उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव (Nikay Chunav) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सारे मंसूबे ध्वस्त हो गए। न सपा की अपनी सरकार में कराए गए कामों के प्रचार का असर दिखा न ही नए वायदे जुमलों का। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने भाजपा सरकार को घेरने की कोई कोशिश नहीं छोड़ी लेकिन भाजपा के आक्रामक प्रचार अभियान व डबल इंजन की सरकार के असर के आगे सपा की कोई रणनीति काम नहीं आई।
सपा ने निकाय चुनाव (Nikay Chunav) में वोटरों के नाम अपील जारी की थी। इसमें मनरेगा की तर्ज पर शहरी गरीबों को सुनिश्चित रोजगार देने समेत कई लुभावने वायदे किए गए थे। पर जो नतीजे आए हैं, उससे लगता है कि वोटरों ने इस पर कतई ध्यान ही नहीं दिया।
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अखिलेश का प्रचार अभियान भी बिखरा-बिखरा सा रहा। निकाय चुनाव (Nikay Chunav) बीच वह दो दिन कर्नाटक भी प्रचार करने गए। मेयर चुनाव के लिए उन्होंने लखनऊ, मेरठ, अलीगढ़, सहारनपुर, कानपुर, गाजियबाद, व गोरखपुर में ही प्रचार किया। इसके अलावा वह औरया व कन्नौज भी गए। पहले चरण में उनकी सक्रियता प्रचार में अपेक्षाकृत कम दिखी। टिकट बंटवारे में जिनको जिम्मा दिया गया उन पर कई तरह आरोप सामने आए।
अखिलेश ने सोची समझी रणनीति के तहत अपने प्रत्याशियों में सवर्णों को तवज्जो दी और सजातीय बिरादरी को बहुत कम टिकट दिए। ध्रुवीकरण रोकने के लिए ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी भी नहीं उतारे। पर यह रणनीति भी काम नहीं आई। अलबत्ता, अतीक अहमद का मुद्दा जहां भाजपा को खासा फायदा पहुंचा गया, वहीं इस मामले में सपा की सहानुभूति वोटरों का रास नहीं आई।