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प्रदेश में डॉ मोहन यादव का नेतृत्व यादवों से कोसों दूर

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने 12 दिसंबर 2023 को मध्य प्रदेश की सत्ता शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रदेश के नए मुखिया मोहन यादव को सौंपी जिसका एक साल पूरा होने के बाद भी वे निर्णय लेने ओर अपने विधायकों सहित मीडिया व किसी भी सामाजिक आयोजनों से दूरियां बना कमजोर बने हुये है, जिससे उनके प्रति नाराजगी की शुरुआत कहीं उन्हे नुकसान में न ला दे यह कयास लगाए जाने लगे है।

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प्रदेश में डॉ मोहन यादव का नेतृत्व यादवों से कोसों दूर

जिस प्रकार भाजपा ने अपने सभी लोकप्रिय ओर भारी कदकाठी के नेताओं को किनारे लगाकर नया प्रयोग किया उसमें भले ही इन नेताओं ने खामोशी से मोहन यादव की सरकार में उनके अधीनस्थ रहकर काम करना शुरू कर दिया किन्तु इन एक वर्षों में मोहन यादव का वह दमदार किरदार जिसने बड़े बड़े किरदारों को धराशायी कर देश में अपनी पृथक पहचान बनाई वही परतंत्र मुख्यमंत्री अर्थात चाबी से चलने वाले साबित हो रहे है वरना क्या कारण है की उन्होने अब तक सभी समाजों सहित अपनी विरादरी के सभी सामाजिक संगठनो से दूरी बनाए रख प्रदेश में यादवों के महाशंखनाद के पश्चात 18 फरवरी 2023 को अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के 61 वे राष्ट्रीय अधिवेशन में पूर्व आमंत्रण देने के पश्चात देशभर से आए महासभा के राष्ट्रीय, प्रादेशिक कार्यकारिणी सहित हजारों स्वजातीय बंधुओं के समक्ष राजधानी भोपाल में शामिल नहीं हुये। इस राष्ट्रीय आयोजन में शामिल होने की तो बात दूर, मुख्यमंत्री ने देर अबेर अपनी या सरकारी लाचारी ही बताकर खेद जाहिर कर सकते थे अथवा परिस्थितिवश नहीं आ सके तो अपनी सरकार के अन्य मंत्री को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेज सकते थे, वहाँ भी वे असफल रहे।

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इधर अखिल भारतीय गवली ग्वाला समाज महासभा 12 दिसंबर को इंदौर में 7 अन्य सामाजिक प्रतिभाओं सहित मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को ग्वाला रत्न अवार्ड से सम्मानित करने हेतु उनके उज्जैन स्थित आवास पर पूर्व न्यायाधीश धनराज दुबेले, श्यामलाल चौधरी ओर एडवोकेट शिव प्रकाश रियार के नेतृत्व में पहुंचे किन्तु वे वहाँ होते हुये पार्टी कार्यक्रमों में व्यस्त रहें ओर इन समाज के जिम्मेदारों सहित पदाधिकारियों से सौजन्य भेंट हेतु समय तक देना उचित नहीं समझा। दूसरी ओर मुख्यमंत्री मोहन यादव के विश्वासपात्र सारे यादव अधिकारियों सहित अन्य स्टाफ सभी समाजों के बीच आपसी सामंजस्य कायम रखने की नीति लिए काम करता दिखाई देता है, जबकि उन्हे सेतु का काम कर मुख्यमंत्री से सहज सुलभ भेंट करा कर किसी प्रकार की नाराजी का अवसर किसी को नहीं देना चाहिए।

व्हाट्सअप ग्रुप ओर सोशल मीडिया पर ग्वाला रत्न अवार्ड के निमंत्रण देने पहुचे जिम्मेदारों से डॉ मोहन यादव का न मिलना ओर आयोजन के अतिथियों द्वारा उनके आवास के सामने के फोटो पोस्ट करने के बाद मुख्यमंत्री श्री यादव ने सोशल मीडिया पोस्ट से स्वीकारा की आमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ इस हेतु उन्होंने आयोजकों को कार्यक्रम हेतु शुभकामनाएं दी किन्तु उस आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि के निवेदन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की जिससे आयोजक सहित प्रदेश के अन्य जिलों से शामिल होने वाले यादवों के लिए यह कष्टदायक है।

अगर यादवों के सर्वमान्य नेता की बात की जाये तो सुभाष यादव थे, उन जैसा न हुआ है ओर न होगा। उनके बाद बीजेपी में बाबूलाल गौर ने विलडोजर मंत्री के रूप में पहचान बनाकर भोपाल टाकीज़ चौराहे पर लगे मार्केट के दुकानों भवनों ओर लाजों को कठोरता से सफाया कर यहाँ का कायाकल्प कर भोपाल नगर को विशेष उपहार दिया किन्तु वे सर्वमान्य यादव नेता का रुतवा हासिल नहीं कर सके जबकि शिवराज के हाथो जब तक प्रदेश का नेतृत्व था उनके स्वजातीय या क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति के लिए यह स्थिति नहीं रही ओर हर जाति वर्ग ओर समाज के छोटे से बड़े तक लोगों से मिलकर उन्होने उन सभी की पंचायत आयोजित कर सभी के चहेते बने ओर जिस दिन वे राजधानी में रहे सभी से भेंट करते रहे किन्तु डॉ मोहन यादव शिवराज के लोकप्रिय होने के हर फ़ार्मूले को जानते समझते हुये उसे अपनाने की बजाय हर समाज ओर वर्ग सहित अन्य कार्यकर्ताओं ओर प्रदेश के मीडिया से दूरी बनाए हुये है, उनके यहाँ उनसे मिलने का समय मांगे जाने पर समय नही दिया जा रहा है, जिससे कुर्सी पर सवार डॉ मोहन यादव या उनका स्टाप उनके अपयश का भागीदार बन रहा है, यह उचित संदेश नहीं है।

