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आचार्यश्री अनादि काल तक लोगों के मन में रहेंगे: कुलाधिपति

मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति सुरेश जैन ने कहा, विद्यासागर महाराज एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जो अनादि काल तक लोगों के मन में रहेंगे। मैं भी उन सौभाग्यशाली लोगों में एक हूं, जिन्हें उनके दर्शन करने का सुअवसर मिला है। शिक्षा के प्रति बहुत से नवाचार उनके मन में थे क्योंकि शिक्षा से उन्हें बहुत प्यार था।

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उन्होंने आचार्यश्री के वात्सल्य और संवाद को साझा करते हुए कहा, अगली चौबीसी अयोध्या में होगी और सबका मोक्ष सम्मेद शिखर से होगा। ऐसी मान्यता है कि आप भी चौबीसी में एक तीर्थंकर होंगे, इसीलिए आपसे मेरा विनम्र आग्रह है कि आप एक बार अयोध्या के दर्शन कर लीजिएगा।

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कुलाधिपति बोले, आचरण में सत्यता और पवित्रता हो तो आचार्यश्री जैसी। टीएमयू के ऑडी में आयोजित विनयांजलि सभा में उन्होंने अपने शब्दों को विराम देते हुए कहा, यदि हम आचार्यश्री के बताए मार्ग पर चलें तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। विनयांजलि सभा के अंत में 09 बार नमोकार मंत्र उच्चारित किया गया। इस मौके पर फर्स्ट लेडी वीना जैन और ऋचा जैन की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। संचालन चीफ वार्डन श्री विपिन जैन ने किया।

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विनयांजलि सभा में फर्स्ट लेडी वीना जैन ने कहा, मैं और मेरा परिवार आचार्यश्री की साक्षात महिमा के साक्षी रहे हैं। हमने संकल्प लिया था कि गुरूवर के दर्शन करने हैं, लेकिन रामपुर जाते वक्त एक हादसे में बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था। इनके अलावा प्रो धर्मचन्द्र जैन, मनोज जैन, प्रो रवि जैन, डॉ अर्चना जैन ने भी आचार्यश्री के संस्मरण साझा किए। इनके अलावा श्रावक-श्राविकाओं- अतिशय जैन, संस्कार जैन, मैत्री जैन, अमीषा जैन, आस्था जैन आदि ने भी अपने-अपने अनुभवों को साझा किया।

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प्रो धर्मचन्द्र जैन बोले, गुरू के प्रति आचार्यश्री का समर्पण बेमिसाल था। गुरू ज्ञान सागर और विद्याधर के प्रथम संवाद को साझा करते हुए कहा, विद्याधर ने अपने गुरू से आजीवन वाहन का उपयोग न करने का वायदा किया था। विद्यासागर जी अपने ज्ञान से स्वंय प्रकाशित थे। वह महान साधक थे।

मनोज जैन 1977 के मंजर पर बोले, उड़ीसा और बंगाल में दिगंबर जैन का कोई भी संत नहीं जाता था, क्योंकि नक्सली उन पर पथराव करते थे। आचार्यश्री एकमात्र ऐसे संत थे, जिन्होंने उड़ीसा से आगे निकले और बेलगाछिया मंदिर में उनके चरण कमल पड़े।

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प्रो रवि जैन ने अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा, गुरूवर अपने शिष्यों की बात को बेहद गंभीरता से सुनते थे। 2008 में पंचकल्याणक महोत्सव की रधयात्रा के दौरान ऐसा हुआ था। नौकरी छोड़ने की मेरी पहल पर आचार्यश्री का मानना यह था कि ऐसा मत कीजिएगा, क्योंकि अनुभवी शिक्षक सहज मिलते नहीं है। बाद में आचार्यश्री ने प्रतिभास्थली खोल दी। उल्लेखनीय है, प्रतिभास्थली में लड़कियों को इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्रदान की जाती है।

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