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‘लोकतांत्रिक देश को पुलिस स्टेट की तरह काम नहीं करना चाहिए’, बेल खारिज होने के बढ़ते मामलों पर कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी होने के बावजूद निचली अदालतों की ओर से ‘‘जो मामले गंभीर नहीं हैं’’ उनमें भी जमानत याचिकाएं खारिज किए जाने पर निराशा जाहिर की है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान (Justices Abhay S Oka and Ujjwal Bhuyan) की पीठ ने सोमवार को कहा कि एक लोकतांत्रिक देश को पुलिस राज्य की तरह काम नहीं करना चाहिए। जहां कानून प्रवर्तन एजेंसियां बिना किसी वास्तविक आवश्यकता के व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए मनमानी शक्तियों का प्रयोग करती हैं।

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न्यायालय ने कहा कि दो दशक पहले छोटे मामलों में जमानत याचिकाएं शायद ही कभी उच्च न्यायालयों तक पहुंचती थीं, शीर्ष न्यायालय तक तो बात ही छोड़िए। न्यायमूर्ति ओका ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “यह चौंकाने वाला है कि सर्वोच्च न्यायालय उन मामलों में जमानत याचिकाओं पर फैसला सुना रहा है, जिनका निपटारा ट्रायल कोर्ट के स्तर पर किया जाना चाहिए। व्यवस्था पर अनावश्यक रूप से बोझ डाला जा रहा है।”

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यह पहली बार नहीं है जब शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को उठाया है। इसने बार-बार ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से जमानत देने में ज्यादा उदार रुख अपनाने का आग्रह किया है, खास तौर पर छोटे-मोटे उल्लंघनों वाले मामलों में।

निचली अदालतों की ओर से जमानत देने से इनकार पर कोर्ट की टिप्पणी

सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी निचली अदालतों की ओर से जमानत देने से इनकार करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी, जिसे उसने “बौद्धिक बेईमानी” कहा था। अदालत ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के महत्व पर बल देने वाले कई निर्देश दिए थे।

मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने एक आरोपी को जमानत दे दी जो धोखाधड़ी के एक मामले में दो साल से अधिक समय से हिरासत में था। जांच पूरी हो जाने और आरोपपत्र दायर हो जाने के बावजूद, आरोपी की जमानत याचिका ट्रायल कोर्ट और गुजरात उच्च न्यायालय दोनों ने खारिज कर दी थी।

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