छत्तीसगढ़ Chhattisgarh के नाराणपुर जिले के अबूझमाड़ को देश का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाका माना जाता है। इस क्षेत्र में चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति बेहद खराब है। यहां की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज से एक सप्ताह पूर्व तक यहां दवा की एक भी दुकान नहीं थी। नक्सल भय की वजह से यहां किसी की हिम्मत नहीं थी कि वह चिकित्सा सेवा के लिए काम करे। इसी बीच यहां माड़िया आदिवासी समुदाय की एक युवती ने दवाई की दुकान स्थापित कर साहसिक पहल की है।
Chhattisgarh में नाराणपुर जिले के
छत्तीसगढ़ में नाराणपुर जिले के ओरछा विकास खण्ड मुख्यालय में पहली दवा दुकान की स्थापना कुमारी किरता दोरपा ने की है। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र मे पहली दवाई की दुकान खोलकर नई मिशाल पेश की है। वैसे तो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ओरछा में मरीजों को सभी आवश्यक दवाई निःशुल्क मिल जाती हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी था कि कई दवाईयों के लिए 70 किलोमीटर दूरी तय कर जिला मुख्यालय नारायणपुर आना-जाना पड़ता था। अब ओरछा क्षेत्र के लोगों को इस दूरी से निजात मिलेगी।
किरता ने परिवार और मित्रों के आर्थिक सहायता और सहयोग से ओरछा में मावा नाम से दवा दुकान खोली है। इस दुर्गम क्षेत्र के अबूझमाड़ियों के लिए यह दवा दुकान जीवनदायनी बनी है। किरता ने बताया कि चारों ओर से घने जगलों-पहाड़ों से घिरे दुर्गम इलाके में दवा दुकान खोलना और उसे चलाना चुनौती पूर्ण काम था।
ओरछा की जनता, सरपंच और सचिव को इस कार्य के लिए हमेशा प्रोत्साहन देते रहे थे। सभी के प्रोत्साहन और आर्थिक मदद से यह कठिन काम संभव हुआ। उनकी दुकान में इलाके की भौगोलिक परिस्थितियों और जरूरत के हिसाब से लगभग जरूरी दवाईयां उपलब्ध हैं। जिनकी अधिकांश तौर पर जरूरत महसूस होती है।
अब लोग डाक्टर की पर्ची लेकर दवाईयां लेने आने लगे हैं। मरीजों और उनके परिजनों की नारायणपुर में दवाईयां लेने आने-जाने में होने वाले खर्च और समय की बचत होने लगी है। इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि बस्तर के 4 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले हुए नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के इलाकों में बसने वाले आदिवासी आबादी जरूरत की चीजों से वंचित हैं।