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बसपा में बगावत: राज्यसभा चुनाव से पहले मायावती को लगा बड़ा झटका

 राज्यसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी में बड़ी टूट होने की सूचना से हड़कंप मचा हुआ है। राज्यसभा के लिए बसपा प्रत्यशी रामजी गौतम के 10 प्रस्तावकों में से 5 प्रस्तावकों ने अपना प्रस्ताव वापस लिया। इनमें असलम चौधरी ,असलम राईनी, मुज्तबा सिद्दीकी ,हाकम लाल बिंद ,गोविंद जाटव शामिल हैं। इन विधायकों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने की संभावना जतायी जा रही है।

कल ही असलम चौधरी की पत्नी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली थी। बताया जा रहा है कि ये पांचों विधायकों अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी के दफ्तर में मौजूद हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश के पहुंचने के बाद कोई बड़ी घोषणा हो सकती है। राज्यसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी और मायावती को जोरदार झटका लगा है। राज्य में राज्यसभा की दस सीटों के लिए कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं।

इसमें से भाजपा के आठ, समाजवादी पार्टी के एक, बहुजन समाज पार्टी की ओर से एक उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा एक निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज ने पर्चा दाखिल किया है। अब अगर बसपा के विधायक माया से विद्रोह कर सपा के साथ आते हैं तो मायावती के लिए यह बहुत बड़ी सियासी चोट होगी। कहा जा रहा है कि तमाम विधायक बसपा प्रमुख मायावती के भाजपा प्रेम से परेशान थे। हाथरस मुद्दें पर माया के रूख से पार्टी के अंदर तमाम लोग बेचैन नजर आ रहे थे।

इससे पहले ऐन मौके पर सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के मैदान में आ जाने से अब राज्यसभा चुनाव की जंग रोचक हो गई थी। अगर सबके पर्चे सही पाए गए तो 11 प्रत्याशियों में से 10 को चुनने के लिए मतदान होगा। विधायकगण वोट डालेंगे। सपा की इस चाल से चुनाव की नौबत आ गई है। इससे बसपा का खेल मुश्किल हो गया है। इससे बड़ी बात यह कि विधायकों में क्रासवोटिंग के आसार भी अब बनेंगे। भाजपा इस स्थिति से बचना चाहती थी। इसलिए उसने अपना नौवां प्रत्याशी नहीं उतारा और एक तरह से उसके इस कदम से बसपा की राह भी आसान हो गई थी।

सपा ने भाजपा व बसपा के बीच इस खेल को समझते हुए निर्दलीय प्रकाश बजाज को उतार कर सियासी समीकरण गड़बड़ा दिये। यह निर्दलीय प्रत्याशी किस दल में कितना सेंध लगा पाएंगे यह तो बाद में जाहिर होगा, लेकिन इतना साफ हो गया कि अब बसपा को अपने विधायक भी संभाल कर रखने होगा। क्रास वोटिगं का खतरा भाजपा को भी है। उसे अपने विधायकों को इधर-उधर जाने से रोकने के लिए विशेष सतर्कता बरतनी पड़ रही है। वैसे अब बदले हालात में सभी दलों के विधायकों की अहमियत बढ़ गई है।

असल में 18 विधायक होने के बाद भी बसपा ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया और भाजपा ने अपना नौंवा प्रत्याशी नहीं उतारा। ऐसे में सपा के रणनीतिकारों ने भी बसपा की राह में कांटे बोने की तैयारी शुरू कर दी। सपा ने निर्दलीय प्रत्याशी पर दांव लगाकर एक तीर से दो निशाने लगाए हैं। एक तो इससे निर्विरोध चुनाव की संभावना खत्म हो गई और बसपा की जीत भी आसान नहीं रही।

दूसरे भाजपा की इच्छा के विपरीत राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान की स्थिति बन गई। भाजपा के 8 व सपा का एकमात्र प्रत्याशी का जीतना तय है। सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बसपा व भाजपा के बीच अंडरस्टैडिंग काफी समय से है और राज्यसभा चुनाव ने इसे सतह पर ला दिया। हम लोग आसानी से जीतने नहीं देंगे। राज्यसभा जाने के लिए फार्मूला है। इसके मुताबिक कुल विधायकों की संख्या को जितने सदस्य चुने जाने हैं उसमें एक जोड़कर विभाजित किया जाता है।

यूपी से राज्यसभा की दस सीटों के लिए चुनाव होना है। इस दस संख्या में 1 जोड़ने से यह संख्या 11 होती है। अब कुल सदस्य 394 हैं। एक जोड़ने पर यह संख्या 395 हो जाएगी। इसके 11 से विभाजित करने पर 35.90 आता है। इसमें फिर एक जोड़ने पर यह संख्या 36.90 हो जाती है। विधानसभा सचिवालय के एक अधिकारी के मुताबिक इस तरह छत्तीस वोटों की जरूरत होगी। लेकिन वास्तव में कितने वोट चाहिए इसकी सही संख्या तो मतदान के बाद ही तय होगी। क्योंकि अगर कुछ वोट अवैध हो गए तो जीत का अंक 36 के बजाए कुछ और भी हो सकता है।

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