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कांग्रेस का रक्त चरित्र: टूटना, बिखरना, खड़े होना और फिर टूट जाना

   दया शंकर चौधरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताते हुए कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया है। अब पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी प्रियंका और राहुल गांधी को अनुभवहीन बताते हुए कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। ऐसा लगता है कि मोदी का ये नारा अब सच साबित हो रहा है। कांग्रेस की नीति और नियत का आलम ये है की तमाम वरिष्ठ कांग्रेसियों का एक तबका देश की सबसे पुरानी पार्टी के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए पार्टी हाई कमान को नशीहतें दे रहा है।

बावजूद इसके पार्टी नेतृत्व इस ओर कोई ध्यान न देते हुए अपने पुराने पैटर्न पर ही कायम है। कांग्रेस की अलग-अलग राज्य सरकारों में एक के बाद दूसरा संकट सिर उठा रहा है। पंजाब में नए मुख्यमंत्री और कैबिनेट में नए मंत्रियों की नियुक्ति के बाद अब पंजाब कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे ने तो मुश्किलें बढ़ाई ही हैं, राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। बताते चलें कि पिछले साल कई हफ्तों तक राजस्थान सरकार पर संकट के बादल छाए रहे थे। सचिन पायलट के खेमे ने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला था। गांधी परिवार के हस्तक्षेप के बाद किसी तरह ये मामला सुलझ पाया था। फिलहाल संकट की सुगबुगाहट के बीच राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मामले को सुलझाने के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत के संपर्क में हैं।

कांग्रेस के इतिहास को यदि देखा जाए तो भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों में शुमार कांग्रेस का गठन 28 दिसंबर 1885 को हुआ था। इसकी स्थापना एक अंग्रेज ‘एओ ह्यूम’ (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य) ने की थी। दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा भी इसके संस्थापकों में शामिल थे। संगठन का पहला अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया था। उस समय कांग्रेस के गठन का मुख्‍य उद्देश्य भारत की आजादी था, लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात यह भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई।

हालांकि यह बात और है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य पूरा हो चुका है, अत: इसे खत्म कर देना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रही है। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता पार्टी की नीतियों और नेतृत्व को लेकर मुखर हो रहे हैं। यूं तो कांग्रेस कई बार टूटी है, फिर से खड़ी भी हुई है। एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस टूट सकती है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में देखें तो कांग्रेस अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। सबसे आखिरी झटका कांग्रेस को दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया था, जिनके एक फैसले से मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस चारों खाने चित हो गई। हालांकि कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। अपनी स्थापना के कुछ समय बाद से ही पार्टी में तोड़फोड़ का सिलसिला लगातार जारी है।

आजादी से पहले ही कांग्रेस दो बार टूट चुकी थी। 1923 में सीआर दास और मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया था। 1939 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सार्दुलसिंह और शील भद्र के साथ मिलकर अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक का निर्माण किया। आजादी के बाद कांग्रेस से टूटकर लगभग 70 दल बन चुके हैं। इनमें से कई खत्म हो चुके हैं, जबकि कुछ आज भी अस्तित्व में हैं। आजादी के बाद पहली कांग्रेस को 1951 में टूट का सामना करना पड़ा, जब जेबी कृपलानी ने अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बनाई। सौराष्ट्र खेदुत संघ भी इसी साल बनी। 1956 में सी. राजगोपालाचारी ने अलग होकर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई। 1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा में कांग्रेस टूट गई। यह सिलसिला लगातार जारी रहा और 1964 में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस बनाई। 1967 में चौधरी चरणसिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल बनाया। बाद में इन्होंने लोकदल के नाम से पार्टी बनाई। चौधरी चरण सिंह कुछ समय के लिए भारत के प्रधानमंत्री भी रहे।

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने विपक्ष का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया था। एकतरफा बहुमत के साथ राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।लेकिन उनकी ही सरकार में रक्षामंत्री रहे वीपी सिंह ने बगावत का झंडा बुलंद किया और कांग्रेस को 1998 में सत्ता से बाहर होना पड़ा। वीपी सिंह ने कांग्रेस से बाहर होकर जनमोर्चा नाम से नया दल बनाया और बोफोर्स मुद्दे के चलते वे भाजपा और वामपंथी दलों की बैसाखी के सहारे प्रधानमंत्री बने।

बाद में इसी जनमोर्चा से टूटकर जनता दल, जनता दल (यू), राजद, जद (एस), सपा आदि दल बने। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक पार्टी से टूटने वाले नेताओं और उनके द्वारा बनाई गई पार्टियों की फेहरिस्त काफी लंबी है। कुछ पार्टियां काल के गाल में समा गईं, वहीं कुछ का अस्तित्व आज भी बरकरार है। इनमें पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस आंध्रप्रदेश में वायएसआर कांग्रेस, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), छत्तीसगढ़ में स्व. अजीत जोगी की जनता कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजू पटनायक पहले कांग्रेस में थे फिर जनता दल में शामिल हुए बाद में ओडिशा में बीजद नाम से नया दल बना। वर्तमान में बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक राज्य के मुख्‍यमंत्री हैं।, चौधरी चरणसिंह का लोकदल, जो कि राष्ट्रीय लोकदल के नाम से जिंदा है। और भी छोटे-मोटे दल हैं जिनका असर नहीं के बराबर है।

कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले नेताओं की सूची भी काफी लंबी है, लेकिन इनमें से कुछ देर-सबेर कांग्रेस में ही लौट आए, कुछ ने अपना अलग वजूद कायम किया। प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया, नारायणदत्त तिवारी, पी. चिदंबरम, तारिक अनवर ऐसे कुछ प्रमुख नाम हैं, जो कांग्रेस पार्टी छोड़कर तो गए लेकिन बाहर अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं हो पाए और फिर कांग्रेस में ही लौट आए। इसके उलट ममता बनर्जी, शरद पवार, जगन मोहन रेड्‍डी, मुफ्ती मोहम्मद सईद ऐसे नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने कांग्रेस से बाहर जाकर अपना अलग वजूद कायम किया। ममता बनर्जी (टीएमसी) पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री हैं, जगन मोहन रेड्‍डी (वायएसआर कांग्रेस) आंध्रप्रदेश के मुख्‍यमंत्री हैं, वहीं शरद पवार की पार्टी महाराष्ट्र की ‍शिवसेना नीत सरकार में शामिल है।

सईद भी कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, बाद में उनकी बेटी महबूबा भी मुख्‍यमंत्री बनीं। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्‍यमंत्री रहे स्व. अजीत जोगी का नाम भी ऐसे ही नेताओं में शुमार है, लेकिन वे कांग्रेस से अलग होकर कुछ खास नहीं कर पाए। आज भी जोगी की पार्टी अस्तित्व में है और उनके निधन के बाद उनकी पत्नी रेणु जोगी और बेटा अमित जोगी पार्टी को चला रहे हैं। आजादी के बाद से लेकर 2014 तक 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि 4 बार सत्तारुढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक समय (करीब 55 वर्ष) तक सत्ता में रही। पहले चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया था, लेकिन 16वीं लोकसभा में यही पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई, जबकि 17वीं लोकसभा में स्थिति में मामूली सुधार हुआ और यह संख्या बढ़कर 51 तक पहुंच गई।

इस चुनाव में तो कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका अमेठी में लगा, जहां राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव हार गए। सोनिया गांधी द्वारा अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद राहुल गांधी कुछ समय तक पार्टी के अध्यक्ष रहे, लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली और उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। फिलहाल सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। इनसे पहले पंडित जवाहर नेहरू, कामराज, नीलम संजीव रेड्‍डी, इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, सीताराम केसरी, राजीव गांधी आदि दिग्गज नेता अध्यक्ष रह चुके हैं। इस पार्टी को देश में 7 प्रधानमंत्री देने का श्रेय जाता है। इनमें पंडित नेहरू, गुलजारीलाल नंदा (कार्यवाहक प्रधानमंत्री), लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंहराव और मनमोहन सिंह हैं। मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक कांग्रेस नीत यूपीए की गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था।

कांग्रेस पार्टी के दामन पर 1975 में देश में आपातकाल लगाने का दाग भी लग चुका है। उस समय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं। भले ही नरेन्द्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हों, लेकिन कांग्रेस के इतिहास पर बारीकी से नजर डालें तो यह पार्टी कई बार टूटी है और उतनी मजबूती से खड़ी भी हुई है। फिलहाल कांग्रेस के सामने नेतृत्व का भी संकट है। इसी को लेकर बार-बार सवाल भी उठ रहे हैं। ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस इस संकट से भी उबर जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के लिए भी यह आवश्यक है कि कांग्रेस का अस्तित्व बना रहे। कांग्रेस पार्टी के जी -23 नेताओं के समूह ने अब देशव्यापी “सेव द आइडिया ऑफ इंडिया” कैंपेन लॉन्च किया था।

गुलाम नबी आजाद भी कांग्रेस के जी -23 में शामिल हैं। पिछले साल अगस्त में 23 कांग्रेस नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सक्रिय नेतृत्व और व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ एक राज्यों को छोड़ दें, तो पूरे देश में कांग्रेस अपना जनाधार खोती चली गई। कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व में बदलाव को लेकर सुगबुगाहट तेज हुई तो राहुल गांधी ने कुछ समय के लिए पार्टी की कमान संभाली थी, मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया। सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बन गईं। इसके बाद कई और राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी। राजनैतिक पंडितों का कहना है कि कुछ ही महीनों में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में कांग्रेस की आंतरिक कमजोरी उसके लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

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