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सत्तारूढ़ दल में नए प्रयोग तेजी से हुये ओर पार्टी में जिनका आभामंडल महिमामंडित था वे टूटते तारे बन गए ओर जो सुबह का ध्रुव तारा की तरह रहा वह डॉ मोहन यादव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चमक उठे । उत्तर प्रदेश के यादवों सहित अन्य प्रदेश के यादवों के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए केंद्र सरकार ओर संगठन ने डॉ मोहन यादव को नए यादव नेता के रूप में स्थापित करने की मुहिम शुरू की गई थी किन्तु वे सर्वमान्य यादव नेता की पहचान बनाने में अपने घर में ही टांय टांय फिस्स हो गए।

प्रदेश में डॉ मोहन यादव का नेतृत्व यादवों से कोसों दूर

19 अप्रेल से 1 जून 2024 तक की समयावधि में 7 चरणों में हुये लोकसभा चुनावों में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने यादव बाहुल्य वाले राज्यों और चुनाव क्षेत्रों में हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को भेजा किन्तु यह भी सत्य है की इस अवधि में डॉ॰मोहन यादव पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह आम जनता के मामा नहीं बन पाए हैं। भाजपा नेतृत्व जिस प्रकार डॉ मोहन यादव को नया यादव नेता बनाने के अपने दाव खेलने में सफल हुई है जिससे डॉ मोहन यादव ने प्रदेश में आल्प्सख्यकों को हड़काना शुरूकर प्रदेश के मुस्लिमों को चेतावनी दी है कि यदि किसी ने भी सड़कों पर नमाज पढ़ने की कोशिश की तो उसकी खैर नहीं।

यह अलग बात है कि डॉ मोहन यादव मुख्यमंत्री कि बात का मुसलमानों पर क्या असर पड़ा किन्तु उनकी ही सरकार के एक मंत्री गौतम टेटवाल ने राजगढ़ के मऊ गाँव में नमाज के दौरान अपना भाषण रोक मंच से कलमा पढ़ सरकार कि कथनी ओर करनी की कलई खोल दी। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को करने के लिए बहुत कुछ है वे पूर्व मुख्यमंत्री के कद को पार कर देश में अपनी पृथक पहचान बना सकते है। उन्हे ध्यान रखना होगा की उज्जैन समूचा प्रदेश नहीं जिसके लिए 100 किलोमीटर की 3 सड़कों के लिए 2312 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति देकर अंपने मंत्रिमंडल के मंत्री कैलाश विजयवर्गी ओर प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गजों को आपत्ति उठाकर आपका विरोध करना पड़े।

           आत्माराम यादव पीव

प्रदेश के मुखिया डॉ मोहन यादव जानते है कि नीति ओर योजना के असमान निर्णय का किस प्रकार विरोध होता है पर वे उड़नखटोले में यह सब भूल गए है वरना क्या कारण था कि जो लोग उन्हे अपना समझ अपनी अधिकारिता उन पर जताता है वे सम्पूर्ण प्रदेशवासियों के लिए अपनत्व के सम्मान के लिए खुद कदम क्यों नहीं बढ़ा रहे है। सरकार चलाने के लिए सभी का साथ ओर सहयोग आवश्यक है ठीक वैसे ही समाज की, समाज संगठन की स्थिति है, उन्हे नकारा नहीं जा सकता ओर अपनी ज़िम्मेदारी को सिरे से खारिज नही किया जा सकता, आवश्यक है सभी का मान सम्मान हो, हर समाज की अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अगर मुख्यमंत्री डॉ॰ मोहन यादव या अन्य मंत्री को आमंत्रित किया जाए तो उसकी स्वीकार्यता ओर उपस्थिती हर जाति वर्ग ओर समाजों को बल ओर स्फूर्ति प्रदान करता है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव इस बात को बेहतर जानते है, उन्हे समाज के प्रति बेरुखी का दायरा समाप्त कर अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा हो या अखिल भारतीय ग्वाला गवली समाज द्वारा उन्हे प्रदत्त किए जाने वाला ग्वाला रत्न अवार्ड स्वीकारने हेतु उपस्थित होकर समाज के गौरव को बढ़ाना चाहिए ताकि अन्य समाजों में भी इस प्रकार के भव्य आयोजनों में मुख्यमंत्री की उपस्थिती एक मिसाल बन गरिमापूर्ण हो जाये तथा भविष्योंमुख किसी भी समाज के प्रति मुख्यमंत्री या उनकी सरकार की दूरी अपवाद न बने ओर सदा के लिए दिल में स्थान मिलने के साथ उनकी सभी के कल्याणर्थ सभी से एक परिवार के सदस्यों जैसे नज़दीकिया स्थापित हो जाए, जैसी कि अन्य अनेक नेताओं ने जनता के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है, वह डॉ मोहन यादव को भी छोडना चाहिए।

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