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एक हफ्ते के अंदर अखिलेश यादव ने किया ऐसा, शिवपाल यादव को…

क हफ्ते के अंदर ही अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बदलाव कर दिया है। 29 जनवरी को शिवपाल यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव बनाते हुए 63 सदस्यीय कार्यकारिणी की घोषणा की गई थी।

कुछ घंटे बाद ही पूर्व सांसद सलीम इकबाल शेरवानी को भी राष्ट्रीय महासचिव बनाते हुए कार्यकारिणी की संख्या 64 कर दी गई। नई सूची में पांच नए राष्ट्रीय सचिवों को शामिल किया गया है। एक राष्ट्रीय सचिव को हटाया गया है। इससे राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अब 68 सदस्य हो गए हैं।

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पिछली सूची में राष्ट्रीय सचिव बनाए गए रामबक्श वर्मा का नाम हटाया गया है। रामवक्श वर्मा दो बार लोकसभा और दो बार भाजपा से राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। सपा में बेटे आलोक वर्मा की टिकट की आस में गए लेकिन नहीं मिलने पर इस बार बसपा में चले गए। फर्रखाबाद की भोजपुर विधानसभा सीट से आलोक बसपा के प्रत्याशी थे और करारी हार हुई।

अखिलेश यादव

गाजीपुर की जामानिया सीट से विधायक ओमप्रकाश सिंह समेत पांच नए लोगों को कार्यकारिणी में शामिल करते हुए राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है। पिछली सूची में अपना नाम नहीं होने पर ओमप्रकाश सिंह ने ट्वीट के जरिए नाराजगी जाहिर की थी। ओमप्रकाश सिंह मुलायम सिंह यादव के समय भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल रहे हैं। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की लहर में भी गाजीपुर में सपा ने क्लीन स्विप किया था। इसके पीछे ओमप्रकाश सिंह की भी अहम भूमिका मानी जाती है।

ओमप्रकाश सिंह अखिलेश और मुलायम सरकार में मंत्री रह चुके हैं और पूरे पूर्वांचल में दिग्गज सपा नेताओं में शुमार हैं। ओमप्रकाश सातवीं बार विधायक हैं। ओमप्रकाश सिंह के अलावा अरविंद सिंह गोप, नवीन सक्सेना, रामप्रकाश चौधरी और विनय शंकर तिवारी को कार्यकारिणी में शामिल करते हुए राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है। इसके अलावा बलिया के रामगोविंद चौधरी सदस्य से राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है।

नई कार्यकारिणी से एक बात साफ हो गई है कि समाजवादी पार्टी अब पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों के साथ ही राजनीति करेगी। पार्टी में अब ब्राह्मणों और ठाकुरों के लिए वह जगह नहीं मिली जो कभी मुलायम के समय मिलती थी। तब समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद सबसे बड़ा नाम अमर सिंह, जनेश्वर मिश्रा, रेवतीरमण सिंह जैसे ब्राह्मण और ठाकुरों का होता था।

अखिलेश को शायद अब एहसास हो गया है कि ब्राह्मणों और ठाकुरों का वोट बीजेपी के ही पास जाएगा। ऐसे में इन पर फोकस करने से सपा को ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है। ऐसे में सपा का फोकस अब गैर यादव ओबीसी के साथ ही दलित पर होगा। नई कार्यकारिणी को देखें तो यह साफ भी हो जाता है कि पूरा जोर ओबीसी पर ही है।

समाजवादी पार्टी की 68 लोगों की कार्यकारिणी में अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति की झलक भी साफ दिखलाई देती है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्व राष्ट्रीय महासचिव होते हैं। इस बार 16 लोगों को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है। इनमें एक भी ब्राह्मण या ठाकुर नहीं है। अखिलेश यादव का पूरा जोर ओबीसी और दलितों पर दिखाई दे रहा है। कार्यकारिणी की घोषणा के कुछ घंटे पहले ही अखिलेश ने खुद को शुद्र कहते हुए भाजपा को पिछड़ों और दलितों को शुद्र मानने वाली पार्टी भी बताया।

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