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कोरोना पीड़ित आजम खानः जिसके सामने बड़े-बड़ों की थम जाती थी सांसे, आज वह एक-एक सांस के लिए है मजबूर

       अजय कुमार

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के नेता और रामपुर के सांसद आजम खान करीब सवा साल से सीतापुर के जिला जेल में बंद हैं। आजम खान के कारनामें किसी से छिपे नहीं हैं। समाजवादी पार्टी की सरकार के समय आजम अपने आप को ‘बेताज बादशाह’ न समझते तो आज उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता,लेकिन सत्ता चीज ही ऐसी होती है जो बड़े-बड़ों का दिमाग खराब कर देती है। सत्ता में रहते आजम  जो ठान लेते थे, उसे पूरा करके दिखाते थे। यहां तक की सीएम अखिलेश यादव तक उनके सामने जुबान नहीं खोल पाते थे, यह और बात है कि अब अखिलेश ने आजम से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया है। आजम के कारनामें छोटे-मोटे नहीं थे। जब भी वह जुबान खोलते थे तो उसमें साम्प्रदायिकता का जहर घुला होता था।

आजम की जिद्द के चर्चे दिल्ली तक में होते थे,जिसे वह पूरा करके ही दम लेते थे। सत्ता में रहते आजम ने रामपुर मे जौहर विश्वविद्यालय खोलने का सपना देखा तो उसे पूरा करने के लिए पूरी ताकत लगा दी। सही-गलत कुछ नहीं देखा। सरकारी अधिकारी और मशीनरी उनके इशारों पर काम करती थी। इस लिए उन्हें अपना हुक्म पूरा कराने मेे कोई परेशानी भी नहीं होती थी। आजम जिसके पीछे पड़ जाते उसका जीना मुश्किल हो जाता था। कई सरकारी अधिकारी आज भी आजम के उत्पीड़न के गवाही देते मिल जाते हैं।

आजम ने व्यक्तिगत दुश्मनी लेने से भी परहेज नहीं किया। 2014 के लोकसभा चुनाव मेें वह भाजपा प्रत्याशी जयाप्रद के अंगवस्त्र को लेकर दिए गए विवादित बयान के चलते काफी अपमानित किए गए थे। आजम की हनक का यह हाल था कि जब उन्हें जौहर विवि का सपना पूरा करने के लिए जमीन की जरूरत पड़ी तो उन्होंने कई सरकारी दस्तावेजों को पलट के रख दिया ताकि विवि के लिए जमीन की कोई कमी नहीं रहे। जहां उनके सपनों के विवि की स्थापना होनी थी, वहां के आसपास की जमीन हथियाने के लिए आजम ने अपने गुंडे लगाकर दशकों से रह रहे लोगों को दर-बदर कर दिया। इसी प्रकार 2013 मंे अखिलेश सरकार रहते हुए मुजफ्फरनगर मे हुए दंगों को कौन भूल सकता है। जब आजम लखनऊ में बैठ कर मुजफ्फरनगर प्रशासन और पुलिस को बता रहे थे कि किसको पकड़ना है और किसे छोड़ना है। आजम के कहने पर ही तब पुलिस ने उन लोगों और बिरादरी पर कहर ढहाने में कोई कोताई नहीं की थी जो भुक्तभोगी थे और उनके घर की बेटे-बेटियों को मौत के   घाट उतार दिया था, जिसके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश कई हफ्तों तक साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसता रहा था और तत्तकालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आँख मूंदे सब कुछ देखते रहे थे। इतना ही नहीं पीड़ितों को मुआवजा तक उनका धर्म देखकर बांटा गया।

एक धर्म विशेष के लोग जो उपद्रवी थे,उन्हीं के लिए बाकायदा कच्ची कालोनी तक बना कर वहां खाने-पीने की व्यवस्था कर दी गई थीं आजम की सनक का यह आलम था कि वह सेना को भी जातीय आधार पर बांट कर देखते थे। मोदी के लिए आजम जितनी घटिया भाषा इस्तेमाल कर सकते थे, उन्होंने इसमें परहेज नहीं किया। यहां तक की भारत माता के लिए भी अपशब्द  प्रयोग करने से भी आजम ने कभी गुरेज नहीं किया। आजम खान को गर्ममिजाजी के चलते खामियाजा भी भुगतना पड़ा था। आजम के समाने अखिलेश बोलने की हिम्मत नहीं करते थे तो आजम को राजनीति का कखहरा सीखाने वाले मुलायम सिंह पूरी छूट दिए रहते थे,इसी छूट के चलते आजम पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी रहे अमर सिंह  अब दिवंगत तक को चुनौती देने लगे थे।आजम-अमर की दुश्मनी को कौन भूल सकता है। दोनों के बीच छत्तीस का आकड़ा था। एक बार तो आजम को, अमर सिंह पर की गई विवादित टिप्पणी के चलते मुलायम ने समाजवादी पार्टी से बाहर तक का रास्ता दिखा दिया गया था। आजम अपने आप को मुसलमानों का रहनुमा समझते थे,परंतु मुसलमानों ने उन्हें कभी तवज्जो नहीं दी। इसी लिए आजम खान की गिरफ्तारी से लेकर आज उनके कोरोना संक्रमित होने के बाद अति गंभीर अवस्था में पहुच जाने तक कोई आजम के साथ दिखाई नहीं दे रहा है, न ही किसी तरह की सियासी या कौमी हलचल दिखाई दे रही है।

