उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनावी महासमर की वैतरणी पार करने के लिए सभी दल लगातार अपने अपने दांव-पेंच आजमाने में जुटे हुए हैं,कहीं पाला बदलने की होड़़ है तो कहीं एक दूसर से गठबंधन कर इस महासमर को जीतने की ! इसी क्रम में यूपी की राजनीति में सक्रिय राजनीतिक घरानों के युवराजों ने भी एक दूसरे के साथ गठजोड़ कर इस चुनाव में जीत दर्ज करने की मुहीम छेड़ दी है। हालांकि इस गठजोड़ को और अधिक मजबूती देने के उद्देश्य से दोनों ही दलों के युवराज एक अन्य दल आरएलडी को भी तरजीह देने में जुटे है। तीनो के बीच बात महज सीटों के बंटवारों को लेकर ही शेष बची हुयी है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों के बटवारे को लेकर एक आम सहमति बन भी गयी है और आरएलडी को राजी कर उसे साथ में मिलाने का फैसला फिलहाल कांग्रेस के जिम्मे सौंप दिया गया है।
सपा का डर
सूत्रों की माने तो सपा को डर है कि अगर वो आरएलडी के साथ गठबंधन करती है तो कहीं उसका परम्परागत वोटर यानी मुस्लिम मतदाता छिटक कर बसपा के खाते में न चला जाये, जबकि कांग्रेस बिहार चुनाव की तर्ज पर यूपी में भी महागठबंधन वाले फॉर्मूले को तरजीह देने में जुटी हुई है.
सीट बटवारे को लेकर फंस सकता है पेंच
महागठबंधन में असली पेंच सीटों के बंटवारे को लेकर ही फंस सकता है। सपा ने पहले ही साफ तौर पर कह दिया है कि वह किसी भी कीमत पर 300 से कम सीटों पर महागठबंधन को तैयार नहीं होगी। पहले 110 और अब महज 100 सीटों पर राजी दिख रही कांग्रेस के लिए यूपी में करो या मरो की स्थिति से कमतर कुछ भी नहीं दिख रहा है। उधर आरएलडी भी 30 से 35 सीटों से कम सीटें लेने को राजी नही है। जबकि उसे अब तक 20- 22 सीटें ही देने की पेशकश की गयी है। अगर महागठबंधन किसी भी सूरत में बनने से पहले टूटता है तो उसके पीछे सीटों का बटवारा ही मुख्य वजह मानी जा सकती है।
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