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जिलाधिकारी द्वारा कल्प वृक्ष का रोपण करने से सत्याग्रह करने वालों में भारी बेचैनी व निराशा व्याप्त- गणेश ज्ञानार्थी

इटावा। जिला कचेहरी स्थित ऐतिहासिक गांधी वट वृक्ष सत्याग्रह स्थल पर बरगद के उखड़ने के बाद आज इसका वजूद समाप्त हो गया। इस स्थल के ऐतिहासिक महत्व को कायम रखने के लिए बरगद को ही पुनः रोपित करने का आश्वासन देने के बावजूद जिलाधिकारी अवनीश रॉय द्वारा आज कल्प वृक्ष का रोपण कर दिया गया, जिससे अधि संख्य सत्याग्रह करने वालों में भारी बेचैनी रोष और निराशा व्याप्त हो गई है।

यह जानकारी देते हुए सामाजिक कार्यकता एवम स्तंभकार गणेश ज्ञानार्थी ने बताया कि जिलाधिकारी अपने आश्वासन से पलट क्यों गए और जन भावनाओं के विपरीत आखिर किन कारणों से कल्प वृक्ष रोपित करने पर राजी हुए, यह रहस्य भी उजागर हो जाएगा। कलेक्ट्रेट में संपन्न गांधी जयंती समारोह में बोलते हुए गणेश ज्ञानार्थी ने गांधी जी के जीवन मूल्यों को विश्व प्रसिद्ध आचरण बताया। और कहा कि गांधी जी के स्मरण दिवस पर बरगद का पुनः रोपित न होना सत्याग्रह और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिखाने वाले गांधी जी का सम्मान नहीं है। उन्होंने सत्याग्रह स्थल का वजूद समाप्त किए जाने और जन भावनाओं की उपेक्षा को दुर्भाग्य पूर्ण और पीड़ा दायक बताया और भरे मन से भी विरोध दर्ज कराते हुए जिलाधिकारी को बधाई दी।

उन्होंने यह भी कहा कि आज जब विश्व गांधी जी के शांति और अहिंसा का अनुसरण करने में खुशी महसूस कर रहा है, वहीं इस देश में उन्हें मरणोपरांत अपमानित करने वालो की विध्वंसक जमात उल्टा सीधा कह कर अपनी मूर्खताओं का भोंडा प्रदर्शन फेस बुक आदि पर कर रही है। अपनी विज्ञप्ति में ज्ञानार्थी ने प्रख्यात शिक्षा विद डॉक्टर विद्या कांत तिवारी जी द्वारा सुझाए महान लेखक जय शंकर प्रसाद की कामायनी महाकाव्य में बरगद के महत्व को रेखांकित किया, जिसमे वर्णित है कि जब महाप्रलय काल में मनु महाराज ने समुद्र की विशाल जल राशि में खुद की रक्षा के लिए नजर आए बरगद से अपनी नाव बांधी, तो समुद्र वापस होने पर नाव सूखे में सुरक्षित रही।

“बंधी महावट में नौका थी,सूखे में अब पड़ी रही” ज्ञानार्थी ने बताया कि आगामी 11 अक्टूबर को इसी सत्याग्रह स्थल पर गांधी वाट वृक्ष की याद में सत्याग्रह होगा ताकि आने वाला वक्त यह न कहे कि अन्याय हुआ और लोग चुप रहे। इसी लिए विरोध दर्ज कराया जाएगा ताकि सनद रहे। जिन पूर्वजो की यादें जुड़ी रही और जिन्होंने यहां आवाज उठाई, वे अपनी पीड़ा दर्ज कराने आयेंगे। सत्याग्रह के प्रतीक बरगद के प्रति कर्तव्य निभायेंगे। तबादले पर आने वाले आते जाते रहेंगे, मगर स्थानीय संघर्ष शीलों की आस्था को जीवित रखने का उपक्रम वक्त की मांग है। लोकप्रियता अर्जित करने में जुटे डी एम रॉय को विवादित बनाने की साजिश कर्ताओं का परदा फाश होना आवश्यक है। गणेश ज्ञानार्थी

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