लखनऊ। एनी बेसेंट Annie Besant का जन्म 1 अक्टूबर, 1847 को लंदन के ‘वुड’ परिवार में हुआ था। एनी का बचपन काफी कठिनार्इ में बीता था। जब वह पांच साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद एनी की मां ने लेखक फ्रेडरिक मैरिएट की बहन व अपनी सहेली एलेन मैरिएट को एनी की जिम्मेदारी साैंप दी थी।
Annie Besant : पादरी फ्रैंक बेसेंट से शादी की
एनी की जिम्मेदारी एलेन मैरिएट को साैंप दी थी ताकी उसे अच्छी शिक्षा मिल सके। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1867 में एनी ने एक पादरी फ्रैंक बेसेंट से शादी की और उनके दो बच्चे हुए थे। हालांकि 1873 में उनका पति से कानूनी रूप से अलगाव हो गया था। इसके बाद बेसेंट नेशनल सेक्युलर सोसाइटी की सदस्य बन गर्इ। उन्होंने ‘मुक्त विचार’ और फैबियन सोसाइटी आदि से जुड़कर समाजवादी संगठन का तेजी से प्रचार किया।एनी बेसेंट के जीवन का मूल मंत्र कर्म करना था। वह युवाआें को भी कर्म करने को प्रेरित करती थीं।
उन्नत विचारों की वकालत
1870 के दशक में, एनी बेसेंट और चार्ल्स ब्रैडलाघ ने वीकली नेशनल रिफार्मर का संपादन किया। इसके जरिए उन्होंने ट्रेड यूनियनों, राष्ट्रीय शिक्षा, महिलाओं के वोट देने का अधिकार, और जन्म नियंत्रण जैसे विषयों पर उन्नत विचारों की वकालत की। सामाजिक और राजनीतिक सुधार के साथ युवाओं के धर्मांधता से दूर रखने के लिए 1875 में आंदोलन भी किए। एनी ने कई श्रमिकों के प्रदर्शनों का समर्थन किया। 1888 में उनके नेतृत्व में ब्रायंट में व पूर्वी लंदन में महिलाओं ने भुखमरी मजदूरी और कारखाने में फॉस्फरस धुएं से स्वास्थ्य पर भयानक प्रभाव की शिकायत करते हुए हड़ताल कर दी थी।
स्थिति में काफी तेजी से सुधार
अंततः हड़ताल से मजबूर होकर फैक्ट्री के मालिकों को कामकाज की स्थिति में काफी तेजी से सुधार करना पड़ा। वहीं दूसरी आेर एनी बेसेंट ‘थियोसॉफिकल सोसायटी’ की संस्थापिका ‘मैडम ब्लावत्सकी’ के संपर्क में आ गर्इ थी। इसके बाद पूर्ण रूप से संत संस्कारों वाली महिला बन गईं। 1889 में एनी बेसेंट ने स्वयं को ‘थियोसाफिस्ट’ घोषित किया था। भारतीय थियोसोफिकल सोसाइटी के एक सदस्य की मदद से वह एनी बेसेंट पहली बार 1893 में भारत पहुंचीं।
इसके खिलाफ आवाज उठाई
इस दौरान उन्होंने भारत भ्रमण करते हुए भारतीयों के चेहरे पर ब्रिटिश हुकूमत का दर्द देखा। उन्होंने अहसास किया अंग्रेज भारतीयों को शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य जरूरी चीजों से दूर रखते हैं। इसके बाद उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई।एनी बेसेंट ने भारत में ही बसने का फैसला लिया था। 1916 में उन्होंने भारतीय गृह नियम लीग की स्थापना की, जिसमें से वह राष्ट्रपति बन गईं। इसके अलावा वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अग्रणी सदस्य भी बनी थीं आैर भारतीयों के लिए लड़ी थीं।
विद्रोह के कारण जेल यात्रा
भारतीयों के पक्ष में खड़े होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना उनकी हिम्मत का बड़ा परिचय था।खास बात तो यह है कि एनी बेसेंट ने जब ब्रिटिश शासन की आलोचना की तो उन्हें विद्रोह के कारण जेल यात्रा भी करनी पड़ी। एनी बेसेंट एक समाज सुधारक के अलावा एक बेहतरीन लेखिका भी थीं। उन्होंने कईं किताबे लिखीं व पैम्फलेट की रचना भी की थी। 20 सितम्बर, 1933 को एनी बेसेंट ने अड्यार (तमिलनाडु) अंतिम सांस ली थी।