लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा द्वारा विरोध उठाने वाली हर आवाज को कुचलने और उसे देशद्रोही तक करार देने का असंवैधानिक काम हो रहा है। कुछ घटनाएं जो सामने आ रही हैं उनसे तो यही प्रतीत होता है कि भाजपा राज में कानून व्यवस्था तो ध्वस्त है लेकिन अपनी कमी छुपाने के लिए भाजपा दूसरों को ही दोषी ठहराने में संकोच नहीं करती है। लोकतंत्र में यह स्थिति चिंतनीय है।
‘हत्या प्रदेश’ की पुलिस सुरक्षा नहीं हत्या का पर्याय बन सुर्खियों बटोर रही है। झांसी में मोंठ थाना प्रभारी द्वारा पुष्पेन्द्र यादव का फर्जी इन्काउंटर दुःखद है। 5 अक्टूबर की रात्रि 20 वर्षीय युवक पुष्पेन्द्र यादव पुत्र हरिशचन्द्र यादव निवासी ग्राम करगुवां खुर्द थाना मोंठ की गोली मारकर हत्या कर दी गई और मृृत युवक को घटना स्थल से लगभग 40 किमी से भी दूर ले जाकर गुरसहाय थाना क्षेत्र में ग्राम फरीदा के पास फर्जी मुठभेड़ दिखा दी गई। युवक का कोई अपराधिक इतिहास नहीं था।
उत्तर प्रदेश में बेखौफ अपराधी रोज ही लूट, हत्या, अपहरण की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। पुलिस फर्जी इन्काउटंर करके अपनी वाहवाही करती है। मानवाधिकार आयोग कई बार इसकी शिकायतों पर पुलिस और प्रशासन से जवाब मांग चुकी है। अब तो सरकार अपराधिक आंकड़े बताने से भी गुरेज कर रही है। ठोकों नीति का ही यह दुष्परिणाम है। ललितपुर में खाकी की बर्बरता के शिकार युवक की आत्महत्या और फतेहपुर में पिस्टल के दम पर दारोगा द्वारा महिला कांस्टेबल से रेप की वारदात स्तब्ध करने वाली घटना है। जब कि खाकी में तैनात महिला खाकी से सुरक्षित नहीं है तो फिर अन्य बेटियों की सुरक्षा कौन करेगा।
एक चित्रकार को गांजा-नशे के झूठे आरोप में उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन द्वारा प्रताड़ित करने पर, उसने जिस प्रकार अपनी रचनात्मकता से विरोध प्रकट किया, वो उसकी सच्चाई है। अब तो इस तरह की प्रताड़ना केे शिकार पत्रकार भी होने लगे है। कई लोगों पर मुकदमे लग गए है। बिजनौर में जिस पत्रकार ने दलित परिवार को पानी नहीं देने की खबर छापी तो पांच पत्रकारो पर केस दर्ज हो गए है। मिर्जापुर में मिड-डे मील में नमक-रोटी परोसे जाने की खबर पर भी पत्रकार गिरफ्तार हुआ है।
स्पष्ट है कि भाजपा को संविधान पर भरोसा नही है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों से भी उनका कोई लेना देना नही है। भाजपा राजनीति में शुचिता एवं पारदर्शिता को भी महत्व नहीं देती है। इसलिए राजनीति में वह मतभेद को मनभेद मानकर विरोध के दमन का रास्ता अपना रही है। यह सब जनता देर तक कतई सहन नहीं करेगी।