑफिसर या जजों से कहीं ज्यादा होती है जो सटीक तथ्यों के साथ स्वीकार की जाती है।
मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि पुरातत्व विभाग ने अपनी राय दी जो हाइपोथैटिकल है व जिसमें अंदाजा, अनुमान लगाया गया है कि वहां पर एक मंदिर था। पुरातत्व एक सामाजिक विज्ञान है जबकि केमेस्ट्री, फिजिक्स सटीक विज्ञान हैं।
मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि हरेक पुरातत्व ऑफिसर अपनी सोच के हिसाब से तस्वीर तैयार करता है, उसी के आधार पर वह मंदिर गिराने व मस्जिद निर्माण पर पहुंचे। एक पुरातत्व वैज्ञानिक की राय दूसरे से आमतौर पर नहीं मिलती। गौर करने वाली बात है कि फिंगरप्रिंट की जाँच बिल्कुल सटीक होती है, क्योंकि मिलान का फीसदी कहीं ज्यादा होने पर ठीक माना जाता है।
मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि हिन्दू पक्ष कि ओर से पेश हुए गवाहों की राय भी पुरातत्व विभाग से इतर थी। जयंती प्रसाद श्रीवास्तव, रिटायर्ड पुरातत्व ऑफिसर ने विभाग कि रिपोर्ट से इतर राय रखी।
जस्टिस बोबड़े ने बोला कि दोनों ही पक्षों के पास कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। सभी पक्ष का मुद्दा पुरातत्व रिपोर्ट के नजरिये पर टिका हुआ है। मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट में कहीं नहीं बोला गया कि अमुक जगह राम मंदिर है। जबकि राम चबूतरे को वॉटर टैंक बताया गया है।
मीनाक्षी अरोड़ा ने बोला कि साक्ष्य अधिनियम के तहत जाँच रिपोर्ट में भी पुरातत्व विभाग ने प्रक्रिया को निभाया, जिसे उच्च न्यायालय ने भी स्वीकारा पर अब उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के निर्णय की समीक्षा कर रहा है जिसके चलते मैं विभिन्न स्तरों पर सवाल उठा रही हूं।
मीनाक्षी अरोड़ा ने उच्चतम न्यायालय के एक पुराने निर्णय का हवाला देते हुए पुरातत्व विभाग कि रिपोर्ट को गलत करार दिया। जस्टिस नज़ीर ने बोला कि पुरातत्व भी पूरी तरह से विज्ञान नहीं है व सेक्शन 45 इस पर लागू नहीं होता है। ASI रिपोर्ट की जाँच की गई व आपत्तियों पर विचार किया गया। आप रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि एक कमिश्नर ने यह रिपोर्ट दी, जो जज के समान थे। इसके साथ ही सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा की बहस पूरी हुई।
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की दलील
इसके बाद सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से पेश एडवोकेट शेखर नाफेड ने बहस प्रारम्भ की। शेखर नाफडे ने बोला कि फारुख अहमद की ओर से दायर 1961 में निचली न्यायालय का आदेश रेस ज्यूडी काटा है यानी न्यायिक समीक्षा का अंतिम आदेश। रघुबर दास ने मंदिर निर्माण के लिए सूट दाखिल किया था। जिनकी ओर से चबूतरे को जन्म जगह करार देते हुए मंदिर निर्माण कि मांग कि गई। उसका ब्यौरा भी उन्होंने दिया, इसका मकसद फकीरों व साधुओं की राहत से जुड़ा था। डिप्टी कमिश्नर ने 1885 में रघुबर दास के सूट पर अपना निर्णय दिया था व बोला था कि चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा खारिज कर दिया था, ऐसे में यह रेस ज्यूडी काटा है।