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मनुष्य दया, धर्म और भगवान के स्मरण मात्र से सारी योनियां पार कर सकता है- वेदाचार्य

आज के मुख्य प्रसंग वाराह अवतार, विदुर चरित्र, सती चरित्र, श्रष्टि वर्णन, मनु सतरूपा प्रसंग और शिव बारात

औरैया। कस्बा बिधूना के गांधी नगर मोहल्ले के श्रृंगारिका गार्डन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा (Shrimad Bhagwat Katha) के तीसरे दिन मंगलवार को व्यास पीठ पर विराजमान वेदाचार्य पं राज नारायण त्रिपाठी (Vedacharya Pt Raj Narayan Tripathi) द्वारा कथा में वाराह अवतार, विदुर चरित्र, सती चरित्र और शिव पार्वती विवाह का विस्तार से वर्णन किया।

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इस अवसर पर उन्होंने कथा के दौरान भगवान शिव की बारात का वर्णन करते हुए बताया कि जब भगवान भोलेनाथ की बारात राजा हिमाचल के द्वार पर रवाना हुई। उस समय भगवान शिव की बारात में भूत प्रेत आगे आगे नाचते गाते हुए चल रहे थे और भगवान भोलेनाथ बैल पर सवार होकर गले में सर्पों की माला धारण किए हुए चल रहे थे।

श्रीमद्भागवत कथा Shrimad Bhagwat Katha

वेदाचार्य त्रिपाठी जी ने तीसरे दिन परीक्षित हरिश्चंद्र वर्मा व नीलम वर्मा से हवन पूजन करवाया, फिर वाराह अवतार प्रसंग से कथा की शुरुआत की जिसमे उन्होंने बताया कि हिरण्याक्ष एक दिन घूमते हुए वरुण की नगरी में जा पहुंचा। पाताल लोक में जाकर हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारा।

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वरुण देव बोले कि ‘अब मुझमें लड़ने का चाव नहीं रहा है तुम जैसे बलशाली वीर से लड़ने के योग्य अब मैं नहीं हूं तुम्हें विष्णु जी से युद्ध करना चाहिए।’ तब देवतओं ने ब्रह्माजी और विष्णुजी से हिरण्याक्ष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए नासिका से वराह नारायण को जन्म दिया। इस तरह हरि के वराह अवतार का जन्म हुआ।

श्रीमद्भागवत कथा Shrimad Bhagwat Katha

विदुर चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विदुर पांडवों के सलाहकार थे और उन्होंने दुर्योधन द्वारा रची गई साजिश से कई मौके पर उन्हें मृत्यु से बचाया था। विदुर ने कौरवों के दरबार में द्रौपदी के अपमान का विरोध किया था। कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान विदुर धर्म और पांडवों के पक्ष में थे। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, विदुर को यम (धर्म) का अवतार माना जाता था।

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आगे उन्होंने कहा कि जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा खराब हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया। पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया।

श्रीमद्भागवत कथा Shrimad Bhagwat Katha

इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरु तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की।

अंत मे भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ। कथा के समापन पर आरती होने के पश्चात प्रसाद वितरण किया गया। कथा के दौरान पंडाल में प्रमोद शर्मा, प्रवल प्रताप सिंह(PTI), महेश चंद्र जितेंद्र तिवारी, विमल किशोर, मान सिंह, पंकज चौहान, विकास प्रताप सिंह, विशाल प्रताप सिंह, विवेक वर्मा, हिमांशु वर्मा, शैलेंद्र कुमार, रचना, प्रीति, कंचन, प्रज्ञा, शिवांगी, हर्षिता, सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।

रिपोर्ट – संदीप राठौर चुनमुन

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