योगी मंत्रिमंडल में कुर्मी बिरादरी को खास तवज्जो देने के पीछे सियासी निहितार्थ हैं। भाजपा ने इस जाति के तीन कैबिनेट और एक राज्यमंत्री बनाकर भविष्य का सियासी संदेश दिया है।
मिशन 2024 की तैयारी में अभी से जुटी भाजपा की इस रणनीति ने सपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस बार सदन में पिछड़ी जाति के विधायकों में कुर्मी जाति के विधायकों की संख्या 37 से बढ़कर 41 हो गई है।
सियासी जानकारों का कहना है कि पिछड़ी जाति में यादवों को सपा का वोट बैंक माना जाता है। गैर यादव पिछड़ी जातियों में दूसरे नंबर पर कुर्मी हैं। यह कहीं भाजपा के साथ हैं तो कहीं सपा के साथ। एक बड़ा धड़ा अपना दल के साथ भी जुड़ा है।
भाजपा की रणनीति की एक बड़ी वजह यह भी है कि आधा दर्जन से ज्यादा सीटें सपा सिर्फ 200 वोटों के अंतर से हारी है। दूसरी तरफ, बसपा के कद्दावर कुर्मी नेता सपा के साथ आ गए हैं जिससे अंबेडकरनगर में भाजपा का खाता भी नहीं खुला।
अंबेडकरनगर में राममूर्ति वर्मा के बाद बसपा से लालजी वर्मा सपा में आए तो यहां भाजपा का खाता ही नहीं खुला। सिराथू में भाजपा के दिग्गज नेता उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सपा की डॉ. पल्लवी पटेल ने मात दी।