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‘वो’ सीढ़ियों में क्या फिसले, लोग तो ‘गिर’ ही गए!

आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि चमड़े की जबान है साहब फ़िसल गई। अगर चमड़े की जबान फ़िसल सकती है, तो फिर चमड़े का बना जूता जो पैर में था वह भी फ़िसल ही सकता है। अब सवाल यह उठता है कि फिसलने वाला यह जूता था किन पैरों में। यदि पैर आम आदमी का है तो निश्चित है कि जूते को उतनी टीआरपी और प्रसिद्धि नहीं मिल पाएगी, लेकिन वही जूता यदि देश के प्रधान के पैरों में है तो निश्चित है कि थोड़ी सी भी फिसलन बड़ी सुर्खियां बटोरेगी। देश के प्रधान कानपुर शहर में सीढ़ियों में जरा सा क्या फ़िसले सोशलमीडिया और चैनल पे रात-दिन लोगों का गिरना जारी रहा।

हमारे देश के प्रधान जुबान से कभी नहीं गिरे-

कुछ लोग तो इतना गिर गए कि लगा जैसे ये गिरे हुए कि पैदाइश ही हैं। हम तो अहो भाग्य समझते हैं और इस बात पे खुश हैं कि हमारे देश के प्रधान जबान से कभी नहीं गिरे। देश के प्रधान के फिसलने पर जिनकी बत्तीसियां निकली जिन्होनें उपहास उड़ाये, मुझे तो ऐसे लोग अहले दर्जे के गिर हुए नजर आए। देश के प्रधान उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहां हम सभी को सियासी दुशाले उतारकर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनके प्रति मन में एक सम्मान, एक आदर भाव और उनके पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए कुछ लिखने या बोलने से पहले सोचना चाहिए।

उपहास उड़ाना पूरी तरह से गलत-

उनके फिसलने पर सोशलमीडिया पर उनका उपहास उड़ाना पूरी तरह से बेहूदगी और छिछोरेपन का परिचायक रहा। यहां विचारणीय तथ्य ये है कि किसी पर हंसने से पहले या उपहास उड़ाने से पहले हम इतना क्यों नहीं सोच लेते की कभी जिस शख़्स पर हंसा जा रहा है, उसके विपरीत स्थिति भी तो उत्पन्न हो सकती है। अर्थात हंसने वाला भी तो फ़िसल सकता है। अनायास हंसी का पात्र बन सकता है। सोशलमीडिया के इस भयावह दौर में आज का व्यक्ति समाज, पड़ोसी, सियासी दल सभी दूसरे को फिसलता देखकर प्रसन्न हो रहे हैं।

ओछी मानसिकता-

हमारी यह सोच हमारी ओछी मानसिकता को खूब प्रकट कर रही है। हमारी यह घटिया सोच है कोई गिरे तो हमें हंसने का सुअवसर सुलभ हो। आदमी आदमी की सफ़लता, उन्नति, विकास और उत्थान से खुश नहीं है। वह उसे गिरते हुए देखकर, उसे दुखी देखकर असीम सुख का अनुभव कर रहा है और झूठी सहानुभूति दिखलाकर खुश है। पड़ोसी पड़ोसी को गिरते देखकर खुश हो रहा है। झूठा खेद प्रकट कर मन ही मन हंस रहा है। देखो, अब आएगी अकल ठिकाने। ये सोच है उसकी। हमारी यही सोच हमारे पतन का कारण बनेंगी। सियासती लोगों में जो पैसे से भले बड़े हों लेकिन संस्कार और बड़प्पन छोड़े बैठे हैं। उन्हें तो जैसे देश के प्रधान पर बोलने बस को मिल जाए और कुछ नहीं, लेकिन हम लोग जो सोशलमीडिया पर सक्रिय हैं हमे देश के प्रधानमंत्री पद की गरिमा और माननीय प्रधानमंत्री की उम्र का ख्याल रखते हुए ही कल कानपुर में दुर्भाग्य हुई घटना को लेकर सोशलमीडिया पर उपहास उड़ाने से बचना चाहिए।

आशीष तिवारी निर्मल

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