क्या वजह है कि जियो और जीने दो का उसूल हमें आज भी नहीं भाता यह खोट है नजर का कि दूसरों का सुखचैन हमसे देखा नहीं जाता। इंसानियत के कमजोर होने पर यह लाइनें पड़ी मौजूद सी लगती हैं। जाति के आधार पर इंसान का इंसान में फर्क करना, बेवजह की दूरी और ऊंच-नीच के फासले बनाना एक सामाजिक बुराई है, तालीम व तरक्की बढ़ने के बावजूद चल रही है ऐसी बुराइयों की वजह जातिवाद पिछड़ी सोच व धार्मिक कट्टरता है।
बगुला भगत सबसे एक जैसा बर्ताव करने दीन दुखियों की मदद करने व उन्हें गले लगाने की महज बातें करते हैं, लेकिन उनकी कथनी और करनी एक जैसी नहीं होती। हालांकि भेदभाव की बुनियाद पर टिकी मारते आज के समय बेहद पुरानी व खंडहर हो चुकी हैं लेकिन उनका वजूद बरकरार है जो आज भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। भारतीय संविधान में भी स्पष्ट किया गया कि जातिवाद को वर्जित करार देकर कि हम भारतीय को समान अधिकार देने की बात कही गई है। सन 2010 में सर्वोच्च न्यायालय राम सजीवन बनाम मुकदमे में आदेश देता हुआ पाया गया कि जातिवाद को समाप्त कर दिया जाए। लेकिन संसद के अंदर एक ऐसी बहन जी हैं जो दलित वर्ग की राजनीति कर अपने घर भरते पाई गई हैं एक महान भाव ऐसे भी हैं जो जय परशुराम का नारा लगवाकर ब्राह्मण हृदय सम्राट बन बैठे, कुछ लोगों को पटेल जाति के आरक्षण प्रदान करने में इतना दिल्ली पाया गया कि वह भूल ही गए यह देश उनका है वे इस देश के हैं, मित्रों मेरे एक बात समझ नहीं आती कि मंडल से लेकर कमंडल तक यह कैसी राजनीति सत्ता की होड़ मची हुई है जो इस देश की भोली-भाली जनता को और इस देश का भविष्य भूल गए हैं।
कोई कहे ठाकुर बात की राजनीति कोई ब्राह्मणों को क्या मिला कोई जाकर हरिजनों को फुल आए तो कोई जाकर जाटों को वर्ग लाए तो कहीं-कहीं तो इस्लाम के नाम पर राजनीति का गोरख धंधा खोल रखा है, जब मैं भारतवर्ष के इतिहास के पन्नों पर नजर डालता हूं तो देखता हूं कि अंग्रेजो ने हम पर 200 साल राज किया, हमको जाति और धर्म में बांट बांट कर राज किया, और उनका सशक्त साम्राज्य उस दिन समाप्त हो गया जब सारा देश भेदभाव की वीडियो को तोड़कर एकजुट हो गया। आज देश के नेताओं को देखिए जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए जातिवाद को आग लगाकर अपनी सत्ता को बचाने का कार्य कर रहे है, जो जनता को मूर्ख बनाकर अपनी रोटियाँ सेकने में लगे हुए है,जो देश की सेना के शौर्य के ऊपर प्रश्न खड़ा करते है, मैं देश की जनता से एक सवाल करता हूं कि ऐसी मानसिकता वाले नेता का समर्थन करेंगे क्या आप, कि बाल्मीकि के ही कहे या, थे शबरी के भी राम कुबढ़ा के बस में कैसे रहे करुणामई श्याम, युद्धों में कभी हारे नहीं, हम डरते हैं छन छन दोनों से हर बार पराजय पाई है अपने घर के जयचंद्रो से अगर आज के समय में क्रांतिकारी होते तो देखते है जो हँसते हँसते फाँसी के फंदों पर झूल गए क्या वह व्यर्थ था, क्यों कि आज अगर एक राहुल जान देता है तो सिर्फ एक टीना के लिए , आज हम सब को जातिवाद की राजनीती छोड़ कर के राष्ट्रवाद व् विकासवाद की राजनीति करनी चाहिए।
रिपोर्ट-पुष्पेंद्र सिंह