Breaking News

डिजिटल दुनिया की मोबाइल-लैपटॉप जैसी डिवाइस तोड़ रही हैं आपके पैरेंट बनने का सपना

स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग करने से पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का खतरा रहता है, साथ ही उनके अंदर फुर्ती और कंसंट्रेशन की कमी भी हो जाती है. लंबे समय तक पॉकेट में मोबाइल रखने और गोद में लैपटॉप रखने से स्पर्म काउंट और गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि पुरुषों में स्पर्म प्रोड्यूस करने वाले जो टेस्टेस होते हैं उनपर हीट का असर महिलाओं की ओवैरीज की तुलना में ज्यादा होता है.

डॉ. गुंजन गुप्ता गोविल

शादी के बाद हर कपल का सपना होता है कि उनके घर में बेबी आए और घर की रौनक बढ़ जाए. लेकिन कई बार शारीरिक समस्याएं उनके इस ख्वाब को पूरा नहीं होने देतीं. फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) से जुड़ी दिक्कतें हंसते-खेलते परिवारों की चिंता बढ़ा रही हैं. ऐसा होने के क्या कारण हैं? इनसे कैसे बचा जा सकता है? नई-नई टेक्नॉलजी ने आज बहुत सारे काम आसान जरूर कर दिए हैं, लेकिन इन आविष्कारों का इंसान की सेहत पर बुरा असर भी पड़ रहा है.

स्मार्टफोन्स का बेतहाशा इस्तेमाल, लैपटॉप, कम्प्यूटर और वायरलेस कनेक्शन जैसी चीजें अब जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गई हैं, लेकिन ये तमाम चीजें न सिर्फ व्यक्ति को खुद पर निर्भर बना रही हैं, बल्कि हेल्थ को भी प्रभावित कर रही हैं. कोरोना महामारी के बाद से तो जैसे डिजिटल बूम आ गया है और ये सिर्फ ऑनलाइन पढ़ाई तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि लोग मनोरंजन के लिए भी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर समय गुजार रहे हैं. एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने लोगों को अपना गुलाम बना लिया है.

आज हम डिजिटल दौर में हैं और इसने लाइफस्टाइल पर बहुत बुरा असर डाला है, जिससे कई तरह की बीमारियां होने लगी हैं. इन इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के कारण इंफर्टिलिटी यानी बांझपन की परेशानी भी बढ़ी है. पुरुष और महिला दोनों ही इसका बुरी तरह शिकार हुए हैं. स्टडीज से पता चलता है कि भारत में स्मार्टफोन और मोबाइल टॉवरों से होने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन अन्य देशों के तुलना में 10-15 फीसदी ज्यादा है.

इस तरह के रेडिएशन के कारण भारत में 10-12 फीसदी कपल्स अलग-अलग किस्म की फर्टिलिटी समस्याओं से जूझ रहे हैं. राउटर्स, डोन्गल्स, वायरलेस इंटरनेट डिवाइस, वायरलेस माउस और की-बोर्ड जैसे आइटम्स ने नुकसानदायक रेडिएशन का खतरा और बढ़ा दिया है. इस तरह की डिवाइस नॉन-आयोनाइजिंग रेडिया फ्रीक्वेंसी रेडिएशन से चलती हैं, जो नुकसानदायक होते हैं. खासकर, वायरलेस डिवाइस का इस्तेमाल सेहत और फर्टिलिटी पर बहुत ज्यादा असर डालता है. साथ ही कैंसर का रिस्क भी बढ़ जाता है.

रेडिएशन से कैसे प्रभावित होती है फर्टिलिटी?

स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग करने से पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का खतरा रहता है, साथ ही उनके अंदर फुर्ती और कंसंट्रेशन की कमी भी हो जाती है. लंबे समय तक पॉकेट में मोबाइल रखने और गोद में लैपटॉप रखने से स्पर्म काउंट और गुणवत्ता खराब होती है, क्योंकि पुरुषों में स्पर्म प्रोड्यूस करने वाले जो टेस्टेस होते हैं उनपर हीट का असर महिलाओं की ओवैरीज की तुलना में ज्यादा होता है.

