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सीआईसी जावेद उस्मानी: जनसूचना अधिकारियों के वेतन से कटौती की जगह सरकारी बजट से दंड राजकोष में जमा कराने की जांच के लिए एक्टिविस्ट उर्वशी ने भेजा पत्र

लखनऊ। उत्तर प्रदेश का राज्य सूचना आयोग बदहाली के दौर से गुजर रहा है। सामान्यतया किसी संवैधानिक संस्था के मुखिया का पद एक पल के लिए भी खाली नहीं रहता है लेकिन यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) जावेद उस्मानी को रिटायर हुए एक साल होने को आया है पर सीआईसी के रिक्त पद का कार्यभार अभी तक किसी अन्य आयुक्त को हस्तांतरित नहीं किये की वजह से सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 15(4) के तहत आदेश निर्गत नहीं हो सकने की विधिक रूकावट के कारण सुनवाई कक्ष एस-1 और एस-2 की सुनवाइयाँ ठप्प हैं और देश भर के आरटीआई आवेदक परेशान हैं।

समाजसेविका और आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने बताया कि आयोग के सुनवाई कक्ष संख्या S-1 तथा सुनवाई कक्ष संख्या S-2 में चल रहे पुराने मामलों और नए पंजीकृत मामलों में लम्बे अरसे से कोई सुनवाई और कार्यवाही नहीं हो रही है, जिसका खामियाजा पूरे देश के आरटीआई आवेदक भुगत रहे हैं। क्योंकि उनकी अपीलें/शिकायतें लम्बे अरसे से आयोग में डंप पड़ी हैं और इन अपीलों/शिकायतों की पत्रावलियां आयोग में पड़ी धूल फांक रही हैं।

बकौल उर्वशी सीआईसी के पद पर नियमित नियुक्ति किया जाना अभी प्रक्रियाधीन है। और नियमित सीआईसीकी नियुक्ति होने में अभी लंबा समय लगने की सम्भावना है। इसीलिये अब उन्होंने अथॉरिटीज को पत्र लिखकर सीआईसी के पद का कार्यभार तत्काल वर्तमान में कार्यरत किसी भी सूचना आयुक्त को हस्तांतरित करके सुनवाई कक्ष संख्या S-1 और सुनवाई कक्ष संख्या S-2 में लिस्ट होने वाली अपीलों और शिकायतों को अन्य सुनवाई कक्षों में अंतरित करने का (सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 15(4) के तहत) कार्यकारी आदेश निर्गत कराने की मांग की है। ताकि सुनवाई कक्ष संख्या S-1 तथा सुनवाई कक्ष संख्या S-2 में चल रहे पुराने मामलों और नए पंजीकृत मामलों में सुनवाई और कार्यवाही तत्काल आरंभ हो और देश भर के आरटीआई आवेदकों की इस समस्या का समाधान हो जाए।

उर्वशी ने बताया कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का उल्लंघन करने वाले राज्य जन सूचना अधिकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(1) के तहत कार्यवाही करके जो अर्थदण्ड लगाया जाता है। उसकी वसूली सम्बंधित राज्य जन सूचना अधिकारियों के वेतन से करके उसे राजकोष में जमा कराने के स्पष्ट निर्देश सम्बंधित सूचना आयुक्त के आदेश में भी होते हैं तथा आयोग के रजिस्ट्रार द्वारा सम्बंधित लोक प्राधिकरण के सर्वोच्च अधिकारी को भेजे गए आदेश में भी ऐसे स्पष्ट निर्देश अभिलिखित रहते हैं।

उर्वशी ने बताया आरटीआई आवेदकों द्वारा उनके मोबाइल हेल्पलाइन नंबर 8081898081 पर फ़ोन करके उनको बताया गया है कि कतिपय लोक प्राधिकरण सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(1) के तहत अधिरोपित अर्थदण्ड की बसूली सम्बंधित राज्य जन सूचना अधिकारियों के वेतन से नहीं कर रहे हैं, अपितु सम्बंधित लोक प्राधिकरण को आवंटित बजट से ही अर्थदंड की धनराशि को राजकोष में जमा कर रहे हैं जो सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(1) की मंशा के प्रतिकूल है, सूचना आयोग के आदेशों की अवमानना है और साथ ही साथ गंभीर श्रेणी की वित्तीय अनियमितता भी है। उर्वशी ने बताया कि उन्होंने इस मामले में राज्य स्तरीय अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष और सदस्यों को पत्र लिखकर अर्थदण्डों की समीक्षा के लिए बैठक आहूत कराकर जांचोपरांत यथेष्ट अग्रेत्तर कार्यवाही करने की मांग की है।

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