टिप्पणी किसी पुस्तक या कलाकृति की प्रकाशित समीक्षा का नाम है- प्रो फ़खरे आलम
लखनऊ। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग की साहित्यिक संस्था “बज़्में अदब” द्वारा उर्दू में टिप्पणी लेखन की परंपरा विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें टिप्पणी लेखन विषय पर सार्थक और अहम चर्चा हुई जिससे इस विषय के महत्वपूर्ण पहलुओं और आयामों का ज्ञान हुआ और नये बिंदुओं से अवगत कराया गया। टिप्पणी किसी पुस्तक या कलाकृति की प्रकाशित समीक्षा का नाम है। टिप्पणी आमतौर पर किसी नई पुस्तक या हालिया कलाकृति पर की जाती है और टिप्पणी करते समय उसके गुण-दोषों का संक्षेप में निष्पक्षता से मूल्यांकन किया जाता है। वास्तव में, एक टिप्पणीकार को एक साहित्यिक और अकादमिक मार्गदर्शक का दर्जा प्राप्त होता है जो सामान्य पाठकों और उनके हितों को उत्तेजित करता है।
उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा कि एक टिप्पणीकार के लिए तटस्थ रहना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उसकी राय पाठकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, उसे टिप्पणी में किसी भी तरह का पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है टिप्पणीकारों के लिए अपनी पसंद-नापसंद के दायरे से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, इसलिए वे कभी-कभी टिप्पणीकार की भी अच्छी टिप्पणी नहीं लिख पाते टिप्पणी इतनी पक्षपातपूर्ण हो जाती है कि टिप्पणीकार पर ही टिप्पणी होने लगती है।
साहित्यिक कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ जफरुन नक़ी ने टिप्पणी की परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शुरुआती दौर में उर्दू में टिप्पणी की कोई परंपरा नहीं थी। अंग्रेजी भाषा और साहित्य के माध्यम से वे इससे परिचित हुए। उर्दू में सर सैय्यद और उनके दोस्तों ने न केवल विभिन्न पुस्तकों और पत्रिकाओं पर टिप्पणियाँ लिखीं, बल्कि उन्होंने समीक्षा लेखन और टिप्पणी लेखन के नियमों और विनियमों पर भी चर्चा की इसके साथ ही देखा जाये टो अभी तक इस विषय, परंपरा और इसकी कला के संबंध में कोई समग्र पुस्तक नहीं लिखी जा सकी, जबकि समकालीन युग में इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है।
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इस कार्यक्रम में शोधार्थी सैय्यद मुईनुद्दीन ने मुहम्मद हुसैन आज़ाद की महत्वपूर्ण पुस्तक आबे हयात, शोधार्थी मुहम्मद नसीम ने डॉ अख्तर बस्तवी की पुस्तक भारतीय साहित्य के वास्तुकार: काज़ी मुहम्मद अदील अब्बासी और शोधार्थी रशीदा खातून ने प्रोफेसर इब्न कंवल द्वारा लिखित मोनोग्राफ दाग़ दहलवी पर टिप्पणी लेखन प्रस्तुत किया। इस महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्यक्रम का संचालन एम.ए के छात्र अब्दुल कादिर और धन्यवाद अब्दुल्ला ने किया। अंत में बज़्में अदब की वाल मैगज़ीन का लोकार्पण प्रोफेसर फखरे आलम के हाथों संपन्न हुआ, जिसकी शिक्षकों ने सराहना की। इस साहित्यिक कार्यक्रम में शोधार्थियों एवं छात्रों के अलावा उर्दू विभाग के शिक्षक प्रो फख्ररे आलम, डॉ मुर्तज़ा अतहर, डॉ अकमल शादाब, डॉ आज़म अंसारी, डॉ ज़फरुन नक़ी, डॉ मुनव्वर हुसैन, डॉ सिद्धार्थ सुदीप और डॉ मूसी रज़ा ने भाग लिया।