गर्मी और रेडिएशन स्पर्म सेल की ग्रोथ को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. रेडिएशन के कारण डीएनए भी डैमेज हो जाता है जिससे सेल्स की स्वतरू मरम्मत की कैपेसिटी कम हो जाती है. इस तरह रेडिएशन फर्टिलाइजेशन में रुकावट पैदा करता है, जिसका नतीजा ये होता है कि या तो महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं या फिर मिसकैरेज हो जाता है.

रेडिएशन के अलावा भी कारण

ज्यादा टीवी देखने से जंक फूड खाने की आदत लग जाती है और व्यक्ति आलसी भी होने लगता है. स्टाइल की वजह से या स्टेटस सिंबल की वजह से, लोग शराब और तंबाकू का सेवन भी कर रहे हैं. जंक फूड खाने और अव्यवस्थित लाइफस्टाइल इंसान को मोटापे की तरफ ले जा रहे हैं, और ये भी बांझपन का प्रमुख कारण है. मोटापे के कारण पुरुषों में यौनेच्छा की कमी आती है तो महिलाओं में सेक्सुअल इच्छाएं कम हो जाती हैं.

मोटापे से सेक्सुअल डिजायर्स तो कम होती ही हैं, साथ ही सेक्स के दौरान जल्दी थकान भी हो जाती है. अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडिमायलॉजी में छपी एक स्टडी के अनुसार, सप्ताह में 20 घंटे से ज्यादा टीवी देखने के कारण स्पर्म काउंट में 35 फीसदी की गिरावट आ जाती है. इसके अलावा, हर दिन 5 घंटे से ज्यादा टीवी देखने से स्पर्म काउंट में भारी गिरावट आती है और शरीर में टेस्टोटीरोन लेवल भी कम हो जाता है.

ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन की एक स्टडी में बताया गया है कि आलसभरी लाइफस्टाइल का स्पर्म काउंट से सीधा कनेक्शन है. 18-20 साल की उम्र के 200 छात्रों के स्पर्म सैंपल लिए गए, जिसकी रिपोर्ट में पाया गया कि जो लोग लगातार टीवी देखते हैं, साथ में खाते-पीते हैं उन लोगों का स्पर्म काउंट 37 मिलियन प्रति मिलीमीटर रहा, जबकि जो लोग बहुत ही कम टीवी देखते हैं उनका स्पर्म काउंट 52 मिलियन प्रति मिलीमीटर आया. जिन लोगों को टीवी देखने की लत थी, उनके स्पर्म काउंट में बाकी लोगों की तुलना में 38 फीसदी की गिरावट देखी गई.

इसके अलावा स्टडी में ये बात भी सामने आई कि टीवी देखने से हर घंटे फेफड़ों में ब्लड क्लॉट के कारण मौत का खतरा भी 45 फीसदी बढ़ जाता है.डिजिटल जमाने की इन चुनौतियों ने जहां परिवारों को निराश किया है, वहीं टेक्नॉलजी के कारण ऐसे घरों में किलकारियां भी गूंज रही हैं. असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेकनीकऐसे लोगों के लिए वरदान है जो मां-बाप बन पाने में सफल नहीं पाते. रोबोट की मदद से काम करने वाली इस टेक्नीक से मां बनना बहुत ही आसान और सुरक्षित हो गया है और इसके कोई दुष्परिणाम भी नहीं हैं.

(लेखिका का परिचय – फाउंडर और चेयरमैन गुंजन आईवीएफ वर्ल्ड ग्रुप)

About reporter

Check Also

नई दुल्हन अपने पास जरूर रखें इस तरह के फुटवियर, हर लुक के साथ लगेंगे कमाल

हर लड़की के लिए उसकी शादी का दिन काफी अहम होता है। शादी के बाद ...