कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में लिखा है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने (जिनको चातुर्मास कहा जाता है) की योगनिद्रा के बाद शयन से जागृत होते हैं। इस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर, शुक्रवार को है इसलिए इस एकादशी को देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है और श्रीहरी की इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है।
देवउठनी एकादशी का प्रारंभ-
पौराणिक मान्यता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरी ने शंखासुर नाम के दैत्य का वध किया था। दोनों के बीच युद्ध काफी लंबे समय तक चला था। शंखासुर के वध के बाद जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ भगवान विष्णु बहुत ज्यादा थक गए, इसलिए युद्ध समाप्त होते ही वह सोने के लिए प्रस्थान कर गए। भगवान इस दिन क्षीरसागर में जाकर सो गए और इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे।
देवउठनी एकादशी को मनती है देव दिपावली-
देवशयनी एकादशी को सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के साथ फिर से सभी शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं इसलिए कार्तिक अमावस्या पर दीपावली के अवसर पर देवी लक्ष्मी की आराधना बगैर श्रीहरी के की जाती है, क्योंकि श्रीहरी उस वक्त योगनिद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने पर देवी-देवता श्रीहरी और देवी लक्ष्मी की एक साथ पूजा कर देव दीपावली मनाते हैं। इसके साथ ही इस दिन से परिणय संस्कार यानी मांगलिक प्रसंगों का प्रारंभ भी हो जाता है।
देवउठनी एकादशी के शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि का प्रारंभ- 7 नवंबर को सुबह 9 बजकर 55 मिनट से
एकादशी तिथि का समापन- 8 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर
9 नवंबर को व्रत खोलने का समय- सुबह 6 बजकर 39 मिनट से 8 बजकर 50 मिनट तक