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महिलाओं को अशक्त और अदृश्य बनाने वाला कानून वापस लेने की मांग

अफगानिस्तान में हाल ही में कथित रूप से ‘सदगुण को बढ़ावा देने और अवगुण की रोकथाम’ पर केंद्रित एक कानून को पारित किया गया है, जिसमें थोपी गई पाबंदियों से महिला अधिकारों के लिए पहले से ही विकट स्थिति और गम्भीर हो गई है।

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अफगानिस्तान में सत्तारुढ़ तालेबान प्रशासन की अगस्त 2021 में वापसी हुई थी, जिसके बाद से ही महिला अधिकारों के लिए हालात तेजी से खराब हुए हैं। नए कानून में महिलाओं के बुनियादी मानवाधिकारों पर अंकुश लगाने वाले अनेक दमनकारी प्रावधान बताए गए हैं।

महिलाओं को अशक्त और अदृश्य बनाने वाला कानून वापस लेने की मांग

इनमें महिलाओं की आवाजाही की आजादी, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना किसी भेदभाव के जीवन जीने के अधिकार समेत अन्य पाबंदियां हैं। इसके अलावा महिलाओं से सिर से पांव तक उनके शरीर को पूरी तरह ढंकने वाले कपड़े पहनने को अनिवार्य कर दिया गया है। परिवहन व्यवस्था संचालकों के लिए महिलाओं को लाना-ले जाना तब तक संभव नहीं होगा, जब तक उनक साथ कोई पुरुष संगी न हो। सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं की आवाज सुने जाने पर भी पाबंदी लगाई गई है।

इस कानून में अनेक ऐसी पाबंदियां हैं, जिनकी स्पष्टता से व्याख्या नहीं की गई है, मगर उनसे महिलाओं के मानवाधिकारों पर असर होता है- जैसेकि आजादी के साथ अपने धार्मिक तौर-तरीकों का पालन करने का अधिकार। इसके समानांतर तालिबानी कानून में राजसत्ता एजेंसियों को व्यापक पैमाने पर शक्तियां सौंपी गई हैं, जिनमें लोगों को हिरासत में लेने, उन्हें दंडित करने और सम्बन्धित मामलों को अदालत में ले जाने का अधिकार है। साथ ही, मीडिया सेक्टर पर सत्तारूढ़ तालेबान की पकड़ मजबूत हुई है। बताया गया है कि व्यक्तियों और प्रशासनिक अधिकारियों की तस्वीरों को प्रकाशित करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

‘असहनीय’ स्थिति

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इसे बेहद खराब कानून और असहनीय करार देते हुए उसे तत्काल वापिस लिए जाने की मांग की है। मानवाधिकार मामलों के लिए प्रमुख ने कहा कि ऐसे कानूनों से महिलाओं को उनकी वैयक्तिक स्वायत्तता से वंचित किया जा रहा है और उन्हें चेहराविहीन, बेआवाज परछाई में तब्दील करने की कोशिश की जा रही है, जिससे सार्वजनिक जीवन में उनकी मौजूदगी को पूर्ण रूप से मिटा दिया जाएगा।

उन्होंने सचेत किया है कि अफगानिस्तान की आधी आबादी को अशक्त, अदृश्य व बेआवाज बनाने वाले इस क़ानून से देश में मानवाधिकारों की स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। इसके बजाय यह समय अफगानिस्तान में सभी धर्मों, लिंगों व जातीयता के लोगों को एक साथ लाने और देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निपटने का है।

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