Breaking News

बंदउँ नाम राम रघुबर को…

भारतीय दर्शन में पूर्ण भक्ति की बहुत महिमा बताई गई। कहा गया कि सम्पूर्ण समर्पण भाव की भक्ति से प्रभु प्रसन्न होते है। राम चरित मानस की चौपाई है-निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।। गोस्वामी तुलसीदास ने पांच प्रकार की भक्ति का वर्णन करते हैं। पहली चातक श्रेणी की भक्ति है। दूसरी कोकिल ये प्रभु का गुण गाने वाली भक्ति है। कीर माला रटने वाली,चकोर दर्शन की अभिलाषी भक्ति है।

आनंद मगन होकर मोर की तरह नाचने वाली भक्ति है। अहंकार के कारण लोग प्रभु को पहचानते नहीं है। तब भगवान स्वयं अपने भक्त के अंधकार रूपी अहंकार दमन करते हैं। कथा वाचक अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि पहले व्यक्ति की आयु जब सौ वर्ष मानी गई थी अखिरी के पचास वर्ष की उम्र में वान्य प्रास्थ और सन्यास की व्यवस्था थी। आज न तो समान्य वर्ष आयु सौ वर्ष की हो रही न ही आश्रम व्यवस्था पर अमल किया जा सकता है। जीवन की धर्म अर्थ काम, मोक्ष जैसी व्यवस्था होती है। धर्म पहले भी था आज भी है। मानव जीवन का लक्ष्य भोग नहीं है।

केवल मोक्ष की ओर बढ़ना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए धर्म पहले आया फिर अर्थ कमाया जाए वह भी धर्म के अनुसार भौतिक संसाधन धर्म के अनकूल हो, मोक्ष सन्यास की अवस्था में वन जाने की न परिस्थितिया न इसकी कोई अवश्यकता है। वर्तमान न तो नदियों का जल निर्मल बचा है। न वनों में फल फूल कंदमूल भी न रह गये। ऐसी अवस्था में क्या करें। इक्यावन, फिफ्टी वन, वृन्दावन तीनों की तुकबंदी नजर आती है।

इन तीनों शब्दों की बात समान है। तीनों के आखिरी में वन शब्द है जैसे इक्यावन वर्ष की अवस्था में पुरुष या नारी प्रवेश करे तो वह अपने मन को वृन्दावन को बनाने का प्रयास करे। इसका तत्पर्य है कि वह ग्रहस्थ जीवन में बना रहे। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। वह अपना व्यवासय,नौकरी अजविका चलाता रहे। लेकिन इन सबका मोह माया त्याग करके वह अपने मन में इश्वर की आराधन करे तो बिना कहीं जाए वह मोक्ष की लक्ष्य की ओर बढ़ता रहेगा।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

About Samar Saleel

Check Also

आज का राशिफल: 05 मई 2024

मेष राशि:  आज आपके खर्चों में बढ़ोतरी हो सकती है। घर की कलह आपके सिर ...