(जावेद अहमद)1967 में मनोज कुमार (Manoj Kumar) की एक फिल्म रिलीज हुयी, नाम था, ‘उपकार’ (Film Upkar)…इस फिल्म ने लोगों के दिलों को छुआ और समाज पर गहरा छाप छोड़ा (Deep Impression On the Society) …फिल्म रिलीज होने के कुछ दिनों बाद एक सुबह मनोज कुमार ने अपने घर की खिड़की से बाहर झांका तो देखा, एक लड़का बरसात में भीगता हुआ उनके गेट के पास खड़ा है।
मनोज कुमार ने वाचमैन को बुलाया, और पूछा कि वो लड़का कौन है? वाचमैन ने बताया कि वो सुबह चार बजे से यहां आया हुआ है और कहता है कि उसके पिताजी को मनोज कुमार से मिलना है। मनोज कुमार ने उस लडके को खबर भिजवा दिया कि दोपहर बाद रूपतारा स्टूडियो में अपने पिता के साथ आ जाये। मैं वहां फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं।
दोपहर बाद वह लड़का अपने पिताजी के साथ वहां पहुंच गया। रूप तारा स्टूडियो…मनोज कुमार के साथ उस वक़्त राज कपूर और निर्देशक मोहन सहगल भी बैठे थे। उस लडके के पिता ने पीली राजस्थानी पगड़ी पहनी हुई थी…दोनों मनोज कुमार के पास आए, हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और बिना कुछ बोले, चुप चाप वापस लौटने लगे।
मनोज कुमार को अजीब लगा कि कुछ बात ही नहीं की, और चल दिए…फिर बेचारे लडके को बारिश में भिगाकर मिलने का वक़्त क्यों माँगा था? मनोज कुमार ने उन्हें रोका और पूछा ‘भाई आप लोग कहाँ से आये है? क्यों आए है?’
लडके के पिता ने जबाब दिया, ‘भाईया, हम राजस्थान से आये हैं, गेहूं का व्यापारी हूँ, सिर्फ आप को प्रणाम करना था। आप ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी’।
उसकी बात सुन कर मनोज कुमार के साथ-साथ राज कपूर और मोहन सहगल भी चौक पड़े…राज कपूर ने उन दोनों को बैठने का आग्रह करते हुए उत्सुकता से पूछा ‘भाई, पूरी बात बता दे, कैसे बदल गयी तेरी ज़िन्दगी?’
उसने बताया, ‘मैं गेहूं का व्यापारी हूँ, ज्यादा पैसे कमाने के लिए मैं गेहूं की कालाबाजारी करता था, लेकिन जबसे उपकार फिल्म देखी, मेरी आँखें खुल गयीं। मैंने अब कालाबाजारी का काम छोड़ दिया है…इसलिए बस मनोज कुमार जी के दर्शन के लिए आया था.. मुझे कुछ और नहीं कहना’। बस इतना कह कर वो बाप बेटा वहां से चलने लगे, मनोज कुमार ने उन्हें गले लगा लिया।