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कला गुरु लालजीत अहीर करेंगे धातु मूर्ति शिल्प (ब्रांज कास्टिंग) कार्यशाला का आयोजन और अपने महागुरु को करेंगे समर्पित

कला एवं शिल्प महाविद्यालय के मूर्तिकला विभाग द्वारा विगत वर्षों में पहली बार इस प्रकार की मेटल कास्टिंग प्रोसेस पर कार्यशाला हुई है। राज्य ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रवक्ता लालजीत अहीर ने विश्वविद्यालय के कुलपति एवं महाविद्यालय के प्राचार्य का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया।

लखनऊ। कला गुरु लालजीत अहीर के निर्देशन में दिनांक 13 से 22 अप्रैल, 2022 तक धातु मूर्ति शिल्प (ब्रांज कास्टिंग) कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में 10 विद्यार्थीयों द्वारा प्रतिभाग किया गया, जिसमे ब्रांज की 15 व टेराकोटा मे 65 मूर्तिशिल्प ने आकार लिया।

सराहनीय प्रयास यह है कि इस प्रकार के बहुप्रतिष्ठित आयोजनों के जरिए, कला गुरुओं को भी याद किया जा रहा है।

कला एवं शिल्प महाविद्यालय के मूर्तिकला विभाग द्वारा विगत वर्षों में पहली बार इस प्रकार की मेटल कास्टिंग प्रोसेस पर कार्यशाला हुई है। राज्य ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रवक्ता लालजीत अहीर ने विश्वविद्यालय के कुलपति एवं महाविद्यालय के प्राचार्य का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया।

यह कार्यशाला कलागुरु दिनेश प्रताप सिंह को समर्पित है।

महाविद्यालय का विशेष सराहनीय प्रयास यह भी है कि इस प्रकार के बहुप्रतिष्ठित आयोजनों के माध्यम से कला गुरुओं को भी याद किया जा रहा है। साथ ही, छात्रों को उनसे रुबरु करवा रही हैं। यह कार्यशाला कलागुरु दिनेश प्रताप सिंह को समर्पित है। दिनेश प्रताप सिंह अपनी कला सृजन के कारण वर्ष 1952 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय में छात्र के रूप में प्रवेश लिया। चित्रकला के छात्र होने के साथ, उनका प्रिय माध्यम मिट्टी, प्लास्टर ऑफ पेरिस सीमेंट थे। उनकी कृतियों में सागर मंथन, अवधि, श्री सरस्वती, सूर्य प्रतिमा, अंगडाई, चवरधारणी इत्यादि प्रमुख हैं। उनकी बनाई कृतियां, राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश, कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ एवं सम्पूर्णा नंद संस्कृत विश्वविद्यालय में विद्यमान हैं।

मूर्तिशिल्प कार्यशाला में लालजीत के शिष्यों द्वारा, सृजित मूर्तियों को प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षण का दायित्व निवर्हन करते हुए, वर्ष 1973 में, उन्हें गले का कैंसर हो गया, किन्तु रचनात्मकता एवं सृजनशीलता के कारण वर्ष 1990 तक का जीवन काल पूर्णतया कला को समर्पित किया। मॉडर्न आर्ट के दौर में, जब अन्य कलाकार भारतीय परम्परागत शैलियों को छोड़कर यूरोपियन स्टाइल और माध्यमों का चयन करने लगे और प्रयोगवादी अमूर्तन का प्रवेश कला के प्रत्येक क्षेत्र में होने लगा, तब ऐसे मे उन जैसे कलाकार अविचलित रह कर भारतीय परम्परागत शैली में कार्य कर नये प्रतिमान गढ़ते रहे।

दिनेश प्रताप सिंह के शिष्यों में से ही एक लालजीत अहीर हैं, जिन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर कला एवं शिल्प महाविद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ-साथ अपनी प्रयोगधर्मिता से सृजित मूर्तियों के संसार से सबको सम्मोहित किया है। मूर्तिशिल्प कार्यशाला में लालजीत के शिष्यों द्वारा, सृजित मूर्तियों को प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा, जिससे शहर के कलाप्रेमियों , कलाकारों एवं कलाछात्रों को कला के लिए मागदर्शन एवं सुखद अनुभूति का अहसास होगा |

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