आज पूरा देश दुर्गा पूजा के अवसर पर देवी दुर्गा की आराधना कर रहा है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, देवी दुर्गा को शक्ति और सामर्थ्य के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। देवी दुर्गा शक्ति के नौ रूपों का प्रतीक हैं। दुर्गा का प्रत्येक रूप विशिष्ट गुणों और विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है जो सशक्तिकरण का प्रतीक है। दिलचस्प बात यह है कि दुर्गा की इन नौ शक्तियों को प्रतीकात्मक रूप से शहरी विकास से जोड़ा जा सकता है। आइए जाने कि देवी दुर्गा की शक्तियों से यह प्रतीकात्मक जुड़ाव कैसे शहर के विकास के समग्र दृष्टिकोण को प्रेरित और निर्देशित कर सकता है..
शैलपुत्री – जीवटता की शक्ति: जिस तरह पर्वत पुत्री शैलपुत्री जीवटता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक हैं, उसी तरह शहर के विकास के लिए जीवटता महत्वपूर्ण है। आने वाले समय में शहरों को प्राकृतिक आपदाओं या आर्थिक उतार-चढ़ाव जैसी चुनौतियों का और भी ज्यादा सामना करना पड़ेगा। जीवटता यह सुनिश्चित करती है कि शहर पूरी मजबूती से परिस्थितियों में सुधार लाएँ और भविष्य की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के लिए तैयार रहें।
ब्रह्मचारिणी – ज्ञान और विवेक की शक्ति: देवी दुर्गा का दूसरा रूप, ब्रह्मचारिणी ज्ञान और विवेक की खोज से जुड़ा है। शहर के विकास के लिए यह महत्वपूर्ण है कि ज्ञान पर आधारित निर्णय लिए जाएँ। अध्ययन के आधार पर तैयार योजना, अनुसंधान और सूचित नीतियाँ सतत शहरी विकास की बुनियाद तैयार करती हैं।
चंद्रघंटा – शांति और आत्मसंयम की शक्ति: अर्धचंद्र से सुशोभित चंद्रघंटा शांति और संयम का प्रतीक हैं। शहरी विकास में नागरिकों के लिए शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण वातावरण को प्राथमिकता देनी चाहिए। बुनियादी ढांचा तैयार करने और योजना निर्माण में मानसिक स्वास्थ्य और संतुलित जीवनशैली से जुड़ी जरूरतों को पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
कुष्मांडा – ऊर्जा और जीवन शक्ति की प्रतीक: ब्रह्मांड का निर्माण करने वाली कुष्मांडा ऊर्जा और जीवन शक्ति का प्रतीक हैं। शहर के विकास के लिए जीवंत और ऊर्जावान शहरी भूदृश्य आवश्यक है। कुशल ऊर्जा प्रबंधन, सतत कार्यप्रणाली और जीवन से भरपूर सार्वजनिक स्थान एक जीवंत शहर के निर्माण और संचालन में योगदान देते हैं।
स्कंदमाता – पालन-पोषण की शक्ति: स्कंद अर्थात भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता पालन-पोषण की भावना की प्रतीक हैं। इसी तरह, शहरों को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सेवाओं के माध्यम से अपने नागरिकों के बेहतर परवरिश का इंतजाम करना चाहिए। एक देखभाल करने वाला शहर अपने निवासियों के कल्याण और विकास को बढ़ावा देता है।
कात्यायनी – साहस की शक्ति: देवी कात्यायनी वीरता की भी प्रतीक हैं। सही मायनों में शहर के विकास के लिए गरीबी, असमानता और पर्यावरणीय क्षरण से निपटने हेतु साहसिक पहल और साहसी नीतियों की ज़रूरत है। निडर निर्णय लेने से परिवर्तनकारी बदलावों की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है।
कालरात्रि – निर्भयता की शक्ति: देवी दुर्गा का सबसे उग्र रूप कालरात्रि निर्भयता का प्रतीक है। शहर के विकास हेतु पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देने और नवीन समाधानों को अपनाने के लिए निडरता आवश्यक है। निडरता लीक से हटकर सोच को बढ़ावा देती है, जो प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।
महागौरी – पवित्रता और शुद्धता की शक्ति: महागौरी पवित्रता और शुद्धता का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो कि स्वच्छ और शांतिपूर्ण वातावरण का प्रतीक है। शहरी विकास का लक्ष्य स्वास्थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देने वाला प्रदूषण मुक्त और स्वच्छ परिवेश होना चाहिए।
सिद्धिदात्री – सिद्धि की शक्ति: सिद्धिदात्री, सिद्धियों को पूर्ण करने वाली देवी हैं। शहर के विकास का अंतिम लक्ष्य नागरिकों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करना है। पर्याप्त सुविधाओं और अवसरों वाला एक सुनियोजित शहर अपने निवासियों के लिए भरा-पूरा और सुखमय जीवन सुनिश्चित करता है।
