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अनुभव

ज्योति उपाध्याय

अनुभव

“जिंदगी साथ देती है हिस्सेदारी नहीं,
आदमी का हुनर है धोखा, वफ़ादारी नहीं !!”

‘ज़िन्दगी को आम नहीं खास बनाना है
सपनों को बुनना और गहराइयों में उतर जाना है
कोई क्या कह रहा है,
परवाह क्यूँ करें हम।
इतनी कोई जल्दी नहीं,
किसी से क्यूँ डरे हम।

ये दुनिया आनी जानी हो जाती है
कुछ दिन तक रहती है फिर कहानी हो जाती है
क्यूँ इन पर अब अमल करें हम
कौन सा इनसे रिश्ता निभाना है
ये तो दुनिया है जो किसी की नहीं
यहाँ हर रोज़ नया ज़माना है
ज़िन्दगी में जो बीत गया
उसे फिर क्यूँ दोहराना है
जो है और जो होगा आगे
उसी में जीकर दिखाना है !!’

‘हकीकत से रूबरू हो जाओ
ये दुनिया है मतलबी बड़ी
यहाँ जीना तो चाहते हैं सब
पर जीने की अब किसको पड़ी है
रोज़ मर रहें हैं लोग यहाँ पर
अपनी परेशानियों से जूझकर
ज़िन्दगी बन चुकी है खिलौना
जो कभी भी गिर जायें टूटकर
लो अब ख़त्म हुए वो सिलसिले
जो थे कितने पुराने
जिनसे नाता रखें ना जाने
बीत गए कितने ज़माने !!’

‘बात को यहीं खत्म करती हूँ
और बस यहीं कहूँगी
जीवन में आये कैसा भी वक़्त
मैं तो हर पल लड़ूंगी
ना किसी की परवाह मुझको
ना किसी से मैं डरूंगी
जो भी कहना है अब मुझको
वो बातें मैं कह कर रहूंगी !!’

ज्योति उपाध्याय

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