कर्तव्य
ज्ञान के तेज में मिलाकर कर्म के बल को,
सभ्यता की शंकाओं का समाधान कीजिय।
जाग्रत करिये अपने संचित पौरुष को,
पुरातन गौरव का पुन: भान कीजिये।
राम की उच्चता व कृष्ण का कर्मपथ लिए,
मानस में महावीर का ध्यान कीजिये।युगों युगों तक अमर रहेगी भारत भू,
सत्य सिद्ध पुन: यह वरदान कीजिये।
अपनाइए परिवर्तनों को प्रसन्नता से,
पर अपने आदर्शों का सम्मान कीजिये।
पुनर्ज्वलित कर पावन दीप आरती का,
अधर्म के तमस का अवसान कीजिये।बनकर शिवा वा प्रताप हमारी सदी के,
सभी भारतीयों का पुन: आह्वान कीजिये।
और यदि करनी शिवध्येय हेतु तपस्या,
तो दधीचि जैसा निस्संकोच दान कीजिये।
बस यही एक सारभूत कथन कवि का,
आरंभ राष्ट्र यज्ञ अति महान कीजिये।क्षितिज जैन “अनघ”
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