देवी दुर्गा की नौ शक्तियों की तरह, ये रूपक समग्र शहरी विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जीवटता, ज्ञान, आत्मसंयम, ऊर्जा, पोषण, साहस, निडरता, पवित्रता और संतुष्टि को अपनाकर एक शहर अपने सभी निवासियों के लिए सतत, सशक्त और सुव्यवस्थित भविष्य को आगे बढ़ा सकता है। यह दृष्टिकोण कार्यनीतिक रूप से स्थायित्व, समावेशी सोच और नागरिक जुड़ाव को अपनाते हुए अपनी आबादी की बुनियादी भौतिक जरूरतों को पूरा करने के भारत के समर्पण को रेखांकित करता है।
इन जरूरतों में किफायती आवास, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, सुलभ परिवहन और नागरिक सेवाएँ उपलब्ध कराना शामिल है। लोगों की आवास संबंधी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में शहरों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए भारत ऐसे परिणामों को हासिल करने की ओर आगे बढ़ रहा है जो हर शहरी की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। शहरों को अब उपलब्ध भौतिक, सांस्कृतिक और मानव पूंजी का लाभ उठाने की क्षमता रखने वाले केंद्र के रूप में देखा जाता है।
ये शहर आर्थिक और सांस्कृतिक शक्तियों के रूप में विकसित हो रहे हैं। इस परिवर्तन का उद्देश्य धन, समृद्धि, नवाचार, पेटेंट, ज्ञान, कला, साहित्य और बहुत सारी चीज़ों का निर्माण करना है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो मेस्लो के आवश्यकता सोपान सिद्धांत से जटिल रूप से जुड़ी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य के माध्यम से, भारत के शहर राष्ट्र की प्रगति और कल्याण की प्रेरक शक्ति बन सकते हैं।
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समय के साथ शहरी व्यवस्था आपस में जुड़ी प्रणालियों के जटिल नेटवर्क के रूप में विकसित हुई हैं। इसमें विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं और कई को तो पारंपरिक रूप से शहरी क्षेत्र का हिस्सा नहीं माना जाता था जैसे कि ऊर्जा और दूरसंचार। शहरों के प्रभावी प्रबंधन के लिए कई प्रकार के नए कौशल और क्षमताओं की ज़रूरत होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शहर अपनी पूरी क्षमता से काम करे। दुर्भाग्य से, वर्तमान शासन और वित्तीय संरचनाएँ जनसांख्यिकीय एवं आर्थिक बदलावों और शहरीकरण की जटिल चुनौतियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई है। आर्थिक अवसरों और जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से फायदा उठाने के लिए शहरों को इन चुनौतियों का कुशल समाधान करना चाहिए।
मई 2014 के बाद एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिंदु सहकारी संघवाद का आह्वान रहा है। राष्ट्रीय स्तर की रूपरेखा तैयार करने की कोशिश की गई है ताकि राज्यों और शहरों को प्राथमिक निर्णय-निर्माता बनने और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप समाधान तैयार करने के लिए सशक्त बनाया जा सके। यह दृष्टिकोण एक अहम बदलाव है क्योंकि इसके तहत सभी को एक जैसे समाधान उपलब्ध कराए जाने की जगह राज्यों और शहरों को ऐसे समाधान तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो उनके विशिष्ट भौगोलिक और सांस्कृतिक जरूरतों के अनुरूप हों।
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पहले नीति और योजनाएँ केंद्र में बनती थीं जिसे राज्य और शहर लागू करते थे। इससे हटकर, नए दृष्टिकोण में ‘भारतीयता’ को परिभाषित करने वाली इसकी ‘बहुलता’ का जश्न मनाने और इसका लाभ उठाने पर जोर है। शहरी विकास राज्य प्रशासन के दायरे में आता है जिसमें केंद्र सरकार की भूमिका मार्गदर्शक की ज्यादा है। इससे राज्यों और स्थानीय सरकारों को अपने-अपने क्षेत्र के विकास की रूपरेखा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका मिलता है। इस व्यवस्था में मेयर, शहर प्रबंधक और शहर के अन्य प्रतिनिधि शहर निर्माण के प्रमुख वास्तुकार होते हैं। मिलजुल कर किए गए प्रयासों और प्रासंगिक दृष्टिकोण के माध्यम से शहर एक समृद्ध और सतत भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।
(हितेश वैद्य, राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान (रा.न.का.सं.) के निदेशक हैं।)