राजस्थान के उदयपुर में जन्में ओमकार नाथ शर्मा को नोएडा के कैलाश अस्पताल में बारह-तेरह साल की नौकरी के बाद मन में विचार आया कि गरीबों को मुफ्त में दवाएं बांटें। इसका विचार वर्ष 2008 में तब आया जब दिल्ली के लक्ष्मीनगर में मेट्रो का काम चल रहा था,तब वहां एक दुर्घटना हुई, जिसमें कई लोगों की मौत हो गयी और कुछ घायल हो गए थे। वो सभी गरीब लोग थे। संयोग से ओमकार नाथ उस समय लक्ष्मीनगर से गुजर रहे थे। चूंकि अस्पताल में काम करने का अनुभव था,तो वो भी घायलों के साथ तेगबहादुर मेडिकल काॅलेज अस्पताल में चले गए। वहां मीडिया की भारी भीड़ थी, इसलिए मरीजों के प्रति डाॅक्टरों का रवैया रक्षात्मक था। लेकिन उन्होंने देखा कि गंभीर रूप से घायल मरीजों को भी डाॅक्टर दवा न होने की बात कहकर लौटा रहे हैं। यह देखकर वो स्तब्ध रह गए। मन में सवाल उठने लगे कि दवा के अभाव में होने वाली मौतों को कैसे रोका जाए। छह-सात दिन मंथन करने के बाद उन्होंने फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा,वो गरीबों को मुफ्त में दवाएं बटेंगें और दवाओं के अभाव में उन्हें मरने नहीं देंगे।
दवाओं के लिए भीख मांगने की शुरूआत उन्होंने दिल्ली की सरकारी काॅलोनी आरके पुरम के सेक्टर-1 से की। वो लोगों के सामने हाथ जोड़कर कहते जो दवा आपके पास बच गई है, वह मुझे दे देंगे,तो इससे किसी गरीब की जान बच जाएगी। बस इस तरह दवा लेकर वो राममनोहर लोहिया अस्पताल के जनरल वार्ड में पहुंचकर मरीजों से पूछते कि डाॅक्टर ने ऐसी कोई दवा लिखी हो, जो आपके पास नहीं है, तो मैं दे सकता हूं। इस तरह उनके काम की शुरूआत हुई।, लेकिन उनका विरोध भी खूब हुआ।
इस बिच उनकी मुलाकात आॅल इंडिया रेडियो में काम करने वाले चंद्रमोहन से हुयी,उन्होंने कहा कि आप(ओमकार नाथ शर्मा) इस तरह मरीजों को दवा नहीं दे सकते। लिहाजा ओमकार नाथ मरीजों को सीधे दवा न देकर धार्मिक संस्थाओं को दवा देने लगा। लेकिन इस बीच कुछ वकील भी ओमकार के साथ हो गए और उन्होंने कहा कि बेशक आप मरीजों को अपनी मर्जी से दवा नहीं दे सकते,लेकिन डाॅक्टर की पर्ची के आधार पर दे सकते हैं। इस तरह जरूरतमंदों को दवा मुहैया कराने का उनका काम जारी रहा। आज ओमकार बारह से पंद्रह लाख दवाएं प्रति महीने लोगों को मुफ्त में बांटता हैं। कोई भी आदमी, जिसके पास दवा खरीदने का पैसा नहीं है, वह डाॅक्टर की पर्ची लेकर ओमकार के पास जा सकता है और वो सिर्फ दवाए नहीं,अस्पताल का बेड,निमुलाइजर,स्टिक आदि जरूरी चीजें गरीब मरीजों को मुहैया करा रहे हैं। इस समय उनके पास किडनी ट्रांस्प्लांट कराने वाले चैदह मरीज हैं जिनके लिए दवाओं की व्यवस्था मैं कर रहे हैं।
दिल्ली की आबादी आज पौने दो करोड़ के आसपास है। इनमें से एक करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास दवाओं की अतिरिक्त पत्ती मौजूद होगी। ओमकार का कहना है कि “मेरा नारा है- ‘बची दवाई दान में,न कि कूड़ेदान में।” इसके अलावा मेडिसिन बाबा के नाम से मशहूर ओमकार का सपना है,गरीबों का मेडिसिन बैंक हो अपना। उनकी इच्छा एक मेडिसिन बैंक की स्थापना करने की है। दवाओं के लिए वो अस्सी साल से अधिक की उम्र में भी पांच-छह किलोमीटर रोज चलते हैं। अब इनकी इस मुहीम में सुमन कुमार,यानी गुप्ता और सचिन गांधी जैसे लोग भी उनके इस पुण्य काम में उनकी मदद कर रहे हैं।
संकलन – प्रदीप कुमार सिंह