किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देने वाले प्रदेश के 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और सवा चार हजार सरकारी समितियों में दो हजार से ज्यादा गबन और धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं. इनमें 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की अनियमितताएं हुई हैं. इसमें 118 करोड़ रुपए का निवेश घोटाला और फर्जी कर्ज के 50 से ज्यादा मामले शामिल नहीं हैं. यदि इन्हें जोड़ लिया जाए तो राशि 400 करोड़ रुपए से अधिक पहुंच रही है. करीब 70 करोड़ रुपए की गड़बडिय़ों से जुड़े 400 मामलों की जांच पुलिस को सौंपी गई है. पुलिस जांच की धीमी गति को देखते हुए सहकारिता मंत्री डा गोविंद सिंह ने सीएम कमलनाथ से पुलिस मुख्यालय के अधीन काम करने वाली को-आपरेटिव फ्राड विंग को सहकारिता विभाग के अधीन करने की मांग उठाई है. बताया जा रहा है कि सीएम ने इस पर सैद्धांतिक सहमति भी दे दी है.
जय किसान फसल ऋण मुक्ति योजना के समय किसानों के नाम पर फर्जी ऋण के मामले में बड़ी तादाद में सामने आए थे. इसे देखते हुए सहकारिता विभाग ने पूरे प्रदेश से जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में हुए गबन व धोखाधड़ी के मामलों की रिपोर्ट बुलवाई थी. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 30 सितंबर 2019 तक जिला बैंक स्तर के लगभग 70 करोड़ रुपए के 216 गबन व धोखाधड़ी के मामले लंबित है. इनमें सबसे बड़ा मामला 21 करोड़ रुपए का रीवा बैंक से जुड़ा है. यहां बैंक की शाखाओं में प्रबंधक स्तर के अधिकारियों ने बैंक के सस्पेंस अकाउंट से राशि निकलकर अपने चहेतों को बांट दी. जांच में इसका खुलासा हुआ और मामला पुलिस को सौंपा गया. इसी तरह मंदसौर बैंक में 10 करोड़ 59 लाख रुपए का मामला सामने आया. वहीं एक हजार 882 समितियों में 125 करोड़ रुपए की अनियमितता उजागर हुई. 369 मामले पुलिस में चल रहे हैं. बंैक और समितियों के 263 मामलों में सिर्फ 21 करोड़ रुपए की वसूली हुई है.
संतोषजनक नहीं थे नतीजे इसलिए मंत्री ने की मांग
सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि समितियों के स्तर पर फर्जी प्रकरण बनाकर कर्ज निकालने, अनाज खरीदी और खाद वितरण में गड़बड़ी के मामले ज्यादा हैं वहीं बैंक स्तर पर फर्जी मामले बनाकर बड़े ऋण देने, सस्पेंस अकाउंट की राशि निकालकर चहेतों को देना, जैसे मामले अधिक हैं. बैंक स्तर पर प्रारंभिक पड़ताल के बाद गबन और धोखाधड़ी के संगीन मामलों की जांच को आपरेटिव फ्राड को सौंपी थी लेकिन नतीजे संतोषजनक नहीं हैं. इसे देखते हुए सीएम ने अक्टूबर में जब विभागीय समीक्षा की थी तब मंत्री डा गोविंद सिंह ने कहा था कि इस विंग को सहकारिता विभाग के अधीन करने को प्रस्ताव रखा था. सीएम ने इस पर सैद्धांतिक सहमति भी जताई है. अफसरों का कहना है कि शाखा पुलिस मुख्यालय के अधीन काम करती है और रिपोर्ट भी पुलिस महानिदेशक को करती है.
एक हजार 882 मामले लंबित
रिपोर्ट के अनुसार समिति स्तर के मामलों को देखा जाए तो एक अप्रेल 2018 से 30 सितंबर 2019 तक 12 मामलों का निराकरण हुआ. इसमें 1882 मामले अभी भी लंबित हैं. संयुक्त पंजीयक अरविंद सिंह सेंगर का कहना है कि उच्च स्तर पर गबन और धोखाधड़ी के मामलों में लगातार समीक्षा की जा रही है.