उत्तर प्रदेश के रामपुर से सांसद और समाजवादी पार्टी  के नेता आजम खान की हालत काफी नाजुक है। 09 मई को उन्हें कोरोना संक्रमित होने के बाद गंभीर हालत में सीतापुर जेल से लखनऊ के मेदांता अस्पताल लाया गया था और दूसरे ही दिन सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होने के बाद डॉक्टर्स ने उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया था। आज स्थिति यह है कि सत्ता में रहते हुए जिस आजम खान के सामने बड़े-बड़ों की सांसें रूक जाती थी, वह आजम आज आईसीयू में एक-एक सांस के लिए संघर्ष कर रहे है। हॉस्पिटल ने बताया कि 72 साल के आजम खान को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। उन्हें प्रति मिनट 10 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है।


पिछले सवा साल से जेल में बंद सपा नेता आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला दोनों एक मई को कोरोना संक्रमित पाए गए थे। पहले उनका जेल में इलाज चलता रहा, लेकिन ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद उन्हें लखनऊ के मेदांता अस्पताल में शिफ्ट करना पड़ गया। आजम के साथ उनके बेटे अब्दुल्ला को भी मेदांता में ही भर्ती कराया गया है। आजम मार्च 2020 में पत्नी-बेटे के साथ जेल भेजे गए थे। आजम, उनकी पत्नी रामपुर सदर से विधायक तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला के खिलाफ फरवरी 2020 में रामपुर के अपर जिला न्यायाधीश धीरेंद्र कुमार की अदालत ने कुर्की का वारंट जारी किया था। यह वारंट पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम के दो जन्म प्रमाणपत्र बनवाने से संबंधित मुकदमें में जारी किए गए थे। अदालत में पेश न होने के कारण तीनों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुए थे। इसके बाद तीनों ने अपर जिला न्यायाधीश की अदालत में समर्पण किया था। जहां उन्हें 2 मार्च 2020 तक के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था। सांसद आजम समेत तीनों नेताओं को रामपुर जेल में रखा गया था। लेकिन, कानून व्यवस्था का हवाला देकर तीनों को सीतापुर जेल में शिफ्ट कर दिया गया था।

इससे पहले 20 दिसंबर को फातिमा जेल से रिहा हुई थीं। हालांकि, उनके बेटे अब्दुल्ला और खुद सांसद आजम खान जेल में रहे। दरअसल, रामपुर के गंज थाने में आकाश सक्सेना ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि अब्दुल्ला आजम खान ने 28 जनवरी 2012 और 21 अप्रैल 2015 को नगर निगम रामपुर से दो जन्म प्रमाण पत्र जारी कराया। इसमें अलग-अलग जन्म तिथि है, एक में उनकी जन्म तिथि 1 जनवरी 1993 है, तो दूसरे में 30 सितंबर 1990 है। ऐसा उनके द्वारा सरकारी लाभ व चुनाव लड़ने के लिए किया। उनके इस धोखाधड़ी में उनके पिता आजम खान व उनकी मां डॉ. तंजीन फातिमा शामिल हैं। इसी जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर अब्दुल्ला आजम खान की विधायकी भी रद्द की जा चुकी है।समाजवादी पार्टी के नेता और रामपुर के सांसद आजम खान करीब सवा साल से सीतापुर के जिला जेल में बंद हैं।

बहरहाल, आजम खान के ऊपर करीब पांच दर्जन मुकदमें चल रहे हैं,लेकिन अभी तक किसी मामले में गुनाहागार नहीं साबित हुए है। अभी लम्बी प्रक्रिया चलेगी तब कहीं आजम के गुनाहाे का फैसला हो पाएगा। योगी सरकार आजम के खिलाफ सख्त पैरवी कर रही है ताकि उनके गुनाहों की सजा मिल जाए,वहीं समाजवादी नेता ही नहीं कांगे्रस तक के नेता यह मानते हैं कि आजम खान बीजेपी सरकार के राजनैतिक उत्पीड़न के शिकार हुए हैं। अब सच क्या है यह फैसला तो कोर्ट से ही होगा,लेकिन इतना तय है कि योगी सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि आजम खान कुछ मामलों में आरोपी होने के साथ-साथ सीनियर सिटीजन होने के अलावा जनप्रतिनिधि यानी सांसद भी हैं। ऐसे में योगी सरकार की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि वह बिना किसी रार के आजम को वह सुविधाएं मुहैया कराए जिसके वह हकदार हैं,इसमें चिकित्सीय और अन्य सुविधाएं हो सकती हैं। ऐसा इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि आजम एक मई को कोरोना संक्रमित पाए गए थे और 09 मई तक उनका इलाज जेल में ही चलता रहा,जबकि यदि सरकार चाहती तो वह आजम की हालात गंभीर होने से पूर्व भी किसी ऐसे अस्पताल में शिफ्ट कर सकती थी,जहां इलाज की सभी सुविधाएं मौजूद रहती। कोरोना की गाइड लाइन भी यही कहती है कि बुजुर्ग कोरोना पीड़ितों का इलाज अस्पताल में ही होना चाहिए।  इतना ही राजनैतिक रूप से भी यह जरूरी है कि आजम स्वस्थ्य होकर लौटें।

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