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कोरोना महामारीः महिलाओं की स्थिति और बिगड़ी है

    वीरेन्द्र बहादुर सिंह

महिलाओं के साथ हमेशा से ही असमानता का व्यवहार होता आया है। यही वजह हेै कि घर, समाज और कार्यस्थल पर उन्हें आज भी भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। यही सामाजिक मानसिकता समयसमय पर हिंसा का अलगअलग स्वरूप बन कर सामने आती है। समाज मेें इसका विरोध भी बहुत धीमा होता है। शायद यही कारण है कि ज्यादातर लोग इसे चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं।

इस मुद्दे पर समयसमय पर विरोध जरूर होता रहा है, पर अभी तक हमारे यहां उस तरह का विकास नहीं हुआ, जहां महिलाएं अपने अधिकार और गरिमा के साथ सहजता से जी सकें। स्थिति ऐसी है कि देश महामारी से गुजर रहा है और इस स्थिति का सामना करने के लिए हर किसी का सहयोग जरूरी है। लोगों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस स्थिति में महिलाओं को तमाम मौकों पर पीड़ा और अत्याचार का शिकार होना पड़ रहा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा देश के 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कराए गए एक ताजा सर्वे में पता चला है कि घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी होने की वजह से महिलाओं की जो वर्तमान स्थिति सामने आ रही है, वह बहुत ही चिंताजनक है और हमारे अब तक के सामाजिक विकास पर सवाल पैदा करती है। इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि अधिकतर राज्यों में 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। सबसे खराब स्थिति कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलांगना और बिहार में है। कर्नाटक मेें तो इस स्थिति से पीड़ित महिलाओं की संख्या लगभग 45 प्रतिशत है और बिहार में 40 प्रतिशत। अन्य राज्यों में भी स्थिति में खास अच्छी नहीं है।

कोरोना महामारी के कारण इस तरह की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी होने की शंका व्यक्त की गई है। यूएन द्वारा भी लॉकडाउन की स्थिति में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में भयानक बढ़ोत्तरी होने की चिंता व्यक्त की गई थी। यह बहुत ही दुखद है कि जिस महामारी की इस चुनौती में पैदा हुई स्थिति में पुरुषों और महिलाओ दोनों को समान रूप से जूझना पड़ रहा है, वहीं महिलाओं को और अधिक बुरी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। हकीकत में कोरोना के संक्रमण पर काबू पाने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन में व्यापक रूप से लोगों की रोजगारी और अन्य मामलों से वंचित रहना पड़ा था। इसके अलावा लोगों को घर में ही कैद रहने की स्थिति का भी सामना करना पड़ा था। ऐसे में चारों तरफ से दबाव की स्थिति बन गई थी और जिसे लंबी खिंचने के कारण निराशा, हताशा और आक्रमकता जैसी साइकोलॉजिकल में बदल जाना स्वाभाविक है।

यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि व्यक्ति जो व्यवहार करता है, वह उसकी अंतरचेतना के साथ जुड़ा होता है। हम भले ही समाज के अच्छे पहलुओं की चर्चा कर लेते हैं, पर यह बात किसी से छुपी नहीं है कि महिलाओं के प्रति सामाजिक व्यवहार सचमुच सकारात्मक नहीं है। अक्सर घरेलू हिंसा को सहज और सामाजिक चलन का हिस्सा मान कर उसके लिए लोग आंख और कान बंद किए रहते हैं। महिलाओं को इस तरह की हिंसा के लिए समझौता कर लेने की सलाह भी दी जाती है।

ऐसी स्थिति में घरों की चार दीवालों के बीच होने वाली यह हिंसा एक क्रम का स्वरूप धारण कर रोजाना के व्यवहार में आ लाती है। हकीकत में यह एक सामाजिक विकृति है। जिसे हर हालत में दूर करना जरूरी है। पर यह सब तभी संभव हो सकता है, जब सरकार नीतिगत प्राथमिकताओं में सामाजिक विकास, रूढ़िगत विचारों, दृष्टिकोण तथा मानसिकता बदलने की दिशा मेें काम करेगी। मात्र कानून बनाने से ही नहीं, उसे सख्ती से अमल करने तथा इस बारे में सामाजिक जाग्रति लाने से सी सामाजिक स्थिति में सुधार हो सकता है।

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