2005 बैच के आईपीएस अधिकारी दीपक कुमार मूलरूप से बेगुंसराय बिहार के रहने वाले हैं। आईपीएस दीपक ने अपनी स्कूली शिक्षा लातेहार में पूरी करने के बाद बनारस विश्वविद्यालय से इकाॅनाॅमिक्स में बीए की डिग्री पूरी की। फिर यह मुंबई चले गए। यहां से इन्होंने एलएलबी की डिग्री प्राप्त की।
बहुत कम लोग जानते हैं कि दीपक कुमार आईपीएस चुने जाने से पहले दानिक्स कैडर में भी सलेक्ट हुए थे। दानिक्स कैडर में इन्हें दिल्ली पुलिस में एसीपी बनाया गया था। एसीपी के पद पर कार्य करते हुए इन्होंने सिविल सर्विस का एग्जाम दिया और आईपीएस सलेक्ट हो गए।
दीपक ने दिल्ली पुलिस में भी खासा नाम कमाया। दिल्ली पुलिस में श्री दीपक की गिनती बहुत ही तेजतर्रार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के रूप में होती थी।
आईपीएस बनने के बाद प्रोबेशन में इनकी तैनाती गाजियाबाद जैसे महत्वपूर्ण जनपद में की गई। वह सीओ मोदीनगर और सीओ साहिबाबाद रहे। प्रोबेशन पीरियड में इन्होंने इस कहावत को चरितार्थ कर दिया कि पूत के पांव पालने में ही पता चल जाते हैं। वह गाजियाबाद में बहुत ही लोकप्रिय हुए। प्रोबेशन पूरा होने के बाद इन्हें पीएसी में भेज दिया गया। लेकिन वह यहां चंद दिन ही रहे। उन्हें जल्द ही बागपत का एसपी बनाया गया। बागपत में वह इतने लोकप्रिय हुए कि वहां जन जन उन्हें आज भी याद करता रहा है। बागपत में वह लगभग ढाई साल रहे। इतने समय बागपत में आज तक कोई एसपी नहीं रहा। बागपत में जिला पंचायत चुनाव के दौरान एक बसपा के सांसद का नाजायज दबाव मामने से इंकार करने पर सरकार ने इनका तबादला फिर से पीएसी में कर दिया।
इसके बाद वह सोनभद्र और रायबरेली जिलों के भी एसपी रहे। अपने ईमानदार और नाजायज राजनीतिक दबाव न मानने की वजह से जिलों से पीएसी में ज्यादा रहे।सर्वविदित है कि पीएसी को पनिश्मेंट पोस्टिंग माना जाता है। चाहे कोई भी और कैसी भी सरकार हो वह अपनी छवि सुधारने के लिए चंद ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों की भी जिलों में पोस्टिंग करती है। इसी जरूरत के हिसाब से उन्हें मेरठ का एसएसपी बनाया गया।
जब वह मेरठ के एसएसपी थे उसी दौरान मुजफ्फरनगर में दंगे भडके थे जिनकी आंच आस पास के सभी जिलों में पहुंच गई थी। लेकिन मेरठ अकेला ऐसा जिला था जहां एक भी दंगा नहीं हो पाया। इसका पूरा श्रेय आईपीएस दीपक कुमार को ही जाता है। मेरठ की जनता आज भी उन्हें प्रशंसित अंदाज में याद करती है। दंगों के दौरान दीपक कुमार की कर्मठता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 24 में से 20 घंटा फोर्स के साथ खुद सड़क पर रहते थे। इसे जनता का दुर्भाग्य कहें या सिस्टम का कमी कि पूरी ईमानदारी और कर्मठता से काम करने के बावजूद ऐसे अधिकारी को जिसने जिले को दंगों की आग में झुलसने से बचाया उसे फिर पीएसी भेज दिया गया।
पीएसी की 32वीं वाहिनी के कमांडेंट बनने से पहले दीपक कुमार इलाहाबाद के एसएसपी थे। यहां एक दारोगा पर वकीलों के हमले के बाद दारोगा द्वारा चलाई गई गोली से एक वकील मारा गया था। इस प्रकरण में दीपक ने बिलकुल निष्पक्ष कार्रवाई कराई थी। उनकी कार्य प्रणाली और ईमानदारी के बदौलत ही मौजूदा सरकार ने उन्हें राजधानी लखनऊ का एसएसपी बनाया है।